हिंदी साहित्य में डाली थी हालावाद की नींव, पढ़िए बच्चन की अनसुनी बातें

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हिंदी साहित्य में डाली थी हालावाद की नींव, पढ़िए बच्चन की अनसुनी बातें
हिंदी साहित्य में डाली थी हालावाद की नींव, पढ़िए बच्चन की अनसुनी बातें

डिजिटल डेस्क, मुंबई। "मंदिर मस्जिद बैर बढ़ाते मेल कराती मधुशाला".....इन पंक्तियों को जब भी कोई कविता प्रेमी सुनता है उसके जेहन में बस एक ही नाम आता है...हरिवंश राय बच्चन। बॉलीवुड के महानायक अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन का आज जन्मदिन है। महाकवि हरिवंश राय का जन्म 27 नवम्बर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव बाबूपट्टी में हुआ था। हरिवंश राय बच्चन को अपने घर में सबसे छोटे थे तो घर में उन्हें प्यार से बच्चन नाम से बुलाया जाता था। हालांकि हरिवंश राय अपने नाम के साथ श्रीवास्तव लगाते थे, लेकिन अपनी रचनाओं में उन्होंने खुद को बच्चन लिखना शुरू कर दिया।

उनका यही उपनाम लोकप्रिय हो गया और आज उनके बच्चे बच्चन सरनेम के तौर पर लगाते हैं। हरिवंश राय ने कायस्‍थ पाठशाला में उर्दू का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने कानून की शिक्षा हासिल की। हरिवंश राय ने कैम्ब्रिज से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर पीएच. डी. भी की। 1941 में उन्होंने रंगमंच से जुड़ी तेजी सूरी से शादी कर ली। उनके दो पुत्र हैं महानायक अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन। हालांकि अजिताभ बच्चन उतने प्रसिद्ध नहीं हैं। हरिवंश राय बच्चन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े रहे। अंग्रेजी साहित्य के कवि पर पीएचडी और उर्दू में शिक्षा हासिल करने के बाद भी हरिवंश राय बच्चन ने हिंदी कवि के रूप में अपना परचम लहराया। वो हिंदी के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उन्हें सबसे अधिक लोकप्रियता "मधुशाला" की वजह से मिली। 

हरिवंश राय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई की और वो कई राजकीय पदों पर भी रहे। उन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में भी हिन्दी विशेषज्ञ के तौर पर काम किया था। कुछ समय के लिए वह राज्य सभा सदस्य भी मनोनीत किए गए।

 

हिंदी साहित्य में डाली हालावाद की नींव

आज भी हिंदी के जिन कवियों की सर्वाधिक खरीदी और पढ़ी जाने वाली कविताओं में हरिवंश राय बच्चन का ही नाम आता है। ‘मधुशाला’ 1935 में लिखी गई उनकी दूसरी रचना थी। कहा जाता है कि उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में हालावाद की नींव डाली। जिसकी तर्ज पर कई अन्य कवियों ने भी कविताएं लिखीं। बता दें कि यह वह दौर था जब प्रगतिवाद की नींव पड़ रही थी और छायावाद युग अपने अंतिम दौर में था। छायावादी कवियों ने भी ‘युगांत’ की घोषणा कर दी थी। ऐसे समय में छायावाद से ऊर्जा लेते हुए एक नए वाद की शुरुआत करना बड़ा कठिन काम था। बच्चन ने छंद आधारित कई कविताएं लिखीं, जिन्हें छायावाद के समय निषेध किया गया था। 

 

बच्चन की यह पंक्तियां जहां एक ओर समानता की वकालत करती हैं, वहीं इशारों में यह भी कहती हैं कि यह समानता सिर्फ मदिरालय में ही संभव है। यह भी एक तथ्य है कि हरिवंश राय बच्चन ने कभी न शराब पी थी और न ही किसी मधुशाला में गए थे। 

 

हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख कृतियां

मधुशाला, मधुकलश, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, निशा निमंत्रण, दो चट्टानें, तेरा हार, एकांत संगीत, प्रणय पत्रिका, अग्निपथ, क्या है मेरी बोरी में, नीड का निर्माण, गीत मेरे आदि रचनाएं काफी लोकप्रिय हुई।  इलके अलावा आकुल अंतर, सतरंगिनी, हलाहल, बंगाल का काल, सूत की माला, खादी के फूल को भी कविता प्रेमियों ने मन से पढ़ा।

 

हरिवंश राय बच्चन को मिले पुरस्कार

"दो चट्टाने" को लेकर हिंदी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से हरिवंश राय बच्चन को सम्मानित किया गया।  

सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित हरिवंश राय को किया गया।  

बिड़ला फाउंडेशन ने उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान दिया।  

हरिवंश राय बच्चन को भारत सरकार ने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया। 

 

इलाहाबाद में बसता था हरिवंश राय बच्चन का दिल

बताते चले कि उनका दरबार रानीमंडी स्थित बच्चाजी की कोठी पर लगता था। इसमें धर्मवीर भारती, महादेवी वर्मा, गोपीकृष्ण गोपेश, उमाकांत मालवीय, केशवचंद्र वर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, जगदीश गुप्त और अज्ञेय जैसे कई रचनाकार मौजूद रहते थे।

तेजी सूरी ने शादी नहीं कराना चाहते थे हरिवंश के पिता 

हरिवंश राय बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव उनकी शादी पंजाबी लड़की से नहीं कराना चाह रहे थे। 24 जनवरी 1942 को रंगमंच करने वाली शिक्षिका तेजी सूरी से उन्होंने रजिस्टर्ड मैरिज की थी। इसके बाद हरिवंश अपना घर छोड़कर सिविल लाइंस इलाके में स्थित शंकर तिवारी (फूल वाले बंगले) के बंगले में किराए पर रहने लगे थे। इसी वजह से तेजी बच्चन कभी अपने ससुराल नहीं गईं।

 

मुंबई में हुआ निधन

बच्चन ने उमर ख़्य्याम की रुबाइयों, सुमित्रा नंदन पंत की कविताओं, नेहरू के राजनीतिक जीवन पर भी किताबें लिखी। उन्होंने शेक्सपियर के नाटकों का भी अनुवाद किया। हरिवंश राय बच्चन का 95 वर्ष की आयु में 18 जनवरी, 2003 को मुंबई में देहांत हो गया। 

Created On :   27 Nov 2017 3:35 PM IST

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