B. Day Spl: सातों महाद्वीपों में शास्त्रीय संगीत को पंडित जसराज ने दिलाई पहचान

know the story of struggle behind the musical man Pandit Jasraj
B. Day Spl: सातों महाद्वीपों में शास्त्रीय संगीत को पंडित जसराज ने दिलाई पहचान
B. Day Spl: सातों महाद्वीपों में शास्त्रीय संगीत को पंडित जसराज ने दिलाई पहचान

डिजिटल डेस्क, मुंबई। शास्त्रीय संगीत के आसमान पर रोशनी बिखरने वाले सूरज पंडित जसराज का आज जन्मदिन है। आज पंडित जशराज 88 साल के हो गए हैं। कहते हैं हर पल किया जाने वाला संघर्ष ही कामयाबी की दशा और दिशा तय करता है। हर कामयाब इंसाने के पीछे कोई न कोई कहानी होती है। उस कहानी में इंसान का संघर्ष होता है। इंसान का संघर्ष जितना बड़ा होता है, कामयाबी का मीटर भी उतना ही बड़ा होता है। संघर्ष की कहानियां कभी-कभी किसी को पता चलती है, तो कभी-कभी कहानियां कामयाबी के परतों में गुम हो जाती हैं, लेकिन जब बात आती है कि उस इंसान के विषय में कुछ बयां किए जाने की तो संघर्ष की वह परतें खोलनी ही पड़ती है। ऐसा ही कुछ संघर्ष पंडित जसराज की जिंदगी से भी जुड़ा है।

 

 

चार पीढ़ियों से घराना दे रहा शास्त्रीय संगीत

 

पंडित जसराज क जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे चार पीढ़ियों तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त हुआ है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। बचपन में ही जसराज के पिता मोती राम को 1933 में हैदराबाद के आखिरी निजाम उस्मान अली खां के दरबार में "राज संगीतज्ञ" घोषित किया जाना था। इधर, समारोह की तैयारी हो रही थी और उधर, मोती राम के घर में जश्न मनाया जा रहा था। उनके दोनों बेटे भी पिता को मिलने वाले इस सम्मान से खुश थे, लेकिन कुदरत का करिश्मा कोई नहीं जानता। शाम होते-होते खुशी गम में बदल गई। उसी शाम पंडित मोती राम जी का देहांत हो गया। उस वक्त पंडित जसराज की उम्र महज तीन साल थी। जरा सी उम्र में पिता का साया सर से उठ जाने की समझ भी उन्हें नहीं थी। कुछ समय बीता तो पिता के न होने का गम सताने लगा।

 

 

 

14 साल की उम्र में छोड़ा तबला बजाना

 

इसके बाद जसराज ने कसम खाई कि वह भी अपने पिता की तरह ही बड़े संगीतज्ञ बनेंगे। दोनों भाईयों ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना भी शुरू किया। जसराज तबला बजाते थे और उनके बड़े भाई गाना गाते थे। ये सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा, लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब जसराज को एहसास हुआ कि उसे तो पिता जी की तरह शास्त्रीय गायक बनना है। जिसके बाद 14 साल की उम्र में उन्होंने तबला बजाना छोड़ खुद से एक वादा किया कि वह तब तक बाल नहीं कटवाएंगे, जब तक शास्त्रीय गायन में विशारद हासिल नहीं कर लेंगे।

 

ऑल इंडिया रेडियो पर की पहली प्रस्तुति

 

इन कोशिशों का असर यह हुआ कि उन्हें ऑल इंडिया रेडियो पर शास्त्रीय संगीत पेश करने के लिए बुलाया गया। उस दिन उन्होंने बाल कटवाए और स्टूडियो पहुंच गए। यही वह पहला दिन था जब दुनिया ने शास्त्रीय संगीत की एक ऐसी सुरीली आवाज को पहली बार सुना जिसे नजरअंदाज कर पाना नामुमकिन था। जिसने भी वो आवाज सुनी, गायक का नाम पूछा.. और जवाब मिला - यह पंडित जसराज की आवाज है।

 

 

अवधारित की अनोखी जुगलबन्दी (जसरंगी) 


पंडित जशराज ने "मूर्छना" की प्राचीन शैली पर आधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी (जसरंगी) अवधारित की। उननकी आवाज सात के सुरों में निखरकर इंद्रधनुष के सात रंगों से मिलकर पूरे विश्व में गूंजती है, उन्हें संगीत मार्तंड भी कहा जाता है। वह पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर जैसे कई अवॉर्ड से नवाजे जा चुके हैं। कहा जाता है कि तबले से संगीत की राह शुरू करने वाले जसराज को एक अपमानित कर देने वाली घटना ने भी गायकी की ओर मोड़ दिया। 1945 में लाहौर में कुमार गंधर्व के साथ जसराज एक कार्यक्रम में तबले पर संगत कर रहे थे, कार्यक्रम के अगले दिन कुमार गंधर्व ने जजराज को डांटा और कहा कि "जसराज तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो, तुम्हें रागदारी के बारे में कुछ नहीं पता।" बस वो दिन था कि उन्होंने तबले को कभी हाथ नहीं लगाया।  

 

 

पिता की समाधि पर बिताते हैं समय

पंडित जसराज का हैदराबाद से गहरा ताल्लुक है। वह साल भर में जब भी फ्री होते हैं, हैदरबाद जरुर आते हैं। जहां पर वे घंटों बै‏ठकर संगीत की उस देन को याद करते हैं, जो उनको अपने पिताजी से मिली थी। यह पर उनके पिता पंडित मोती राम की समधि है। पंडित जसराज के बचपन के कुछ दिन हैदराबाद के गली कूचों में भी गुजरे हैं। यहां का गौलीगुडा चमन और नामपल्ली ऐसे मुहल्ले हैं, जहां पंडित जी के बचपन की कई यादें हैं। उन्हें स्कूल के रास्ते की वो होटल भी याद है, जहां रुककर वो बेगम अख्तर की गज़ल...दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे , वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे सुना करते थे। पंडित जी मानते हैं कि इस लंबी जिंदगी से कुछ प्रेरणा अगर ली जा सकती है तो यही कि लगातार काम करते रहना चाहिए। गाने का शौक है तो सीखते रहो और रियाज़ करते रहो और उस ऊपर वाले की मेहरबानी का इंतजार करो।

 

 

जसराज की पत्नी का नाम मधुरा है, जो कि एक कामयाब डॉक्यूमेंटरी फिल्म मेकर हैं। मधुरा मशहूर फिल्म निर्देशक वी शांताराम की बेटी हैं। वो बताती हैं कि उन दोनों की पहली मुलाकात 1955 में फिल्म झनक-झनक पायल बाजे के सेट पर हुई थी। इसी के बाद प्यार हुआ और फिर शादी। शादी के बाद कुछ साल तक वो लोग कोलकाता में भी रहे। उनका एक बेटा शारंगदेव पंडित और एक बेटी दुर्गा जसराज है, जो टीवी कलाकार हैं। टोरंटो में उनके नाम से एक म्यूजिक स्कूल भी संचालित किया जाता है। जिसे मेवाती गुरुकुल के नाम से भी जानते हैं। 

 


 

Created On :   28 Jan 2018 1:12 PM IST

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