मोदी सरकार का यू टर्न, सोशल मीडिया हब बनाने के फैसले को लिया वापस
- SC की सख्ती के बाद सोशल मीडिया हब बनाने की योजना से केंद्र सरकार ने अपने हाथ पीछे खींच लिए है।
- ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी के लिए केंद्र ने सोशल मीडिया हब बनाने का फैसला किया था।
- पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह 'निगरानी राज' बनाने जैसा होगा।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद सोशल मीडिया हब बनाने की योजना से केंद्र सरकार ने अपने हाथ पीछे खींच लिए है। ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोशल मीडिया हब बनाने का फैसला किया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि केन्द्र ऐसे हब को बनाए जाने का नोटिफिकेशन वापस ले रहा है ताकि वह इस मुद्दे पर अपनी नीति की पूरी समीक्षा कर सके। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के सामने सरकारी बयान के बाद इस मामले का निपटारा कर दिया गया।
महुआ मोइत्रा ने दायर की थी याचिका
सरकार ने ऑनलाइन डेटा की मॉनिटरिंग के लिए सोशल मीडिया के साथ न्यूज साइट, डिजिटल चैनल और ब्लॉग्स के कंटेंट पर भी नजर रखने की योजना बनाई थी। जिसके बाद तृणमूल कांग्रेस की विधायक महुआ मोइत्रा ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि केंद्र की सोशल मीडिया हब नीति का नागरिकों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर निगरानी रखने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। तृणमूल कांग्रेस की विधायक ने सवाल किया था कि क्या सरकार वॉट्सऐप अथवा सोशल मीडिया के दूसरे मंचों पर नागरिकों के संदेशों पर नजर रखना चाहती है। इससे हर व्यक्ति की निजी जानकारी को भी सरकार खंगाल सकेगी। इसमें जिला स्तर तक सरकार डेटा को खंगाल सकेगी।
क्या कहा था SC ने?
इससे पहले 13 जुलाई को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक सर्विलेंस स्टेट (निगरानी राज्य) बनाने जैसी स्थिति है। क्या सरकार लोगों के व्हाट्स ऐप मैसेज पर नजर रखना चाहती है। मुख्य न्यायधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड की पीठ ने केंद्र सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा था और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को कहा था कि इस मामले में वह अदालत की मदद करें।
Created On :   3 Aug 2018 7:13 PM IST