महाश्मशान : मोक्ष के लिए यहां पूरे देश से जलने आती हैं चिताएं

Mahashamshan of india
महाश्मशान : मोक्ष के लिए यहां पूरे देश से जलने आती हैं चिताएं
महाश्मशान : मोक्ष के लिए यहां पूरे देश से जलने आती हैं चिताएं

डिजिटल डेस्क, वाराणसी. वैसे तो ये पूरी सृष्टि ही शिव की बनायी है, लेकिन एक ऐसी भी जगह है जहां के बारे में मान्यता है कि यहां शिव हर वक्त अदृश्य रूप में विराजमान रहते हैं। शिव का औघड़ रूप यहां अपनी शक्तियों समेत रहता है और अपने अनन्य भक्तों को ही दर्शन देता है। भारत देश में यह स्थान है काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट। जहाँ पर सैकड़ों वर्षों से चिताएं जलती आ रही हैं। कहा जाता है कि यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है...

मणिकर्णिका पर चिताओं की अग्नि इसी कारण हमेशा जलती रहती है। पुराणों में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट महादेव का पसंदीदा स्थल बताया गया है। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती अन्नपूर्णा के रूप में भक्तों का कल्याण करते हैं। दूसरी ओर शिव औघड़ रूप में मृत्यु को प्राप्त लोगों को कान में तारक मंत्र देकर मुक्ति का मार्ग देते हैं। शिव का श्रृंगार यहां चिता की ताजी भस्म से किया जाता है इसलिए यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती है। मोक्ष की कामना से पूरे देश से लोग अपने संबंधियों की चिताएं यहां लेकर आते हैं।

अपने वास के लिए इसे बसाया

धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। मणिकर्णिका घाट की स्थापना अनादी काल में हुई है। संसार की रचना के बाद भगवान शिव ने अपने वास के लिए इसे बसाया था और भगवान विष्णु को उन्होंने यहां धर्म कार्य के लिए भेजा था।

घाट पर किया तप
भगवान विष्णु ने हजारों सालों तक मणिकर्णिका घाट पर तप किया था। महादेव के प्रकट होने पर विष्णु ने अपने चक्र से चक्र पुष्कर्णी तालाब (कुंड) का निर्माण किया था। इससे पहले उन्होंने कुंड में स्नान किया था। इस दौरान उनके कान का मुक्तायुक्त कुंडल गिर गया था। इसी के बाद से इस कुंड का नाम मणिकर्णिका कुंड पड़ गया। इस कुंड का इतिहास पृथ्वी पर गंगा अवतरण से भी पहले का माना जाता है। महादेव चिता की भस्म से श्रृंगार करते हैं। 

 

Created On :   2 July 2017 4:24 PM IST

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