छत्तीसगढ़ : मासिक धर्म के कष्टदायी 5 दिन झोपड़ी में गुजारती हैं महिलाएं

Chhattisgarh: Women spend 5 days suffering from painful menstruation
छत्तीसगढ़ : मासिक धर्म के कष्टदायी 5 दिन झोपड़ी में गुजारती हैं महिलाएं
छत्तीसगढ़ : मासिक धर्म के कष्टदायी 5 दिन झोपड़ी में गुजारती हैं महिलाएं
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राजनांदगांव (छत्तीसगढ़), 20 फरवरी (आईएएनएस)। समाज में बदलाव की बातें भले कितनी ही की जाए, मगर रूढ़िवादी परंपराओं की जड़ें अब भी गहरी हैं। यह छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में सीतागांव जाकर देखा और समझा जा सकता है, जहां महिलाओं और युवतियों को मासिक धर्म की अवधि में तीन से पांच दिन एक झोपड़ी में गुजारने पड़ते हैं। यह झोपड़ी गंदगी से भरी और बदबूदार होती है।

राजनांदगांव जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है सीतागांव। इस गांव में कई मजरा-टोला हैं। इन मजरा-टोलों में अधिकांश आदिवासी वर्ग के लोग रहते हैं। ये लोग अभी तक अपनी पुरानी परंपराओं और कुरीतियों पर ही टिके हुए हैं। यहां परंपरा है कि मासिक धर्म की अवधि में महिलाओं और युवतियों को घर से बाहर झोपड़ी में रहना होता है।

गांव की महिला कौशल्या ने बताया, यहां महिलाओं और युवतियों को मासिक धर्म के दौरान झोपड़ी में रखे जाने की परंपरा है, जो वर्षो से चली आ रही है। जिसे मासिक धर्म होता है, उसे झोपड़ी में ही रखा जाता है। इस दौरान वह अपने घर नहीं जाती।

गांव के लोग खुद इस बात को मानते हैं कि इस झोपड़ी में न तो सफाई की व्यवस्था है और न ही इस तरफ किसी का ध्यान है। यही कारण है कि यहां की महिलाओं व युवतियों के मासिक धर्म के तीन से पांच दिन यातना भरे होते हैं। झोपड़ी गंदगी व बदबू से भरी होती है। यहां तीन से पांच दिन बिताने वाली महिला के बीमार होने की संभावना भी रहती है।

गांव के निवासी पटेल दुर्गराम ने कहा, यह परंपरा खत्म तो नहीं हो सकती, इसलिए प्रशासन को कुटिया के स्थान पर एक पक्का कमरा बनवा देना चाहिए, जहां पानी और बिजली की भी सुविधा हो।

स्थानीय लोगों ने बताया कि मासिक धर्म की अवधि में झोपड़ी में ठहरने वाली महिलाओं व युवतियों को यहीं पर चाय-नाश्ता और खाना दे दिया जाता है, क्योंकि इस दौरान वह घर में नहीं जा सकतीं।

इस मसले पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मिथिलेश चौधरी ने कहा, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ उपेक्षा का बर्ताव न हो, इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। साथ ही उन्हें स्वच्छता की आवश्यकता के बारे में भी जागरूक किया जाएगा।

जानकारों का कहना है कि यह आदिवासी बहुल इलाका है और यहां गरीबी के कारण महिलाएं सेनेटरी पैड का खर्च वहन नहीं कर पातीं। इसके अलावा उनमें जागरूकता की भी कमी है। उनका कहना है कि जहां तक सरकारी अभियानों की बात है, वे यहां की महिलाओं पर ज्यादा असर नहीं छोड़ पा रहे हैं।

Created On :   21 Feb 2020 8:07 AM GMT

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