पीरियड्स के टैबू पर बनी फिल्म 'periods: end of sentence' ने जीता ऑस्कर
- गुनीत मोंगा है फिल्म की एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर
- भारत को मिला ऑस्कर 2019 का अवॉर्ड
- शॉर्ट फिल्म 'पीरियड ऐंड ऑफ सेंटेस' को ऑस्कर
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के काठी खेड़ा गांव की रहने वाली युवती स्नेह पर बनी शॉर्ट फिल्म "पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस" को ऑस्कर अवार्ड मिला है। इसकी घोषणा हॉलीवुड के डॉल्बी थिएटर में रविवार देर को आयोजित 91वें ऑस्कर अवार्ड समारोह में की गई। भारतीय फिल्म प्रड्यूसर गुनीत मोंगा की फिल्म "पीरियड. एंड ऑफ सेंटेंस" को रयाक्ता जहताबची और मैलिसा बर्टन ने निर्देशित किया है। ये शॉर्ट फिल्म भारतीय समाज में पीरियड्स के टैबू पर बनी है।
गुनीत मोंगा के इस फिल्म का मुकाबला बेस्ट डॉक्युमेंट्री शॉर्ट कैटिगरी फिल्मों में Black Sheep (ब्लैकशिप), End Game (एंड गेम), Lifeboat (लाइफ बोट) A Night at the Garden (अ नाइट एट द गार्डन) से था। ऑस्कर्स के शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में दुनियाभर की नौ और शॉर्ट डॉक्यूमेंट्रीज़ के साथ नॉमिनेट किया गया था। इन फिल्मों में "पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस" भी शामिल थी। 21 फरवरी को ऑस्कर अवार्ड को पाने के लिए पूरी टीम खुशी के आंसूओं संग दिल्ली एयरपोर्ट से अमेरिका के लिए रवाना हुई थी। ऑस्कर अवॉर्ड जीतने के बाद गुनीत मोंगा बेहद एक्साइटेड हैं। उन्होंने ट्वीट कर लिखा-"" हम जीत गए, इस दुनिया की हर लड़की, तुम सब देवी हो।अगर जन्नत सुन रही है.""
WE WON!!! To every girl on this earth... know that you are a goddess... if heavens are listening... look MA we put @sikhya on the map
— Guneet Monga (@guneetm) February 25, 2019
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ऑस्कर में भारत को बड़ी सफलता दिलाने वाली इस फिल्म की कहानी पीरियड जैसे टैबू सबजेक्ट पर बनी आधारित है। ये डॉक्यूमेंट्री 25 मिनट की है। फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के हापुड़ में रहने वाली लड़कियों के जीवन पर बनी है। इस शॉर्ट फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आज भी हमारे गांवों में पीरियड्स को लेकर शर्म और झिझक है।
ऐसे आया डॉक्यूमेंट्री बनाने का आइडिया
इस डॉक्यूमेंट्री में रियल स्टार्स ने काम किया है। यह डॉक्यूमेंट्री बनाने में कैलिफोर्निया के ऑकवुड स्कूल के 12 छात्रों और स्कूल की इंग्लिश टीचर मेलिसा बर्टन की महत्वपूर्ण भूमिका है। दरअसल, एक आर्टिकल के जरिए ऑकवुड स्कूल के स्टूडेंट्स को पता चला था कि भारत के गांवों में पीरियड को लेकर बात करने पर लोगों शर्म आती है। इस जानकारी के बाद सबसे पहले बच्चों ने NGO से संपर्क किया, चंदा इकट्ठा किया और गांव की लड़कियों को सेनेटरी बनाने वाली मशीन डोनेट की। वहां के लोग इसको लेकर जागरुक हो इसके लिए डॉक्यूमेंट्री बनाने का फैसला लिया।
ये है फिल्म की कहानी
इस डॉक्यूमेंट्री की शुरूआत में गांव की लड़कियों से पीरियड (मासिकधर्म) के बारे में पूछा जाता है। पीरियड क्या है? ये सवाल सुनकर वे लड़कियां शर्माती हैं। इसके बाद यही सवाल लड़कों से भी किया जाता है। वे लड़के पीरियड को लेकर अलग-अलग तरह के जवाब देते हैं। एक लड़के ने कहा- पीरियड वही होता है ना जो स्कूल में घंटा बजने के बाद होता है। वहीं दूसरा लड़का कहता है ऐसा सुना है कि ये एक तरह बीमारी है जो औरतों को होती है। इस डॉक्यूमेंट्री में हापुड़ की स्नेहा का महत्वपूर्ण रोल है। जो पुलिस में भर्ती होना चाहती है। पीरियड को लेकर स्नेहा की सोच और लोगों से अलग है। स्नेहा कहती है जब दुर्गा को देवी मां कहते हैं, फिर मंदिर में औरतों की जाने की मनाही क्यों है। डॉक्यूमेंट्री में फलाई नाम की संस्था और रियल लाइफ के पैडमैन अरुणाचलम मुरंगनाथम की एंट्री भी होती है। बता दें कि उन्हीं (पैडमैन) की बनाई सेनेटरी मशीन को गांव में लगाया जाता है।
Created On :   25 Feb 2019 11:32 AM IST