ऐसा नहीं है कि मैं अपनी कुर्सी पर बैठूं और जादू हो जाए : एआर रहमान

Its not like I sit in my chair and the magic happens: AR Rahman
ऐसा नहीं है कि मैं अपनी कुर्सी पर बैठूं और जादू हो जाए : एआर रहमान
ऐसा नहीं है कि मैं अपनी कुर्सी पर बैठूं और जादू हो जाए : एआर रहमान
हाईलाइट
  • ऐसा नहीं है कि मैं अपनी कुर्सी पर बैठूं और जादू हो जाए : एआर रहमान

नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। ऑस्कर और ग्रैमी विजेता भारतीय संगीतकार एआर रहमान का मानना है कि हमेशा नया खोजते रहना, करते रहना बहुत जरूरी है। वह कहते हैं कि इसके लिए वह खुद को चुनौती देते रहते हैं क्योंकि कुछ समय बाद जादू फीका पड़ जाता है और दिमाग सुन्न हो जाता है।

आईएएनएस के साथ इंटरव्यू में रहमान ने बताया, एक इंसान के तौर पर कुछ समय बाद सबसे अच्छी चीज भी उबाऊ हो जाती है। जीवन में बोरियत लगना मानवीय गुण है, इससे लड़ने का एकमात्र तरीका है, कुछ नया करते रहो।

उन्होंने आगे कहा, एक पुरानी कहावत है कि यदि आप दाहिने हाथ से बहुत अच्छा काम करते हैं, तो इसे बाएं हाथ से भी करने की कोशिश करें। ताकि आप अपनी कंफर्ट जोन से बाहर निकलें और आपकी मांसपेशियों को नई स्मृतियां मिलें।

अपने काम को लेकर उन्होंने कहा, आज भी ऐसा नहीं है कि मैं जाकर अपनी कुर्सी पर बैठूं और जादू हो जाए। मैं खुद को चुनौती देता रहता हूं क्योंकि थोड़ी देर बाद जादू फीका हो जाता है और दिमाग सुन्न हो जाता है। यदि 5 दिन तक एक ही तरह का खाना खाया जाए तो आप ऊब जाएंगे। यही बात कला, कहानियों, फिल्म निर्माण हर जगह लागू होती है। हमें हमें एकरसता को तोड़ने के तरीके खोजने होंगे।

1992 में रोजा के साथ फिल्म उद्योग में अपनी यात्रा शुरू करने के बाद रहमान ने अपनी रचनाओं में ढेरों प्रयोग किए और भारतीय आवाजों को वैश्विक स्तर तक ले गए। इन सालों में रहमान ने ग्रैमी, ऑस्कर, बाफ्टा और गोल्डन ग्लोब जैसे कई पुरस्कार जीते हैं। अब, उन्हें भारत में बाफ्टा ब्रेकथ्रू पहल के लिए राजदूत के रूप में चुना गया है।

अपनी नई भूमिका को लेकर रहमान ने कहा, मैं भारत से चुनी गई शानदार प्रतिभा को वैश्विक मंच पर दिखाने के लिए उत्सुक हूं। राजदूत के रूप में मेरी भूमिका बाफ्टा को सफल प्रतिभा पहचानने में मदद करने की है। इसके अलावा देश को उसके सभी कामों के बारे में शिक्षित करना भी शामिल है।

उन्होंने आगे कहा, दरअसल, नई प्रतिभाओं को चीजें वापस देने और उनका पोषण करने की मेरी इच्छा उन चीजों के मूल में है, जो मैं करता हूं। आप नहीं जानते कि इस प्रक्रिया में आप क्या सीख सकते हैं। जब मैंने 2008 में अपना स्कूल शुरू किया, तब मुझे एहसास हुआ कि जब आप समुदाय को कुछ देना चाहते हैं, तो लोग आपसे जुड़ते हैं और यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वैसे इंटरनेट ने प्रतिभा की खोज की प्रक्रिया को काफी हद तक लोकतांत्रिक बना दिया है।

एसडीजे-एसकेपी

Created On :   7 Dec 2020 12:42 PM IST

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