जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद का आरोप, पीएमओ से शिकायत
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली । इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफारिशें विवादों में घिर गई हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में 33 वकीलों को जज बनाने की सिफारिश collejium ने की है. जिस पर भाई-भतीजावाद का आरोप लग रहा है, इतना ही नहीं इन सिफारिशों के खिलाफ पीएमओ और कानून मंत्रालय को भी शिकायत की गई है जिसके बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) को जांच का जिम्मा सौंप दिया गया है। इस मामले में जांच भाई-भतीजावाद को लेकर सरकार को मिली शिकायतों के संदर्भ में की जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट collejium की नवीनतम सिफारिशें इस साल फरवरी में भेजी गईं हैं।
भाई-भतीजावाद का आरोप
रिपोर्ट्स के मुताबिक जिन 33 वकीलों के नाम जज बनाने के लिए भेजे गए हैं उनमें से 11 वकील मौजूदा जजों और सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के रिटायर्ड जजों के करीबी रिश्तेदार हैं या फिर उनकी जान पहचान के हैं। आपको बता दें कि साल 2016 में भी ठीक ऐसा ही एक मामला सामने आया था जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही collejium ने जजों के लिए 30 नामों की सिफारिश की थी तब जजों और नेताओं के करीबियों को इस सूची मेें जगह मिली थी और मामला सामने आने के बाद बार एसोसिएशन और दूसरे लोगों ने इसकी शिकायत की थी, जिसके बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने 11 वकीलों की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया था और केवल 19 नामों पर सहमति जताई थी। तब आईबी की जांच में भी इन शिकायतों को सही पाया गया था।
राज्यपाल-सीएम की अनुशंसाओं का इंतजार
हाईकोर्ट के जजों के लिए की गई वकीलों के नामों की इस सिफारिश के मामले में फिलहाल केन्द्र सरकार को राज्यपाल और यूपी सीएम की अनुशंसाओं का इंतजार है। आईबी वेरिफिकेशन के अलावा जजों की नियुक्ति के लिए ये भी एक अनिवार्य प्रक्रिया होती है। जिन 33 वकीलों के नाम की सिफारिश जजों के लिए की गई है उनमें से एक हाईकोर्ट के मौजूदा जज के लॉ पार्टनर हैं जबकि एक अहम नेता की पत्नी के लॉ पार्टनर हैं। इतना ही नहीं मामले में ये भी शिकायत की गई है कि जिन वकीलों के नामों की सिरफारिश की गई है उनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग को काफी कम प्रतिनिधित्व दिया गया है।
दलितों-अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने पर सवाल ?
कलीजियम की सिफारिशों को लेकर जो शिकायत की गई है उसमें ये भी आरोप लगाया गया है कि कलीजियम की सिफारिश में ऊंची जातियों के ज्यादा नाम हैं और दलित-अल्पसंख्यकों को कम प्रतिनिधित्व दिया गया है। हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए विस्तृत परामर्श और कैंडिडेट्स के मूल्यांकन के लिए एक पारदर्शी तंत्र तैयार करने की केंद्र सरकार की कोशिश अभी तक सफल नहीं हो पाई है और इसमें मेमोरंडम ऑफ प्रसीजर (MoP) पर रुकावट बनी हुई है।
Created On :   15 April 2018 11:28 AM IST