बेगम अख्तर का 103वां जन्मदिन, google ने खास अंदाज में किया सेलिब्रेट

google made a doodle on singer Begum Akhtars 103th Birthday.
बेगम अख्तर का 103वां जन्मदिन, google ने खास अंदाज में किया सेलिब्रेट
बेगम अख्तर का 103वां जन्मदिन, google ने खास अंदाज में किया सेलिब्रेट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। जिस दौर में शायद ही कोई महिला घर से बाहर निकलती होंगी उस वक्त बेगम अख्तर की आवाज हर जगह सुनाई देती थी। दिलकश आवाज की मल्लिका बेगम अख्तर का आज 103वां जन्मदिन है। इस मौके पर गूगल ने भी अपने खास डूडल अंदाज में उन्हें याद किया है।

जब लखनऊ में संगीत घराने की बात हो और सुरों की मलिका बेगम अख्तर का जिक्र जरूर किया जाता है। बेगम अख्तर ने दादरा, ठुमरी और गजल में अपना नाम इतिहास के पन्नों में सदा के लिए लिखवा दिया है। बेगम अख्तर ने अपनी गायकी से एक मिसाल कायम की।                                                             

उनकी जुबान शब्दों के मामले में एकदम साफ रही हैं, सुरों के रूप उनके मुंह से मिकलने वाला हर एक शब्द बेमिसाल हुआ करता था। मशहूर गजल ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया... के अलावा बेगम अख्तर ने संगीत प्रेमियों को गजलों की कीमती विरासत सौंपी है। बेगम ने कई जगह रहकर अपनी आवाज का जादू बिखेरा लेकिन उनका दिल हमेशा लखनऊ के लिए धड़कता रहता था। "हमरी अटरिया पे आओ सवारिया, देखा देखी बालम होई जाये" जैसी ठुमरी हो या फिर "ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया" जैसी गजल, बेगम अख्तर ने कई ऐसे गाने गाए जो लोगों के दिल में उतर गए।

आज के नए दौर में हो सकता है कि कई लोग बेगम अख्तर से परिचित नहीं हों, लेकिन संगीत प्रेमी आज भी उन्हे सुनना पसंद करते हैं।                                                                                          

बेगम अख्तर का जीवन

बेगम अख्तर का असली नाम अख्तरी बाई फैजाबादी था। उनका जन्म 7 अक्टूबर, 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था। वो गजल, ठुमरी और दादरा गायन शैली की बेहद लोकप्रिय गायिका थीं। उन्होंने "वो जो हममें तुममें करार था, तुम्हें याद हो के न याद हो", "ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया", "मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दवा न दे", जैसी कई दिल को छू लेने वाली गजलें गाईं हैं।

बचपन में बेगम ने सारंगी के उस्ताद इमान खां और अता मोहम्मद खान से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा ली। उसी दौरान एक ऐसी घटना हुई कि बेगम अख्तर ने गाना सीखने से इन्कार कर दिया। उन दिनों बेगम अख्तर से सही सुर नहीं लगते थे। उनके गुरु ने उन्हें कई बार सिखाया और जब वो नहीं सीख पाई तो उन्हे डांट दिया।                                   

बेगम अख्तर ने रोते हुए उनसे कहा, हमसे नहीं बनता नानाजी, मैं गाना नहीं सीखूंगी। उनके उस्ताद ने कहा, बस इतने में हार मान ली तुमने, नहीं बिट्टो ऐसे हिम्मत नहीं हारते, मेरी बहादुर बिटिया चलो एक बार फिर से सुर लगाने में जुट जाओ। उनकी बात सुनकर बेगम अख्तर ने फिर से रियाज शुरू किया और सही सुर लगाए। उन्होंने मोहम्मद खान, अब्दुल वहीद खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा। तीस के दशक में बेगम अख्तर पारसी थियेटर से जुड़ गईं।

नाटकों में काम करने के कारण उनका रियाज छूट गया, जिससे मोहम्मद अता खान काफी नाराज हुए और उन्होंने कहा, "जब तक तुम नाटक में काम करना नहीं छोड़ती, मैं तुम्हें गाना नहीं सिखाउंगा।"

उनकी इस बात पर बेगम अख्तर ने कहा, "आप सिर्फ एक बार मेरा नाटक देखने आ जाएं उसके बाद आप जो कहेंगे मैं करूंगी।" उस रात मोहम्मद अता खान बेगम अख्तर के नाटक "तुर्की हूर" देखने गए। जब बेगम अख्तर ने उस नाटक का गाना "चल री मोरी नैय्या" गाया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए और नाटक समाप्त होने के बाद बेगम अख्तर से उन्होंने कहा, "बिटिया तू सच्ची अदाकारा है। जब तक चाहो नाटक में काम करो।"                            

