क्यों बरसाना की होली में पुरुषों पर बरसाए जाते हैं लट्ठ?

know Why is Lathamar Holi played in barsana every year?
क्यों बरसाना की होली में पुरुषों पर बरसाए जाते हैं लट्ठ?
क्यों बरसाना की होली में पुरुषों पर बरसाए जाते हैं लट्ठ?


 

डिजिटल डेस्क । होली का त्यौहार नजदीक है और हर कोई होली की तैयारियों में बिजी है। रंग, पिचकारी और मिठाईयां सब तैयार हैं और होली में कई लोगों के सीक्रेट प्लान्स भी तैयार हैं। जैसे कि कैसे छुपकर रंग लगाना हैं, कहां से कलर की बाल्टी पलटनी है और कहां से छुपकर भागना हैं। होली में केवल यही चीजें हैं जो मजा देती हैं। हर जगह का होली खेलने का अंदाज अलग होता है। भारत में जितने राज्य है उतनी ही होली से जुड़ी परंपराएं हैं, लेकिन उत्तरप्रदेश के बरसाना की होली पुरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां की लट्ठमार होली देखने के लिए देश विदेश से कई लोग हर साल यहां आते हैं। होली के दिन यहां हर औरत के हाथ में लट्ठ होते है। जोकि पुरुषों पर बरसते हैं, लेकिन आखिर रंग-गुलाल छोड़ कर यहां लट्ठमार होली खेलने की वजह क्या है? आईए हम आपको बताते हैं कि लठ्ठमार होली और क्यों इतने धूमधाम से मनाई जाती है।

 

 

ब्रजवासी लठ्ठमार होली की परंपरा को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। लठ्ठमार होली केवल आनंद के लिए ही नहीं बल्कि ये नारी सशक्तीकरण का भी प्रतीक मानी जाती है। इसके पीछे की कहानी श्रीकृष्ण से जुड़ी है।

क्या है लट्ठमार होली की कहानी?

भगवान श्रीकृष्ण महिलाओं का सम्मान करते थे और मुसीबत के समय में हमेशा उनकी मदद करते थे। लठ्ठमार होली में श्रीकृष्ण के उसी संदेश को प्रदर्शित किया जाता है।

 

राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है लट्ठमार होली 

थोड़े से चुलबुले अंदाज में महिलाएं लठ्ठमार होली में अपनी ताकत का प्रदर्शन करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा से होली खेलने के लिए बरसाना आया करते थे, लेकिन राधा जी अपनी सहेलियों के साथ बांस की लाठियों से उन्हें दौड़ाती थीं।

 

आज भी जारी है परंपरा

अब लठ्ठमार होली बरसाना की परंपरा बन चुकी है। ब्रजवासी हर साल इस त्यौहार को पूरे जोश के साथ मनाते हैं। नन्दगांव के वासी बरसाना में होली खेलने आते हैं। होली खेलने के लिए वे आकर गोपियों को ललकारते हैं। गोपियां लाठी लेकर आती हैं।

 

 

नाच-गाने के साथ मनाई जाती है होली

पहले से तैयार गोपी बचाव के लिए ढाल अपने साथ लाते हैं। जब गोपियां सिर पर लट्ठ से वार करती हैं तो नन्दगांव के लोग ढाल से रोक लेते हैं। मौज-मस्ती के साथ-साथ पारंपरिक गाना-बजाना भी होता है। रंगों में सराबोर ग्वालों के चुटीले अंदाज बहुत पसंद आते हैं। इस दौरान ब्रजवासियों के लिए बरसाने में ठंडई की भी व्यवस्था की जाती है। वो खाते-पीते हैं और होली खेलते हैं।

Created On :   25 Feb 2018 11:17 AM IST

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