6 हजार करोड़ की सालाना चोट खाने वाले 25 हजार आढ़तियों ने किसानों को भड़काया : भाजपा प्रवक्ता (एक्सक्लूसिव)
- 6 हजार करोड़ की सालाना चोट खाने वाले 25 हजार आढ़तियों ने किसानों को भड़काया : भाजपा प्रवक्ता (एक्सक्लूसिव)
नई दिल्ली, 30 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मानना है कि दिल्ली सीमा पर किसानों के आंदोलन के पीछे पंजाब के आढ़तियों, बिचौलियों और कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक संगठनों का हाथ है। भाजपा के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का दावा है कि नए कानून के कारण सालाना छह हजार करोड़ रुपये के कमीशन पर चोट पहुंचता देख 25 हजार आढ़तियों ने आम किसानों को भड़काना शुरू कर दिया। जबकि नए बने तीनों कानून किसानों के हित में हैं। भाजपा को उम्मीद है कि सही जानकारी मिलने पर किसानों के बीच नए कानूनों को लेकर गलतफहमी दूर हो जाएगी।
केंद्र सरकार और भाजपा के बीच आर्थिक मामलों में सेतु की भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा कि पिछले 20 साल का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि कई कमेटियों ने किसानों के लिए वैकल्पिक बाजार बनाने पर जोर दिया है। स्वामीनाथन कमेटी हो, पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी हो या फिर शांता कुमार समिति की रिपोर्ट, सभी ने इस दिशा में व्यापक बदलाव की जरूरत बताई थी।
गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने किसानों के आंदोलन के पीछे आढ़तियों और राजनीतिक दलों की सांठगांठ बताई। उन्होंने कहा, पंजाब में 25 हजार आढ़ती हैं। नए कानून से सालाना छह हजार करोड़ रुपये की कमाई पर चोट पड़ी है। साढ़े आठ प्रतिशत उनका कमीशन होता था। जिस तरह से नए कानूनों से एमएसपी और मंडी व्यवस्था खत्म होने की झूठी बात जोड़कर आंदोलन किया जा रहा है, उसमें राजनीति की बू आती है। मुझे लगता है कि आढ़तियों और उनसे मिले हुए कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने किसानों को भड़काने का काम किया है।
शत प्रतिशत एमएसपी की खरीद के सवाल पर उन्होंने कहा कि शांता कुमार की रिपोर्ट उठाकर देखेंगे तो पहले कुल उत्पादन का सिर्फ छह प्रतिशत फसल ही सरकार खरीदती थी। अब मोदी सरकार में सरकारी खरीद बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। यानी कि मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए बेहतर कर रही है। एमएसपी को लेकर भ्रम फैला रहे लोगों को समझना होगा कि केंद्र सरकार सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जबकि राज्य सरकारें खरीद करती है। राज्य सरकारें आर्थिक रूप से इतनी मजबूत नहीं हैं कि शत प्रतिशत खरीद वो कर पाएं और न ही उनके पास भंडारण की उचित क्षमता है।
सरकार लिखित रूप में एमएसपी का आश्वासन क्यों नहीं देती? इस सवाल के जवाब में गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि जब नए कानून का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है, तो फिर लिखकर देने की बात ही नहीं है। एमएसपी अलग विषय है, उस पर दूसरे स्तर से चर्चा हो सकती है। सरकार पहले ही कह चुकी है कि एमएसपी की मौजूदा व्यवस्था खत्म नहीं हो रही है। जैसे 70 साल से व्यवस्था चली आ रही है, वैसे ही चलती रहेगी। मंडियों की व्यवस्था भी पहले की तरह होगी। आज की डेट में एपीएमसी की मोनोपाली (एकाधिकार) किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। आढ़तिये लोकल मंडी में किसानों को फसल बेचने के लिए मजबूर करते हैं। क्योंकि उन्हें साढ़े आठ प्रतिशत कमीशन मिलता है। जबकि नए कानून से जहां लाभ मिलेगा, किसान वहीं फसल बेच सकेंगे।
कानून को लेकर किसान संगठनों से संवाद की कमी के कारण क्या यह आंदोलन खड़ा हो गया? इस पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि सरकार ने व्यापक विचार विमर्श किया है। कई रिपोर्ट की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए और किसान संगठनों से बातचीत के बाद कृषि कानूनों से जुड़े ऑर्डिनेंस जून में आए थे। किसी को समस्या थी तो जून में भी बात उठा सकते थे। अब नवंबर के अंत में आंदोलन हो रहा है। इससे पता चलता है कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है।
स्टोरेज की लिमिट में छूट के पीछे क्या कारपोरेट को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है? इस सवाल पर भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि देश में वेयर हाउसिंग की क्षमता कम है। उसके लिए स्टोरेज कैपेसिटी बनानी है। यह तभी होगा जब प्राइवेट इन्वेस्टमेंट आएगा। भारत में आवश्यक वस्तु अधिनियम (एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट) 1955 में बना था, तब देश में अनाज की कमी थी। आज देश में अनाज सरप्लस है। ऐसे मे स्टोरेज की लिमिट में रियायत देकर प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देने की कोशिश है।
एनएनएम-एसकेपी
Created On :   30 Nov 2020 3:00 PM IST