बिहार : नदियों ने गांव, बधार सब डुबोया, अब दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद

Bihar: Rivers submerge the village, Badhar, now two handfuls struggle for food grains
बिहार : नदियों ने गांव, बधार सब डुबोया, अब दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद
बिहार : नदियों ने गांव, बधार सब डुबोया, अब दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद

मुजफ्फरपुर, 8 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार के 38 में से 16 जिले बाढ़ प्रभावित हैं। कई क्षेत्रों में अब बाढ़ का पानी कुछ कम हुआ है, लेकिन अभी भी लोग दो मुट्ठी अनाज के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। मुजफ्फरपुर जिले के भरतुआ में बागमती नदी और धरफ री गांव में गंडक नदी के पानी में आया उफान भले ही अब कुछ शांत हो गया हो लेकिन बाढ़ के कारण पैदा हुईं मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं। बाढ़ की तबाही से बेचैन लोग किसी तरह जान बचाकर अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं।

ऐसे लोग अपनी जिन्दगी को तो सुरक्षित कर रहे हैं परंतु भूख की मार से बेजार लोगों को दो मुट्ठी अनाज के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। आशियाना के नाम पर ऐसे लोग ढमकोल की चारदीवारी और पॉलिथिन से छत बनाकर पूरे परिवार के साथ दिन गुजार रहे हैं।

कई अन्य वर्षो की तरह इस साल भी मुजफ्फरपुर में बाढ़ ने कहर बरपाया है। यहां के 14 प्रखंडों के 240 पंचायतों में गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, लखनदेई, वाया सहित कई छोटी नदियों ने जमकर कहर ढाया।

मुजफ्फरपुर जिले के औराई प्रखंड के कुछ गांवों में नदी की धार कहर बरपा कर कुछ कम हुई है, लेकिन आज भी इस गांव में एक से दो फीट पानी है और ऐसे हालातों में ही लोग अपनी जिन्दगी की गाड़ी को खींच रहे हैं। बाढ़ का पानी धरफरी गांव के महादलित परिवारों की तीन दर्जन झोपड़ियों को बहाकर ले गई, तब से ये पविार खनाबदोशों की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं।

गांव की रहने वाली अंजना देवी कहती हैं कि गंडक ने तो गांव और बधार सब कुछ उजाड़ दिया है। हम लोग तो अब गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं।

वे कहती हैं कि अबोध बच्चों के लिए ना दूध मिल पा रहा है ना ही बुर्जुगों के लिए दवा उपलब्ध हो पा रही है, परंतु इसे देखने वाला कोई नहीं है। सब नेता वोट मांगने आते हैं लेकिन हर बाढ़ की तरह इस साल की बाढ़ में भी कोई नेता अब तक नहीं आया।

इधर, गांव के लेाग जिला प्रशासन के उस दावे को भी खोखला बता रहे हैं, जिसमें प्रशासन ने राहत सामग्री बांटने की बात कही है। भरतुआ, बेनीपुर, मोहनपुर, विजयी छपरा गांवों के कई परिवारों के लोग अभी भी ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं।

बाढ़ पीड़ितों के लिए शरणस्थली बनी कुछ जगहों में बुनियादी सुविधाएं नहीं है। गांव के लोगों का कहना है कि इलाकों में सामुदायिक रसाईघर चल रहा है लेकिन वहां से एक समय का ही भोजन दिया जा रहा है।

अब अपनी समस्याओं को लेकर लोग सड़कों पर भी उतरने लगे हैं। विजयी छपरा सहित आसपास के गांव के लोगों ने दो दिन पहले राष्ट्रीय राजमार्ग 77 को अवरूद्घ कर बाढ़ पीड़ितों को सहायता देने की मांग की थी। वहीं शुक्रवार को मुजफ्फरपुर-दरभंगा रोड को बाढ़ पीड़ितों ने जाम कर दिया था।

मोहनपुर गांव के रामेश्वर कहते हैं कि आधे से ज्यादा खेतों में लगी फ सलें बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो गई हैं। अब बची-खुची फ सल बचाने के लिए लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं। वे कहते हैं कि खेत में लगी फ सल तो बर्बाद हो गई है परंतु अब आशियाना ना बहे, इसके लिए जतन किए जा रहा हैं।

इधर, सरकार खेतों में बर्बाद हुई फ सल का सर्वेक्षण कराने में जुटी है। मुजफ्फरपुर कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामकृष्ण पासवान भी मानते हैं कि बाढ़ से फ सलों को खासा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि जिले में 40 से 70 प्रतिशत फ सलों को नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि नुकसान का सर्वे कराया जा रहा है, उसके बाद ही नुकसान का सही आंकड़ा सामने आ पाएगा।

उल्लेखनीय है कि इस वर्ष बाढ़ से मुजफ्फरपुर जिले की 14 लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित हुई है। जिला प्रशासन का दावा है कि जिले के बाढ़ प्रभवित इलाकों में 348 सामुदायिक रसोई घर चलाए जा रहे हैं, जिसमें 2.41 लाख से अधिक लोग प्रतिदिन भोजन कर रहे हैं।

एमएनपी

Created On :   8 Aug 2020 8:00 AM GMT

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