सिर्फ बिरयानी ही नहीं, हैदराबादी हलीम भी है लाजवाब
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। खाने-पीने के शौकीनों के बीच जब भी जायकेदार बिरयानी की बात होती है तो हैदराबादी बिरयानी सबकी पहली पसंद होती है। कहते हैं कि इसका स्वाद इसके कद्रदानों की जुबान पर हमेशा ताजा रहता है, लेकिन हैदराबाद की सिर्फ बिरयानी ही नहीं, बल्कि यहां का हलीम भी दुनियाभर में मशहूर है। रमजान के दौरान तो हलीम का जायका बिरयानी पर भी भारी पड़ता है। दरअसल इस पाक माह में हलीम नाम का एक पकवान तैयार किया जाता है, जो कि गेहूं, दाल और मांस से बना होता है। कहा जाए तो हलीम बहुत कुछ दलिया जैसा होता है। रमजान के दौरान हलीम कि डिमांड इतनी ज्यादा होती है कि खाने पीने की दूसरी चीजों की मांग से अचानक कम हो जाती है। आप इसी बात से अंदाजा लगा लीजिए कि पिछले साल रमजान के दौरान हलीम की बिक्री से 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कारोबार हुआ था।
रमजान में ऐसे बढ़ जाती है डिमांड
हलीम एक ऐसा पकवान है जो कई मुस्लिम शादियों के मेन्यू में मिलता है। कुछ शहरों की होटलों में तो ये साल भर उपलब्ध रहता है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा डिमांड रमजान के महीने में ही होती है। ये डिश सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि दूसरे समुदाय के लोगों को भी बेहद पसंद आती है। लोग इस पकवान को खाने के लिए रमजान का बेसब्री से इंतजार करते हैं।
तो कुछ ऐसे हुई थी हलीम की खोज
रमजान शुरू होते ही हैदराबाद में होटलों के सामने भट्टी या फिर ईंट और मिट्टी के बने ओवन नजर आने लगते हैं। हलीम को बनाने में करीब 10 से 12 घंटे लगते हैं और खास बात ये है कि इसे लकड़ी के चूल्हे में पकाया जाता है। हलीम मूल रूप से एक अरबी पकवान है, जो ईरान और अफगानिस्तान से होता हुआ भारत तक चला आया। 6वीं शताब्दी के फारसी राजा खुसरो के दौर में पहली बार हलीम तैयार किया गया था।
हैदराबाद से हलीम को मिली पहचान
कहा जाता है कि कई दशकों के बाद यमन के एक शेफ ने इस डिश को दोबारा तैयार किया था, जिसे साल 1930 में हैदराबाद के तत्कालीन निजाम के लिए बनाया गया था। इसके बाद कुछ ईरानी होटलों ने इसे ईरान में बेचना शुरू कर दिया था। हैदराबाद के लोगों के मुताबिक हलीम को दोबारा दुनिया भर में मशहूर करने का श्रेय हैदराबाद की एक बेकरी पिस्ता हाउस को जाता है, जिसने 90 के दशक में हलीम बनाने की शुरुआत की थी।
Created On :   6 Jun 2018 3:45 PM IST