कोविड-19 के चलते बंदिशों में अलविदा कहने पर मजबूर मृतकों के परिजन

Kin of dead forced to say goodbye in restrictions due to Kovid-19
कोविड-19 के चलते बंदिशों में अलविदा कहने पर मजबूर मृतकों के परिजन
कोविड-19 के चलते बंदिशों में अलविदा कहने पर मजबूर मृतकों के परिजन

आगरा,14 अप्रैल (आईएएनएस)। कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश मे लॉकडाउन की स्थिति बनी हुई है, जिसकी वजह से सबकुछ बंद है। इसका असर लोगों के घरों में तो पर ही रहा है, वहीं अब इसका असर श्मशान घाट और कब्रिस्तानो में भी दिखने लगा है।

जहां लोग पहले एक साथ अपने परिजनों या जान-पहचान की मौत हो जाने के बाद एक साथ नजर आया करते थे,तो अब शोसल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की वजह से इक्के-दुक्के लोग ही अंतिम संस्कार में शामिल हो पा रहे हैं। इसके अलावा जिन रीतिरिवाजों का पालन हुआ करता था, उनमें भी बदलाव आ गया है। न पूजा पाठ हो पा रही है और न ही अस्थियों को कहां विसर्जित किया जाए, ये तय हो पा रहा है।

आगरा के ताजगंज पर मौजूद शमशान घाट पर दाह संस्कार के लिए रोजाना 8 से 10 मृत लोगो के शव आ रहें हैं। दाह संस्कार के लिये पिछले कुछ दिनों में यहां लोग ज्यादा आने लगे हैं।

आईएएनएस ने यहां यहां दाह-संस्कार कराने वाले एक शख्स से बात की।

उन्होंने बताया, सिर्फ 4 से 5 लोगों को अंदर आने की इजाजत है। दाह संस्कार की प्रकिया में कोई बदलाव नही किया गया है लेकिन पहले हम लोगों को अस्थियां 2 दिन में दे देते थे या किसी को इमरजेंसी होतो 3 से 4 घंटे बाद भी द ेदिया करते थे,लेकिन अब लोग अस्थियां रख कर ही जा रहें है और बाद में ले जाने का बोलते है और इसका मुख्य कारण है लॉकडाउन की वजह से लोगों के पास विसर्जन करने की सुविधाये नही हैं।

यह पूदे जाने पर कि जिन लोगों की कोरोना वायरस की वजह से मृत्यु हुई है, उनके दाह संस्कार में किसी तरह की कोई बदलाव आया है, इसपर उन्होंने कहा, उनका शव जैसे ही आता है उसको वैसे ही संस्कार कर दिया जाता है कोई रीति रिवाज का पालन नही होता।

मनोज कुमार,जो कि किसी मृत के दाह संस्कार में शामिल होने आए थे, उन्होंने आईएएनएस को बताया, लॉकडाउन से बहुत फर्क पड़ा है, हमारे इलाके में अगर किसी की मृत्यु होती थी,तो करीबन 200 से 250 लोग जमा हुआ करते थे और पूरे रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया जाता था, लेकिन अब तो स्थिति बहुत बदल गई है। मुश्किल से 5 से 8 लोग शामिल हो रहे हैं। पहले रिवाज के अनुसार मुंडन होता था, लेकिन अब मुंडन नहीं हो पाता है और घर मे पंडित जी आने से कतरा रहे हैं। न सही से पूजा-पाठ हो पाई है।

मनोज ने कहा, अस्थियो को हरिद्वार नही ले जा पाएंगे। हमें समझ नहीं आ रहा, हम कैसे रीवाजों का पालन करें।

आईएएनएस ने जब एक कब्रिस्तान के कर्ता- धर्ता से बात की तो उनका भी यही कहना था कि भीड़ नहीं आती, बस कुछ लोग आते हैं और जब शव को दफना दिया जाता है तो हम परिवार के सदस्यों को तुरन्त यहां से जाने को बोल देते हैं।

Created On :   14 April 2020 10:00 PM IST

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