Ozone Layer: आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में हुए छेद के भरने का क्या है कारण?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोरोना काल के इस जटिल समय में आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में हुआ सबसे बड़ा छेद अब भर गया है। पिछले हफ्ते, यूरोपियन यूनियन की कोपरनिकस एटमॉस्फेरिक मॉनिटरिंग सर्विसेज (CAMS) ने इस बात की पुष्टि की थी। लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ? क्या लॉकडाउन में दुनिया में बड़े पैमाने पर चल रही औद्योगिक गतिविधियां बंद होने के चलते इसका सीधा फायदा ओजोन परत को हुआ है या फिर इसकी वजह कुछ और है। आइए जानते हैं:
क्या है ओजोन परत में हुए छेद के भरने का कारण?
वैज्ञानिकों को फरवरी में उत्तरी ध्रुव की ओजोन लेयर पर एक बड़ा छेद नजर आया था जो कि 10 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैल गया। लेकिन अब ये छेद भर गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार ओजोन परत के छेद को कम करने के पीछे मुख्य कारण पोलर वर्टेक्स है न कि लॉकडाउन। पोलर वर्टेक्स ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवा लाता है। इस साल का पोलर वर्टेक्स काफी शक्तिशाली था। वर्टेक्स के परिणामस्वरूप स्ट्रैटोस्फेरिक बादलों की उत्पत्ति हुई जिसने सीएफसी गैसों के साथ प्रतिक्रिया करके ओजोन परत को नष्ट कर दिया। अब पोलर वर्टेक्स कमजोर पड़ गया है जिसके कारण ओजोन परत में सामान्य स्थिति लौट आई है।
The unprecedented 2020 northern hemisphere #OzoneHole has come to an end. The #PolarVortex split, allowing #ozone-rich air into the Arctic, closely matching last week"s forecast from the #CopernicusAtmosphere Monitoring Service.
— Copernicus ECMWF (@CopernicusECMWF) April 23, 2020
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क्या है ओजोन लेयर का महत्व?
ओजोन की परत सूर्य से आने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती है। यह किरणें त्वचा कैंसर का प्रमुख कारण हैं। यदि इस छेद का दायरा पृथ्वी के जनसंख्या वाले मध्य और दक्षिण के इलाके की ओर बढ़ता तो इससे इंसानों के लिए सीधा खतरा पैदा हो जाता। ओजोन (रासायनिक रूप से, तीन ऑक्सीजन एटम का एक मॉलिक्यूल) मुख्य रूप से ऊपरी वायुमंडल (स्ट्रैटोस्फीयर) में पाया जाता है। स्ट्रैटोस्फीयर पृथ्वी से ऊपर के 10-50 किलोमीटर के क्षेत्र को कहा जता है। ओजोन मॉलिक्यूल वातावरण में लो कंसनट्रेशन में मौजूद होते हैं, इसके बावजूद इसे ओजोन लेयर कहा जाता है। यहां तक की जहां ओजोन की परत मोटी है वहां भी कुछ ही मॉलिक्यूल मौजूद होते हैं।
क्या होता है ओजोन होल?
"ओजोन होल" वास्तव में एक होल नहीं है। स्ट्रैटोस्फीयर के जिस क्षेत्र में ओजोन का कंसनट्रेशन बेहद कम हो जाता है उस जगह को ही ओजोन होल कहते हैं। असल में धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के पास के वातावरण से हर साल ओजोन की मात्रा घटती है। इसका कारण वहां का बेहद कम तापमान होता है जिसके चलते ध्रुवों के ऊपर के बादल आपस में चिपक कर एक बड़ा पिंड बना लेते हैं। उद्योगों से निकलने वाली क्लोरीन और ब्रोमीन जैसी गैसों की इन बादलों से मिलकर ऐसी प्रतिक्रिया होती है जिसके कारण वहां स्थिति ओजोन परत का क्षरण होने लगता है।
आर्कटिक के ऊपर का छेद असामान्य बात
1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि पृथ्वी के ऊपर मौजूद ओजोन परत लगातार पतली होती जा रही है। आर्कटिक की ही तरह अंटार्कटिक के ऊपर भी जाड़ों में अत्यधिक कम तापमान के कारण छेद बड़ा हो जाता है। अंटार्कटिक के ऊपर मौजूद छेद का पता 1985 में चला था। इसका आकार 2.0 से 2.5 करोड़ वर्ग किलोमीटर तक हो सकता है और तीन से चार महीने तक रह सकता है। इससे पता चलता है कि आर्कटिक के ऊपर का छेद असल में अंटार्कटिक के छेद से कितना छोटा होता है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में इतना बड़ा छेद असामान्य बात है क्योंकि इस ध्रुव पर तापमान में आमतौर पर इतनी गिरावट नहीं आती।
Created On :   28 April 2020 5:49 PM IST