फिल्मों में भी किया काम

बेगम अख्तर ने बतौर अभिनेत्री भी कुछ फिल्मों में काम किया था। उन्होंने "एक दिन का बादशाह" से फिल्मों में अपने अभिनय करियर की शुरूआत की और महबूब खान और सत्यजीत रे जैसे फिल्कारों की फिल्म में भी अभिनय किया, लेकिन लेकिन तब अभिनेत्री के रुप में कुछ खास पहचान नहीं बना पाई। उनके गायन का गायन का सिलसिला भी साथ-साथ चलता रहा। 1940 और 50 के दशक में गायन में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। 

शौहर के कहने पर छोड़ दी थी गायकी

साल 1945 में बेगम अख्तर का निकाह बैरिस्टर इश्ताक अहमद अब्बासी से हो गया। दोनों की शादी का किस्सा काफी दिलचस्प है। एक कार्यक्रम के दौरान बेगम अख्तर और इश्ताक मोहम्मद की मुलाकात हुई।

बेगम अख्तर ने कहा, "मैं शोहरत और पैसे को अच्छी चीज नहीं मानती हूं। औरत की सबसे बड़ी कामयाबी है किसी की अच्छी बीवी बनना।" ये सुनकर अब्बासी साहब बोले, "क्या आप शादी के लिये अपना करियर छोड़ देगीं?"

इस पर उन्होंने जवाब दिया, "हां अगर आप मुझसे शादी करते हैं तो मैं गाना बजाना तो क्या आपके लिए अपनी जान भी दे दूं।" शादी के बाद उन्होंने गाना बजाना तो दूर गुनगुनाना तक छोड़ दिया। शादी के बाद पति की इजाजत नहीं मिलने पर बेगम अख्तर ने गायकी से मुख मोड़ लिया।                                                                                     

गायकी से दूरी ने कर दिय था बीमार

गायकी से बेइंतहा मोहब्बत रखने वाली बेगम अख्तर को जब लगभग पांच साल तक आवाज की दुनिया से रूखसत होना पड़ा तो वो इसका सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं और हमेशा बीमार रहने लगी। हकीम और वैद्यों की दवाइयां भी उनके स्वास्थ्य को नहीं सुधार पा रही थी।

एक दिन जब बेगम अख्तर गा रही थी कि तभी उनके पति के दोस्त सुनील बोस जो लखनऊ रेडियो के स्टेशन डायरेक्टर थे ने उन्हें गाते देखकर कहा, अब्बासी साहब ये तो बहुत नाइंसाफी है। कम से कम अपनी बेगम को रेडियो में तो गाने का मौका दीजिए। अपने दोस्त की बात मानकर उन्होंने बेगम अख्तर को गाने का मौका दिया।                                                              

जब लखनऊ रेडियो स्टेशन में बेगम अख्तर पहली बार गाने गई तो उनसे ठीक से नहीं गाया गया। अगले दिन अखबार में निकला, बेगम अख्तर का गाना बिगड़ा बेगम अख्तर नहीं जमी। ये सब देखकर बेगम अख्तर ने रियाज करना शुरू कर दिया और बाद में उनका अगला कार्यक्रम अच्छा हुआ। बेगम अख्तर ने एक बार फिर से संगीत समारोहों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इस बीच उन्होंने फिल्मों में भी अभिनय करना जारी रखा और धीरे-धीरे फिर से अपनी खोई हुई पहचान पाने में सफल हो गई।

मौत से 7 पहले तक गाई गजल  

सत्तर के दशक में लगातार संगीत से जुड़े कार्यक्रमों मे भाग लेने और काम के बढ़ते दबाव के कारण वो बीमार रहने लगी और इससे उनकी आवाज भी प्रभावित होने लगी। इसके बाद उन्होंने संगीत कार्यक्रमों में हिस्सा लेना काफी कम कर दिया। साल 1972 में संगीत के क्षेत्र मे उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वो पद्मश्री और पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित की गईं। ये महान गायिका 30 अक्टूबर 1974 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं। अपनी मौत से सात दिन पहले बेगम अख्तर ने कैफी आजमी की गजल गाई थी।

Created On :   7 Oct 2017 2:30 PM IST

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