चिन्मयानंद और आसाराम के कृत्य धर्म पर आघात : स्वामी आनंद स्वरूप (साक्षात्कार)

Chinmayananda and Asarams acts shock on religion: Swami Anand Swaroop (interview)
चिन्मयानंद और आसाराम के कृत्य धर्म पर आघात : स्वामी आनंद स्वरूप (साक्षात्कार)
चिन्मयानंद और आसाराम के कृत्य धर्म पर आघात : स्वामी आनंद स्वरूप (साक्षात्कार)

भोपाल, 16 सितंबर (आईएएनएस)। भगवा वस्त्र पहनने वालों के अनैतिक कार्यो में लिप्त पाए जाने के मामलों से साधु-संत समाज व्यथित है। शंकराचार्य ट्रस्ट के स्वामी आनंद स्वरूप का कहना है कि चिन्मयानंद, आसाराम बापू जैसे स्वयंभू संतों पर अनैतिक कार्यो में शामिल होने के आरोप लगने से धर्म को आघात लगा है।

उन्होंने कहा कि भगवा पहनने वाले हर व्यक्ति को बाबा कहा जाने लगा है, लेकिन इस धारणा में बदलाव और पुर्नरचना की जरूरत है। भगवा पहनने की पात्रता उन्हें ही मिले जो ज्ञान से परिपूर्ण हों।

बुंदेलखंड आए स्वामी आनंद स्वरूप ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, वर्तमान दौर में धर्म ऐसे लोगों का आश्रय है जो धंधा करना चाहते हैं, उनके पास कोई दूसरा एजेंडा नहीं है। पहले धर्म के क्षेत्र में वह व्यक्ति काम करने आता था जो ज्ञानी होता था, जैसे शंकराचार्य। यह ध्यान और ज्ञान की परंपरा है। जो ज्ञान की परंपरा है, उसमें व्यक्ति को चारों वेदों, 18 पुराणों और सारे शास्त्र पढ़ने के बाद ही दीक्षा मिलती है। अब वह परंपरा खत्म हो गई। अब तो जिसने भगवा पहन लिया, वह बाबा हो गया।

भगवाधारियों के नैतिक पतन का जिक्र करते हुए स्वामी आनंद स्वरूप ने आगे कहा, चिन्मयानंद, आसाराम बापू जैसों पर लगे अनैतिक कार्यो के आरोपों ने धर्म और साधु समाज का बड़ा नुकसान किया है, क्योंकि अब लोगों को भगवाधारी गलत दिखने लगा है। संतों के द्वारा लगातार भ्रष्टाचार, अनैतिक कार्य किए जाने का धर्म पर भी असर पड़ा है, आघात लगा है।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, संतों के अनैतिक कार्यो में लिप्त होने की घटनाएं इसलिए सामने आ रही हैं, क्योंकि लोगों ने ऋषि परंपरा को छोड़ दिया और संन्यास का अर्थ हो गया शादी न करना। जिस भी व्यक्ति का इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं हो, उसे विवाह कर लेना चाहिए। इसीलिए धर्म में कहा गया है कि कोई भी चीज शुद्ध हो, मगर युग विरुद्ध हो तो उसे करने की जरूरत नहीं है।

यह पूछे जाने पर कि कोई अनैतिक कार्य करने वाला बाबा न बन पाए, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा, भगवा उन्हें ही पहनना चाहिए या पहनने का अधिकार मिलना चाहिए जो ज्ञान से परिपूर्ण हों, उनके आचरण को देखा जाए। जैसी रामकृष्ण मिशन में परंपरा है। वहां विभिन्न स्तरों से होकर गुजरने के बाद ही संत बनता है, जो निर्धारित परीक्षा पास कर लेता है, उसे ही भगवा वस्त्र पहनने को मिलता है। इस प्रक्रिया को नहीं अपनाया जा रहा है, अब तो भीड़ को खींचकर लाने के लिए, अपनी भीड़ बढ़ाने के लिए किसी को भी भगवा वस्त्र पहनने देते हैं।

उन्होंने आगे कहा, हमारी परंपरा में भगवा वस्त्रधारी को देखते ही उसके प्रति नमन का भाव आ जाता है, इसी बात का लोग लाभ ले रहे हैं। इसलिए अब जरूरत इस बात की है कि साधु और संत बनाने की प्रक्रिया की पुनर्रचना की जाए। इसके लिए समाज के गृहस्थ वर्ग को आने आना चाहिए, उन्हें एक नीति बनाना चाहिए कि जो भी व्यक्ति निर्धारित परीक्षा पास करेगा, कसौटी पर खरा उतरेगा, वही साधु बन सकता है। रामकृष्ण मिशन के साधुओं को सभी अच्छा मानते हैं, क्योंकि वे परीक्षा पास करके आते हैं। जो दंड संन्यासी शंकराचार्य बनता है, वह भी परीक्षा पास करके आता है।

अखाड़ों की वर्तमान स्थिति को लेकर स्वामी आनंद स्वरूप ने अपना विरोध दर्ज कराया और कहा, अखाड़ों को शंकराचार्य ने बनाया, मगर इन स्थानों का भी बुरा हाल है। शंकराचार्य ने अखाड़ों को इसलिए बनाया था, ताकि शस्त्र और शास्त्र के जरिए जरूरत पड़ने पर धर्म की रक्षा की जा सके, मगर अब अखाड़ों में अयोग्य लोगों की भरमार हो गई है। इन स्थानों पर लोग नशा करने आने लगे हैं। ये अखाड़े सुखमय जीवन के लिए नहीं थे, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए बनाए गए थे। वहां जीवंत और अच्छे लोग आएंगे, तभी धर्म की रक्षा की जा सकती है।

Created On :   16 Sept 2019 5:30 PM IST

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