लखनऊ के शीरोज कैफे से है विवादित छपाक का गहरा नाता

Disputed splash has deep connection with Shiros Cafe in Lucknow
लखनऊ के शीरोज कैफे से है विवादित छपाक का गहरा नाता
लखनऊ के शीरोज कैफे से है विवादित छपाक का गहरा नाता
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लखनऊ , 11 जनवरी (आईएएनएस)। तमाम विवादों और विरोधों के बीच मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी फिल्म छपाक शुक्रवार को रिलीज हो गई। इस फिल्म का नवाबों के शहर लखनऊ से गहरा नाता है। यह तो सब जानते हैं कि यह फिल्म एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर आधारित है, लेकिन ये कम ही लोग जानते होंगे कि छपाक की कहानी का संबंध लखनऊ में चलने वाले शीरोज कैफे से है।

शीरोज कैफे में कार्यरत एसिड अटैक सर्वाइवर्स भी फिल्म देखने के लिए एक सिनेमा हॉल पहुंचीं। वह फिल्म देखने के लिए बहुत उत्साहित थीं। फिल्म में इस कैफे में काम करने वाली जीतू और कुंती ने भी अभिनय किया है। यह लोग अपने दोस्तों को बड़े पर्दे पर देख काफी खुश नजर आईं।

डा़ भीमराव अंबेडकर परिवर्तन स्मारक परिसर में महिला कल्याण निगम द्वारा संचालित शीरोज हैंगआउट में वर्तमान 14 एसिड अटैक पीड़ित महिलाएं काम कर रही हैं। कुछ महिलाओं को यहां से मिले हुनर के कारण उनकी जिंदगी ही बदल गई है।

कैफे में काम करने वाली रूपाली ने बताया कि वह यहां पर 2016 से काम कर रही है। वह पूर्वांचल के गाजीपुर की रहने वाली है। इन्होंने बताया कि इनके सोते समय किसी ने इनके चेहरे पर तेजाब डाल दिया था। इनका पूरा चेहरा खराब हो गया। इस कारण इनके पड़ोस के लोग इन्हें पसंद नहीं करते थे। लेकिन इस शीरोज कैफे ने इन्हें नई जिंदगी दी है। इनका मानना है कि इस कैफे में काम करने वाले हुनर, हौसले और हक के लिए पहचाने जाते हैं। यह चाहतीं कि छपाक फिल्म खूब हिट हो क्योंकि इस फिल्म को देखने के बाद लोग जागरूक होंगे।

इसी कैफे में काम करने वाली रेशमा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है। उनके पति ने उनके ऊपर एसिड से अटैक किया था। लेकिन साढ़े पांच साल जेल में रहने के बाद आज वह इनके साथ जिंदगी गुजार रहा है। उन्होंने बताया कि पांच बच्चियों के कारण उन्हें उनके साथ रहना पड़ा। लेकिन यह काम करने के कारण उन्हें जीने का तरीका सीखने को मिला। इस फिल्म से लोगों को बहुत सीखने और देखने को मिलेगा।

फतेहपुर की प्रीती ने बताया कि उनके पड़ोसी ने उन्हें तेजाब से जख्मी किया था। स्कूल जाते वक्त रास्ते में रोककर वह पीछे से तेजाब डालकर भाग गया। काफी संघर्षो के बाद यहां पर हमें आगे पढ़ने और बढ़ने का अवसर मिला है।

एक और एसिड अटैक पीड़िता ने कहा, सब तो ठीक है, लेकिन हमें समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है। इसका प्रमुख कारण है कि महिला कल्याण निगम ने हम लोगों का काफी पैसा रोक रखा है। इसके संचालन में काफी दिक्कत होती है। लेकिन फिर भी हमें किसी बात का मलाल नहीं है क्योंकि यह हमारा घर है।

यहां पर मैनेजमेंट का काम देख रहीं वासिनी ने बताया, पिछली सरकार में इसे दो साल के लिए एलडीए से लीज पर लेकर दिल्ली की स्वैच्छिक संस्था छांव फाउंडेशन को दिया था। इस संबंध में संस्था और महिला कल्याण निगम के बीच एक एमओयू किया गया था। सरकार बदलते ही काफी बवाल होने लगे। सरकार ने नियम निकाला था जिसके पास अनुभव होगा, उसे टेंडर मिलेगा उसका भी पालन नहीं हुआ है। मामला न्यायालय में है। हम चाहते हैं कि फैसला हमारे पक्ष आए जिससे हमारी लड़कियों के हौसले और घर मजबूत हो सकें।

Created On :   11 Jan 2020 9:00 AM IST

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