संकट को हम बना सकते हैं बड़ा अवसर, ग्रामोदय से राष्ट्रोदय की ओर जाने का वक्त : विशेषज्ञ
नई दिल्ली, 9 मई (आईएएनएस)। कोरोना वायरस के कारण देश में हुए लॉकडाउन के बाद अब अर्थव्यवस्था के नए मॉडल को लेकर फिर से बहस छिड़ चुकी है। दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों से बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों के गांव लौटने के बाद अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती पर जोर दिए जाने की जरूरत विशेषज्ञ जता रहे हैं। आर्थिक मामलों पर कई किताबें लिख चुके और बिजनेस इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. मानस पांडेय ने ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के फॉमूर्ले के तहत केंद्र सरकार से खेती-किसानी और ग्रामीण रोजगार के ढांचे को मजबूत बनाने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि इससे दीन दयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख का सपना साकार हो सकता है।
उनका कहना है कि हर संकट अपने साथ एक अवसर भी लाता है। कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट को बड़ा अवसर बनाने का केंद्र और राज्य सरकारों के पास मौका है। अगर केंद्र सरकार ने भारतीय माहौल के अनुकूल अर्थव्यवस्था के मॉडल पर युद्धस्तर से काम किया तो फिर पलायन की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।
इंडियन कॉमर्स एसोसिएशन के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रो. मानस पांडेय ने आईएएनएस से कहा, प्रथम प्लानिंग कमीशन के दौरान कृषि को प्राथमिकता दी गई थी। मगर, धीरे-धीरे कृषि सेक्टर उपेक्षा का शिकार होता गया। कभी जो कृषि सेक्टर जीडीपी का 50 प्रतिशत अंश देश की अर्थव्यवस्था में अदा करता था, वह आज गिरकर करीब 15 प्रतिशत पर पहुंच गया है। वजह कि सरकारों और सिस्टम की उपेक्षा के कारण खेती-किसानी घाटे का सौदा बनकर रह गई। उत्पादन, लागत और बचत के बीच उचित तालमेल न रहने से खेती-बाड़ी से जुड़े परिवारों का महानगरों की तरफ पलायन शुरू हुआ। पहले जहां एक किसान पूरे परिवार के साथ खेती में जुटा रहता था। अब पैसे कमाने के लिए किसानों के बच्चे महानगरों के कल-कारखानों का रुख करने लगे। आज उन्हीं कल-कारखानों की चिमनियों ने धुआं उगलना बंद किया तो फिर बेगाने होकर घर लौटने को मजबूर हुए।
प्रो. मानस पांडेय उदाहरण देते हुए कहते हैं, हम-आप दुकानों से जो दूध खरीदते हैं, वह किसी विदेशी ब्रांड का दूध नहीं होता। अमूल, पराग..जैसे ब्रांड के दूध गांवों में बनी सहकारी समितियों की सफलता की गाथाएं हैं। गांवों में ही बनी दुग्ध समितियां आज पूरे देश को दूध आपूर्ति करतीं हैं। जिस तरह से सहकारिता(कोऑपरेटिव) व्यवस्था के तहत दुध सप्लाई का चेन सप्लाई मैनेजमेंट सिस्टम तैयार हुआ है, इसी तरीके से सरकारें क्यों नहीं अन्य कृषि उत्पादों की भी सप्लाई चेन मैनेजमेंट सिस्टम तैयार करतीं। अगर किसानों के खेत से सीधे उपज खरीदकर उचित मूल्य देने की व्यवस्था हो तो बिचौलिए शोषण नहीं कर सकेंगे। कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन(वैल्यू एडिशन) की तरफ भी फोकस करना होगा।
वीर बहादुर सिंह यूनिवर्सिटी के बिजनेस इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर मानस पांडेय के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा सर्विस सेक्टर औसतन 50 से 55 प्रतिशत का अंशदान करता है। दूसरे स्थान पर मैन्यूफैक्च रिंग सेक्टर है, जिसकी हिस्सेदारी करीब 29 से 30 प्रतिशत है। वहीं 15 प्रतिशत के करीब एग्रीकल्चर सेक्टर हिस्सेदारी निभाता है। आज कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार सर्विस सेक्टर और मैन्युफैक्च रिंग पर ही पड़ी है। ऐसे में हालात हमें कृषि की तरफ से फिर से लौटने की तरफ इशारा करता है।
मानस पांडेय ने कहा, लॉकडाउन के कारण मैं यह नहीं कहूंगा कि रोजगार खत्म हो गया, मगर रोजगार में ठहराव की समस्या जरूरी पैदा हो गई है। ऐसे में अगर सरकार आर्थिक नियोजन की तरफ ध्यान देते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास, मुद्रा आदि योजनाओं के जरिए लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की युद्धस्तर पर मुहिम चलाए तो फिर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी।
प्रो. मानस पांडेय ने सवाल उठाते हुए कहा कि यूपी, बिहार के तमाम मजदूर तेलंगाना और पंजाब में बड़े-बड़े किसानों के यहां मजदूरी करने जाते हैं। उनके खेतों में काम करते हैं। सिर्फ इसलिए कि उन्हें वहां ज्यादा पैसे मिल जाते हैं। अगर अन्य राज्यों में भी खेती-किसानी को सु²ढ़ किया जाए तो फिर ये मजदूर अपने गांव या पास-पड़ोस में रहकर भी जीवनयापन कर सकते हैं।
बिजनेस इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. मानस पांडेय ने कहा कि दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, हैदराबाद, मुंबई जैसे शहर अधिक जनसंख्या का दबाव पहले से झेल रहे हैं। ऐसे में अगर सरकार छोटे-छोटे शहरों में नए आर्थिक पॉकेट विकसित करने पर जोर दे तो फिर बड़े शहरों का बोझ हल्का होगा। वहीं मजदूर अपने घर के नजदीक रोजगार पा सकते हैं।
प्रो. पांडेय ने कहा कि ग्रामीण युवाओं के कौशल विकास और उत्पादक क्षमता का विकास के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई) और मुद्रा बैंकिंग जैसी योजनाओं के जरिए देश के समावेशी विकास के लिए राष्ट्रीय एजेंडे पर जोर देने की जरूरत है जिससे ग्रामीणों में कौशल का विकास हो और रोजगार के लिए भटकाव को कम किया जा सके और स्वरोजगार के लिए गांव के लोग प्रेरित हों। इस एजेंडे के धरातल पर उतरने से गांव के लोगों की स्वास्थ्य, शिक्षा और आय से जुड़ीं समस्याओं के साथ पलायन और शोषण का समाधान भी हो सकता है। जिससे गांव के लोग और अधिक सक्रिय होकर देश की जीडीपी में योगदान कर सकेंगे।
Created On :   9 May 2020 7:30 PM IST