वर्ल्ड टीबी डे: जानिए क्या है टीबी, इसका इलाज, लक्षण और मिथ्स
- 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे है
- टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है
- उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है।
- टीबी बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है
- जो हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे में फैलती है।
डिजिटल डेस्क । 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे है और इस मौके पर हम आपसे टीबी याने कि विश्व क्षय रोग से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां साझा करेंगे। टीबी की जागरूकता को लेकर कई तरह के विज्ञापन टीवी, अखबारों और अस्पतालों में देखें होंगे। इसे लेकर कई तरह के कार्यक्रम भी चलाए जाते है । बावजूद इसके भारत में टीबी के मरीजों कमी नहीं आ रही है और इससे होने वाली मौतों के आंकड़ें भी साल दर साल बढ़ते जा रहे है। इस बात का पता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट से चलता है। वर्ल्ड टीबी डे के मौके पर पेश की गई इस रिपोर्ट में पूरी दुनिया के टीबी मरीजों की जानकारी दी गई। ये रिपोर्ट भारत के लिए तो बिल्कुल भी ठीक नहीं है। रिपोर्ट में पेश कुल मामलों में 23 फीसदी से अधिक भारत में थे। साल 2016 में टीबी से 17 लाख बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की मौत हुई हालांकि 2015 के मुकाबले इसमें चार फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। टीबी से मरने वाले मरीजों की संख्या एचआईवी पॉजिटिव लोगों की मृत्यु को छोड़कर 2015 में 478,000 और 2014 में 483,000 रही।
सोचने वाली बात ये है कि तमाम कोशिशों के बाद भी भारत में टीबी के हालात सुधर क्यों नहीं रहे है। दरअसल हम चाहे जितने विज्ञापन देख लें, लेकिन जब तक इस बीमारी को सही ढंग से नहीं समझेंगे, तब तक भारत में इस बिमारी के जड़ें खत्म नहीं होंगी। आइए जानते है टीबी से जुड़ी कुछ अहम जानकारियों के बारे में।
क्या है टीबी?
टीबी बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है, जो हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे में फैलती है। ये किसी को भी हो सकती है। टीबी का बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है। खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदों से ये इन्फेक्शन फैलता है। अगर टीबी मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए और वो खांस नहीं रहा हो तब भी इसके इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है। हालांकि फेफड़ों के अलावा बाकी टीबी एक से दूसरे में फैलनेवाली नहीं होती और आम विश्वास के उलट ये पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली बीमारी भी नहीं है।
टीबी के नुकसान
टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है। मसलन फेफड़ों में टीबी है तो फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है, यूटरस में है तो इनफर्टिलिटी (बांझपन) की वजह बनती है, हड्डी में है तो हड्डी को गला देती है, ब्रेन में है तो मरीज को दौरे पड़ सकते हैं, लिवर में है तो पेट में पानी भर सकता है आदि।
टीबी के लक्षण
2 हफ्ते से ज्यादा लगातार खांसी, खांसी के साथ बलगम आ रहा हो, कभी-कभार खून भी, भूख कम लगना, लगातार वजन कम होना, शाम या रात के वक्त बुखार आना, सर्दी में भी पसीना आना, सांस उखड़ना या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना, इनमें से कोई भी लक्षण हो सकता है और कई बार कोई लक्षण नहीं भी होता
कैंसर या ब्रॉन्काइटिस से अलग कैसे टीबी के कई लक्षण कैंसर और ब्रॉन्काइटिस के लक्षणों से भी मेल खाते हैं। ऐसे में ये तय करना डॉक्टर के लिए जरूरी होता है कि इन लक्षणों की असल वजह क्या है। वैसे, तीनों बीमारियों में फर्क बतानेवाले प्रमुख लक्षण हैं:
- ब्रॉन्काइटिस में सांस लेने में दिक्कत होती है और सांस लेते हुए सीटी जैसी आवाज आती है।
- कैंसर में मुंह से खून आना,
- वजन कम होना जैसी दिक्कतें हो सकती है लेकिन आमतौर पर बुखार नहीं आता।
- टीबी में सांस की दिक्कत नहीं होती और बुखार आता है।
किसको खतरा ज्यादा?
अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि कमजोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता। जब कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। ये किसी को भी हो सकता है क्योंकि ये एक से दूसरे में संक्रमण से फैलता है। स्मोकिंग करने वाले को टीबी का खतरा ज्यादा होता है। डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड लेने वालों और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा। कुल मिला कर उन लोगों को खतरा सबसे ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) कम होती है।
डायग्नोसिस कैसे?
