बच्चों में दिखें ये लक्षण तो हो जाएं सचेत, जानें दिल की बीमारियों के कारण, लक्षण और इलाज
डिजिटल डेस्क, इंदौर। आज हृदयरोग के मरीजों की संख्या दुनियाभर में लगातार बढ़ती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण अनियमित खानपान और दिनचर्या भी है। लेकिन कई लोगों में हार्ट संबंधित बीमारियां अनुवांशिक कारणों से भी होती है। वर्तमान में कई बार बच्चों में हार्ट की बीमारी के मामले देखने या सुनते को मिलते हैं, यह समस्या कई लोगों में जन्म के समय ही हो सकती है, जो कि बाद में नजर आती हैं। ऐसे में जन्म के बाद बच्चे की हर हरकत पर खास ध्यान देना चाहिए।
चिकित्सकों के अनुसार, आप घर जाते हैं और देखते हैं कि उनके नीले होंठ या हाथ-पैर हैं, तो यह सियानोटिक हृदय रोग हो सकता है। इंदौर स्थित कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के कन्सल्टेन्ट ऑफ कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी डॉक्टर प्रदीप पोखरना हार्ट कॉन्जेनिटल डिजीज के बारे में विस्तार से दी है। जिसमें हार्ट कॉन्जेनिटल डिजीज के कारण लक्षण और बचाव के बारे में बताया है।
हार्ट कॉन्जेनिटल डिजीज
जन्म के समय किसी भी बच्चे के हार्ट में कोई भी डिफेक्ट होने को ‘कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज’ कहा जाता है। आम भाषा में इसे लोग दिल में छेद होने की समस्या से जानते हैं लेकिन इसके अलावा भी इस बीमारी में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। इसमें बच्चों के हृदय से संबंधित समस्याएं जैसे- वैलव्युलर हार्ट डिजीज और नसें गलत जुड़ी हुई होना आदि समस्याएं होती हैं। यदि समय पर ऐसे बच्चों को उचित इलाज नहीं मिल पाता है तो यह हार्ट कॉन्जेनिटल डिजीज जानलेवा भी हो सकती है।
कारण
गर्भावस्था में भ्रूण के विकसित होने के दौरान ही कई कारणों से दिल का विकास प्रभावित होता है। कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज होने के कई कारण हो सकते हैं, जिससे बच्चों में जन्मजात ही यह बीमारी होती है। इसमें मुख्य ये कारण हो सकते हैं -
• परिवार में किसी सदस्य में यह बीमारी होने पर कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज बीमारी बच्चों में ट्रांसफर हो सकती है।
• किसी कुपोषण से ग्रसित महिला के गर्भवती होने पर गर्भ में पल रहे बच्चे को यह बीमारी हो सकती है।
• गर्भावस्था के दौरान अधिक दवाओं के सेवन से कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज हो सकती है।
• प्रेगनेंसी में नशीले पदार्थों के सेवन करने से बच्चों में ऐसी बीमारियां होने की संभावना होती है।
• गर्भवती महिला को वायरल संक्रमण या अन्य बड़ी बीमारी होने से भी बच्चों में यह बीमारी हो सकती है।
• जो महिलाएं देरी से शादी करती हैं तो उनके बच्चों में भी इस तरह की बीमारी होने की संभावना हो सकती है।
लक्षण
नवजात शिशुओं में इस बीमारी के बारे में गर्भावस्था के दौरान ही अल्ट्रासाउंड के जरिए पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा बच्चों के जन्म के बाद उनमें दिखने वाले लक्षण निम्न प्रकार से हो सकते हैं -
• हार्ट बीट का तेज या अनियमित होना
• तेजी से सांस लेना या हांफना
• त्वचा का रंग नीला हो जाना
• सांस फूलना या सांस लेने में परेशानी
• दूध पीते समय बच्चे को थकान या सांस तेज होना
• शरीर के अंगों में सूजन होना
• बच्चे के वजन में कमी होना
• हमउम्र के बच्चों की तरह बच्चे का मानसिक और शारीरिक रूप से विकास न हो पाना
भारत में इलाज
भारत इस बीमारी के इलाज को लेकर भाग्यशाली रहा है क्योंकि यहां इस तरह की बीमारी के उपचार के लिए सभी तरह की एडवांस टेक्नोलॉजी उपलब्ध है जिससे पीड़ित बच्चों का इलाज समय पर किया जा सकता है और वे हमेशा के लिए स्वस्थ भी हो सकते हैं। जिस हॉस्पिटल में 24 घंटे डॉक्टरों की सुविधा यानि FTSS (Full Time Speciality System) हो वहां बच्चों का इलाज किया जाना चाहिए, ताकि उन्हे डॉक्टरों की देखरेख में सही इलाज मिल सके। भारत स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से काफी मजबूत है, जहां मुश्किल से मुश्किल बीमारियों का इलाज संभव है।
Created On :   14 Feb 2023 4:30 PM IST