त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में कांग्रेस या बीजेपी किसके साथ जाएगी जेडीएस?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। अब लोगों की नजरें चुनाव नतीजों पर लग गई हैं। राज्य की असली सियासी तस्वीर तो मंगलवार को मतगणना के बाद ही साफ होगी, लेकिन एग्जिट पोल और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमान त्रिशंकु विधानसभा की ओर इशारा कर रहे हैं। 224 विधानसभा वाली राज्य विधानसभा में 113 सीटें जीतने वाली पार्टी सरकार बनाएगी। फिलहाल जिस तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं, इन्हें देखते हुए किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसी स्थिति में देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) राज्य की राजनीति में अचानक बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।
त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में क्या होगी जेडीएस की भूमिका
जेडीएस को सभी एग्जिट पोल में 30 से 35 सीटें मिलने का अनुमान जताया जा रहा है। बीजेपी को 110 सीटे मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है, जबकि कांग्रेस को 80-85 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसे में बहुमत के लिए जरूरी 113 सीटों के जादुई आंकड़ों तक पहुंचने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों को जेडीएस की जरूरत पड़ सकती है। अब देखना यह है कि जेडीएस इनमें से किसके साथ जाना पसंद करेगी? इसके लिए जनता दल सेक्युलर की सियासत को समझने की जरूरत है। जेडीएस की पसंद-नापसंद का अनुमान लगाने के लिए हमें पार्टी की प्राथमिकताएं , धार्मिक-जातीय समीकरण, विचारधारा और कमजोर-मजबूत पक्षों का ध्यान रखना होगा।
पिछले चुनाव में यह रही थी स्थिति
कर्नाटक में जेडीएस स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में है, तो केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा है। जेडीएस कांग्रेस और बीजेपी दोनों के साथ मिलकर सरकार बना चुकी है। सन 1999 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस को 10 सीटें, जबकि 10.42 फीसदी वोट हासिल हुए थे। 2004 में 59 सीट और 20.77 फीसदी वोट। 2008 में 28 सीट और 18.96 फीसदी वोट। 2013 में 40 सीट और 20।09 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
कांग्रेस से रहा है देवगौड़ा का पुराना नाता
जेडीएस की स्थापना एचडी देवगौड़ा ने सन 1999 में जनता दल से अलग होकर की थी। जनता दल की जड़ें 1977 में कांग्रेस के खिलाफ बनी जनता पार्टी से शुरू होती है। इसी में से कई दल और नेताओं ने बाद में जनता दल बनाई। कर्नाटक में जनता दल की कमान देवगौड़ा के हाथों में थी। उन्हीं के नेतृत्व में जनता दल ने 1994 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई और देवगौड़ा मुख्यमंत्री बने।
बदलती रही हैं सियासी भूमिकाएं
दो साल के बाद 1996 में जनता दल के नेता के रूप में कांग्रेस के समर्थन से एचडी देवगौड़ा 10 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इससे पहले अगर जाकर देखें तो 1953 में देवगौड़ा ने अपनी सियासत की शुरुआत भी कांग्रेस नेता के रूप में ही की थी, लेकिन पहली बार वह निर्दलीय के तौर पर विधायक बने थे। इमरजेंसी के दौरान जेपी मूवमेंट से जुड़े और जनता दल में आ गए।
बीजेपी के साथ भी रहे निकट रिश्ते
देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी राज्य में बीजेपी के समर्थन से भी सरकार चला चुके हैं। सन 2004 के चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी और कांग्रेस के धरम सिंह सीएम बने। सन 2006 में जेडीएस गठबंधन सरकार से अलग हो गई। फिर बीजेपी के साथ बारी-बारी से सत्ता संभालने के समझौते के तहत कुमारस्वामी जनवरी 2006 में सीएम बने। अगले साल सत्ता बीजेपी को सौंपने की जगह कुमारस्वामी ने अक्टूबर 2007 में राज्यपाल को इस्तीफा भेज दिया। जिसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा। हालांकि, बाद में जेडीएस ने बीजेपी को समर्थन का ऐलान किया। इस समझौते के तहत 12 नवंबर 2007 को बी। एस। येदियुरप्पा 7 दिन के लिए सीएम बने थे।
बीजेपी से 2008 से अलग हुए रास्ते