शरीर के जिस हिस्से की टीबी है, उसके मुताबिक टेस्ट होता है - फेफड़ों की टीबी के लिए बलगम जांच होती है, जोकि 100-200 रुपये तक में हो जाती है।
सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटर पर ये फ्री की जाती है - बलगम की जांच 2 दिन लगातार की जाती है। ध्यान रखें कि थूक नहीं, बलगम की जांच की जाती है। अच्छी तरह खांस कर ही बलगम जांच को दें।
थूक की जांच होगी तो टीबी पकड़ में नहीं आएगी - अगर बलगम में टीबी पकड़ नहीं आती तो AFB कल्चर कराना होता है। ये 2000 रुपए तक में हो जाती है, लेकिन इनकी रिपोर्ट 6 हफ्ते में आती है। ऐसे में अब जीन एक्सपर्ट जांच की जाती है, जिसकी रिपोर्ट 4 घंटे में आ जाती है। इस जांच में ये भी पता चल जाता है कि किस लेवल की टीबी है और दवा असर करेगी या नहीं। सरकार ने इस टेस्ट के लिए 2000 रुपये की लिमिट तय की हुई है।
कई बार छाती का एक्स-रे भी किया जाता है, जो 200-500 रुपये तक में हो जाता है। किडनी की टीबी के लिए यूरीन कल्चर टेस्ट होता है। ये भी 1500 रुपये तक में हो जाता है। यूटरस की टीबी के लिए सर्वाइकल स्वैब लेकर जांच करते हैं। अगर गांठ आदि है तो वहां से फ्लूइड लेकर टेस्ट किया जाता है। कई बार सीटी स्कैन कराया जाता है, जिस पर 4000 रुपये तक खर्च आता है। - कमर में लगातार दर्द है और दवा लेने के बाद भी फायदा नहीं हो रहा तो एक्सरे-एमआरआई आदि की सलाह दी जाती है। एक्सरे 300-400 रुपये में और एमआरआई 3500 रुपये तक में हो जाती है।
मिथ
- टीबी ठीक नहीं होती या लौट आती है टीबी का इलाज पूरी तरह मुमकिन है। जो लोग ठीक नहीं होते, उसकी वजह बीच में इलाज छोड़ना होता है। ऐसे ही लोगों में ये बीमारी लौटकर आती है। लोग ये भी मानते हैं कि अगर घुटने की टीबी है तो घुटना बदलने पर भी दोबारा टीबी हो जाती है। ये भी गलत है। घुटना बदलने पर घुटने में दोबारा टीबी के चांस ज्यादातर नहीं होते।
- गरीबों में ही होती है ये बीमारी अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार को टीबी होना ये साबित करता है कि ये बीमारी किसी को भी हो सकती है। ये एक से दूसरे को लगती है, इसलिए किसी को और कभी भी हो सकती है। गरीबों में होने की वजह है कि उनकी इम्युनिटी कमजोर होती है। ऐसे में वे जल्दी बैक्टीरिया की चपेट में आ जाते हैं।
- प्रेग्नेंट महिलाओं को दवा नहीं खानी चाहिए टीबी के इलाज का पूरा कोर्स जरूरी है। प्रेग्नेंसी के दौरान भी मां की दवा जारी रखी जाती है। इन दवाओं का बच्चे पर कोई बुरा असर नहीं होता।
- सरकारी दवाएं ज्यादा असरदार नहीं सरकारी दवाएं और डॉट्स प्रोग्राम भी प्राइवेट अस्पतालों के इलाज की तरह ही असरदार हैं। दवाओं में कोई फर्क नहीं है। उलटे फायदा ये है कि सरकारी अस्पतालों में ये फ्री मिलती हैं। हां, दवाएं पूरी खानी चाहिए। फर्स्ट लेवल की टीबी के ठीक होने के 95 फीसदी तक चांस होते हैं। लेकिन अगर दवा पूरी न खाएं और टीबी सेकंड लेवल पर चली जाए तो ठीक होने के चांस कम होकर 60 फीसदी ही रह जाते हैं।
- टीबी सिर्फ फेफड़ों की होती है टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। हालांकि ज्यादा मामले लंग्स की टीबी के होते हैं।
टीबी का इलाज
टीबी का इलाज पूरी तरह मुमकिन है। सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटरों में इसका फ्री इलाज होता है। - सबसे जरूरी है कि इलाज पूरी तरह टीबी ठीक हो जाने तक चले। बीच में छोड़ देने से बैक्टीरिया में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और इलाज काफी मुश्किल हो जाता है क्योंकि आम दवाएं असर नहीं करतीं। - इस स्थिति को MDR/XDR यानी मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंट/एक्सटेंसिवली ड्रग्स रेजिस्टेंट कहते हैं। आमतौर पर हर 100 में 2 मामले MDR के होते हैं। MDR के मामलों में से 7 फीसदी XDR के होते हैं, जोकि और भी नुकसानदे है। - प्राइवेट अस्पतालों में भी इसका इलाज ज्यादा महंगा नहीं है। आमतौर पर दवाओं पर महीने में 300-400 रुपये खर्च होते हैं। लेकिन अगर XDR/MDR वाली स्थिति हो तो इलाज महंगा हो जाता है। - टीबी का इलाज लंबा चलता है। 6 महीने से लेकर 2 साल तक का समय इसे ठीक होने में लग सकता है। जनरल और यूटरस की टीबी का इलाज 6 महीने, हड्डी या किडनी की टीबी का 9 महीने और MDR/XDR का 2 साल इलाज चलता है। - इलाज शुरू करने के शुरुआती 2 हफ्ते से लेकर 2 महीने तक भी इन्फेक्शन फैल सकता है क्योंकि उस वक्त तक बैक्टीरिया एक्टिव रह सकता है। ऐसे में इलाज के शुरुआती दौर में भी जरूरी एहतियात बरतना चाहिए। - मरीज इलाज के दौरान खूब पौष्टिक खाना खाए, एक्सरसाइज करे, योग करे और सामान्य जिंदगी जिए।
