यूपी में गैर कोरोना रोगियों के लिए कठिन समय

Tough times for non-corona patients in U.P.
यूपी में गैर कोरोना रोगियों के लिए कठिन समय
यूपी में गैर कोरोना रोगियों के लिए कठिन समय

लखनऊ, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। योगी आदित्यनाथ सरकार कोरोनावायरस के प्रकोप से निपटने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने के लिए पूरा जोर लगाकर काम कर रही है, इस समय गैर-कोरोनोवायरस रोगियों को कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।

लखनऊ में छह प्रमुख अस्पतालों में ओपीडी सुविधा बंद कर दी गई है, जिसमें संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी , बलरामपुर अस्पताल, राम मनोहर लोहिया संस्थान चिकित्सा विज्ञान, श्यामा प्रसाद सिविल अस्पताल और लोक बंधु अस्पताल शामिल हैं।

ये सभी अस्पताल अब कोरोनावायरस मामलों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिसके कारण सामान्य रोगियों के लिए इलाज नहीं हो पा रहा है।

अकेले केजीएमयू में ओपीडी में रोजाना करीब 4,000-5,000 मरीज आते हैं जबकि एसजीपीजीआईएमएस में रोजाना कम से कम 2,000, राम मनोहर लोहिया अस्पताल एक दिन में लगभग 18,000 , बलरामपुर अस्पताल में लगभग 2,000 और लोक बंधु अस्पताल में रोजाना 1,000 मरीज आते हैं।

ये सभी अस्पताल अब केवल संदिग्ध/पुष्टि किए गए कोरोनावायरस मामलों को स्वीकार कर रहे हैं और आपातकालीन सेवा दे रहे हैं।

किरण कुमार, जिनका घर में सीढ़ियों से गिरने के बाद पैर फ्रैक्च र हो गया था, उसे सोमवार को केजीएमयू से लौटा दिया गया।

उन्होंने कहा, मैं एक एक्स-रे भी नहीं करवा पाया क्योंकि स्टाफ की कमी के कारण डायग्नोस्टिक क्लीनिक बंद हैं। मैं प्राइवेट आथोर्पेडिक चिकित्सकों से अप्वाइंटमेंट लेने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन उनमें से अधिकांश कॉल नहीं ले रहे हैं।

कैंसर के रोगियों के लिए स्थिति और खराब है क्योंकि अधिकांश अस्पताल कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के लिए नए रोगियों को एडमिट नहीं कर रहे हैं।

अब्दुल हसन हाशमी, जिनका छोटा भाई मुंह के कैंसर से पीड़ित है और जिसे कीमोथेरेपी करवाना था, उसे लखनऊ के अस्पतालों से लगातार दूसरी बार एडमिट करने से मना कर दिया।

उन्होंने आईएएनएस को बताया, हम सुल्तानपुर में रहते हैं और मैं दो बार लखनऊ गया था लेकिन कोई भी अस्पताल मेरे भाई के इलाज के लिए राजी नहीं था। अगर कीमोथेरेपी नहीं होती है, तो कैंसर बढ़ सकता है।

अंत में वह अपने भाई को मोटरसाइकिल पर कानपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में ले गया, जहाँ बाद में पिछले हफ्ते कीमोथेरपी हुई, जिसमें एक बार के लिए 75,000 रुपए की लागत के साथ, सामान्य-सत्र के लिए 30,000 रुपये प्रति सत्र का शुल्क लिया गया।

इलाज नहीं मिलने से दंत रोगियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्रतिदिन 15,000 से अधिक प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में मरीज आते हैं।

इंडियन डेंटल एसोसिएशन (आईडीए) के लखनऊ चैप्टर अध्यक्ष आशीष सिंह ने कहा, चूंकि दंत चिकित्सा मुद्दों को एक अपरिहार्य चिकित्सा सेवा या आपातकालीन स्थिति के रूप में नहीं माना जाता है, इसलिए हमारे स्टाफ को पास जारी नहीं किए जा रहे हैं। हम ओपीडी चलाने में असमर्थ हैं। हम इलाज नहीं कर रहे हैं। वीडियो कॉल के माध्यम से मरीजों का इलाज कर रहे हैं। लेकिन हर मरीज वीडियो कॉल नहीं कर सकता।

दंत चिकित्सकों का यह भी दावा है कि वे निजी क्लीनिक चलाने में असमर्थ हैं क्योंकि स्टाफ को लॉकडाउन के लिए पास प्रदान नहीं किए जा रहे हैं।

Created On :   7 April 2020 8:00 PM IST

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