2008 के चुनाव में जेडीएस-बीजेपी अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 2013 में कांग्रेस जीती और सिद्धारमैया सीएम बने। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के बनने के बाद सेकुलर पॉलिटिक्स की चर्चा चली तो जेडीएस ने अपनी सियासत में फिर बदलाव किया। 14 अप्रैल 2015 को जेडीएस और 5 अन्य दलों जेडीयू-आरजेडी-सपा-इनेलो और सजपा ने बीजेपी विरोधी न्यू जनता पार्टी परिवार गठबंधन का ऐलान किया। बाद में बिहार में आरजेडी-जेडीयू अलग हो गए और जनता परिवार के इस गठबंधन को लेकर भी कोई ठोस पहल सामने नहीं आई।
जेडीएस ने कांग्रेस-बीजेपी से बनाई दूरी
जिस दिन कर्नाटक चुनाव का ऐलान हुआ था, उसी दिन पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अपील की थी कि देवगौड़ा अच्छे व्यक्ति हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कर्नाटक में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को जेडीएस से हाथ मिलाना चाहिए। इसके बाद कांग्रेस और जेडीएस के बीच कई मुलाकातें भी हुईं। देवगौड़ा ने कांग्रेस को साथ आने का न्योता भी दे दिया। कुछ ही घंटों में ही देवगौड़ा और कुमारस्वामी ने गठबंधन की संभावनाओं को पूरी तरह नकार दिया। जेडीएस ने बसपा और एनसीपी के साथ गठबंधन किया और ओवैसी की पार्टी के समर्थन से चुनाव में उतरी। इसके बाद से ही कांग्रेस और जेडीएस के बीच शुरू हुई तल्ख बयानबाजी अब तक थमी नहीं है।
कर्नाटक का राजनीतिक इतिहास जटिल
कर्नाटक का राजनीतिक इतिहास काफी जटिल रहा है। 1985 के बाद वहां कोई भी दल दोबारा सत्ता में वापस नहीं लौट सका है। जेडीएस का पुराने मैसूर इलाके में अच्छा-खासा प्रभाव है। यह देवगौड़ा परिवार का गढ़ माना जाता है। हालांकि, सन 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यहां सेंध लगाने में कामयाब रही थी। लेकिन फिर भी देवेगौड़ा परिवार का यहां अच्छा प्रभाव है।
वोक्कालिगा-लिंगायत झगड़े का जेडीएस को मिलेगा लाभ
एचडी देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में 15 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिगा समुदाय मुख्य तौर पर जेडीएस का वोट बैंक माना जाता है। वोक्कालिगा समुदाय का राज्य की राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव है। राज्य में अब तक वोक्कालिगा समाज के 6 सीएम बन चुके हैं। लिंगायत कार्ड पर बीजेपी-कांग्रेस के दांव लगाने से यह वोट बैंक फिर जेडीएस के पाले में जा सकता है। वोक्कालिगा समुदाय दक्षिण के जिलों में फैला हुआ है।
निर्णायक साबित होंगे दलित-मुस्लिम मतदाता
कर्नाटक में दलित समुदाय के 19 फीसदी मतदाता भी बहुत महत्व रखते हैं। कर्नाटक में दलित मतदाता सबसे ज्यादा हैं। इस वर्ग में काफी विभाजन हैं, लेकिन बसपा से गठबंधन कर जेडीएस इस वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए है। इसके अलावा कांग्रेस के साथ जेडीएस की लड़ाई मुस्लिम वोट बैंक को लेकर भी है। अगर जेडीएस इन वर्गों में सेंध लगाने में कामयाब रहा, तो इसकी कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ेगी। दक्षिणी जिलों में बीजेपी को उम्मीद कांग्रेस के पूर्व नेता और राज्य के पूर्व सीएम एस. एम कृष्णा पर केंद्रित है, जो अब बीजेपी के पाले में आ चुके हैं।
सब विकल्प मौजूद, देखना है किस करवट बैठता है ऊंट
त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तो जेडीएस की भूमिका सहज ही किंग मेकर की होगी। बीजेपी और कांग्रेस दोनों के साथ जेडीएस सरकार बना चुकी है। ऐसे में किसी भी खेमे में जाना उसके लिए संभव है। बीजेपी के साथ जाकर जेडीएस केंद्र की सत्ता में भागीदारी पा सकती है। इसके साथ ही वह सन 2019 के लिए चुनाव के लिए एनडीए का हिस्सा बन सकती है। इसके साथ ही जेडीएस के लिए कांग्रेस के खेमे में जाना भी असंभव नहीं है। कर्नाटक में जेडीएस ने बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा है। बसपा बीजेपी के खिलाफ देश की सियासत में कांग्रेस के साथ खड़ी है। इसके अलावा केरल में जेडीएस लेफ्ट विंग का हिस्सा है जो बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के साथ खड़ी है। यह परस्पर विरोधाभासी तस्वीर राज्य की राजनीति में किस तरह सत्ता समीकरणों को साधने में सहाय है, यह तो अगले दिनों में ही सप्ष्ट होगा।
Created On :   14 May 2018 12:28 PM IST