क्या है DOTS -
- डॉट्स (DOTS) यानी ‘डायरेक्टली ऑब्जर्व्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स’ टीबी के इलाज का अभियान है।
- इसमें टीबी की मुफ्त जांच से लेकर मुफ्त इलाज तक शामिल है।
- इस अभियान में हेल्थ वर्कर मरीज को अपने सामने दवा देते हैं ताकि मरीज दवा लेना न भूले।
- हेल्थ वर्कर मरीज और उसके परिवार की काउंसलिंग भी करते हैं। साथ ही, इलाज के बाद भी मरीज पर निगाह रखते हैं।
- इसमें 95 फीसदी तक कामयाब इलाज होता है।
- दिल्ली एनसीआर में 7 डॉट्स सेंटर और 18 डॉट्स कम माइक्रोस्कोपिक सेंटर हैं।
लापरवाही पर सजा टीबी फैलाने पर सजा का भी प्रावधान है। आईपीसी की धारा 269 और 270 के मुताबिक टीबी का सही से इलाज न कराने और इसे दूसरों तक फैलाने के लिए 6 महीने तक की सजा हो सकती है। XDR टीबी फैलाने पर 1 साल तक की सजा हो सकती है।
बचाव कैसे करें?
अपनी इम्युनिटी को बढ़िया रखें। न्यूट्रिशन से भरपूर खासकर प्रोटीन डाइट (सोयाबीन, दालें, मछली, अंडा, पनीर आदि) लेनी चाहिए। कमजोर इम्युनिटी से टीबी के बैक्टीरिया के एक्टिव होने के चांस होते हैं। दरअसल, टीबी का बैक्टीरिया कई बार शरीर में होता है लेकिन अच्छी इम्युनिटी से ये एक्टिव नहीं हो पाता और टीबी नहीं होती।
- ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर न रहें और वहां जाने से परहेज करें।
- टीबी के मरीज से थोड़ा दूर रहें। कम-से-कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखें।
- मरीज को हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहना चाहिए। कमरे में हवा आने दें। पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके।
- मरीज स्प्लिट एसी से परहेज करे क्योंकि तब बैक्टीरिया अंदर ही घूमता रहेगा और दूसरों को बीमार करेगा।
- मरीज को मास्क पहनकर रखना चाहिए। मास्क नहीं है तो हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से कवर कर लेना चाहिए। इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में डालें।
- ध्यान रखना चाहिए कि मरीज ये यहां-वहां थूके नहीं। मरीज किसी एक प्लास्टिक बैग में थूके और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें।
- मरीज ऑफिस, स्कूल, मॉल जैसी भीड़ भरी जगहों पर जाने से परहेज करे। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी यूज करने से बचे।
क्या न करें?
-खुले में न थूकें।
- सिर्फ एक्सरे पर भरोसा न करें।
-कल्चर टेस्ट कराएं।
- डॉक्टर से पूछे बिना दवा बंद न करें।
बच्चों में टीबी
अगर बच्चों को टीबी हो जाए तो काफी घातक होती है।
- इसलिए पैदा होते ही बच्चे को BCG का टीका लगाया जाता है।
- बच्चे को टीबी हो जाए तो उसके पूरे शरीर में टीबी फैल सकती है। इसे मिलिएरी (miliary) टीबी कहा जाता है।
- बच्चे के दिमाग तक इसका असर हो जाए तो उस स्थिति को मैनेंजाइटिस (manengitis) कहा जाता है। ये स्थित घातक हो सकती है।
महिलाओं में टीबी
अगर किसी महिला को यूटरस की टीबी हो जाए तो उसके मां बनने में दिक्कत आती है। हालांकि सही इलाज होने के बाद वह मां बन सकती है।
- प्रेग्नेंट महिला को अगर टीबी है तो आमतौर पर ये बीमारी मां से बच्चे को नहीं लगती।
- बच्चे को जन्म के फौरन बाद टीबी से बचाव की दवा भी दी जाती है।
- दूध पिलाने वाली मां को भी दवा जारी रखनी होती है। बच्चे को दूध आदि पिलाने के दौरान मां को मुंह ढककर रखना चाहिए ताकि बच्चे को इन्फेक्शन न हो।
मरीज क्या करें?
अगर 3 हफ्ते से ज्यादा खांसी है तो डॉक्टर को दिखाएं।
- दवा का पूरा कोर्स करें, वह भी नियमित तौर पर।
- खांसते हुए मुंह और नाक पर नैपकिन रखें।
- न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खाएं।
- बीड़ी सिगरेट, हुक्का, तंबाकू, शराब आदि से परहेज करें।
Created On :   24 March 2018 11:03 AM IST