जजों की नियुक्ति को लेकर सीजेआई और सरकार में तनातनी

CJI and government in onflict over appointment of the judges
जजों की नियुक्ति को लेकर सीजेआई और सरकार में तनातनी
जजों की नियुक्ति को लेकर सीजेआई और सरकार में तनातनी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बीते 14 महीने से मेमोरन्डम ऑफ प्रॉसिजर (एमओपी) पर आखिरी फैसला नहीं हो पाया है। ज्ञात हो कि एमओपी एक गाइडबुक है, जिसका संबंध सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति से है। केंद्र सरकार का दावा है कि एमओपी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) और कॉलेजिएम की ओर से अटका हुआ है, वहीं दूसरे पक्ष का मानना है कि 13 मार्च 2017 को फाइनल प्रपोजल भेजने के लिए बाद इसमें और कुछ नहीं किया जा सकता। इन दोनों तर्कों के बीच सरकार की ओर से जुलाई 2017 में सीजेआई की बजाए सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखा गया है। 

स्पष्ट नहीं रजिस्ट्रार जनरल को क्यों चुना 


दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने सीजेआई को दो बार एमओपी में प्रस्तावित बदलाव को लेकर सूचित किया लेकिन इस मामले में आखिरी मैसेज रजिस्ट्रार जनरल को भेजा गया। यह साफ नहीं है कि आखिर क्यों सरकार ने पत्र लिखने के लिए सीजेआई को नहीं बल्कि रजिस्ट्रार जनरल को चुना। सूत्रों के कहना है कि सीजेआई ने कोर्ट रजिस्ट्री में एक अधिकारी के नाम लिखे पत्र पर प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं समझा। इसी गतिरोध के चलते नियुक्ति की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में अनिश्चितता बनी रह गई। सरकार ने मार्च 2016 में और अगस्त 2016 में सीजेआई को एमओपी के मसौदे में संशोधन को लेकर चिट्ठी लिखी थी। सीजेआई ने आखिरकार 13 मार्च, 2017 को एमओपी मसौदा भेजा और स्पष्ट किया कि यह फाइनल वर्जन है लेकिन सरकार ने इसे दबाए रखा। 

सीजेआई को न भेज रजिस्ट्रार जनरल को भेजा पत्र 


इस बीच जुलाई 2017 में जस्टिस कर्णन को कोर्ट की अवमानना का दोषी पाते हुए 7 जजों की खंडपीठ में से 2 जजों ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बने सिस्टम पर पुनर्विचार की जरूरत पर जोर दिया था। जुलाई 2017 के फैसले को अपने नए पत्र का आधार बनाते हुए सरकार ने एमओपी के मसौदे में और संशोधन के लिए लिखा, लेकिन 11 जुलाई, 2017 का यह नया लेटर सीजेआई या सीजेआई कार्यालय में भेजा ही नहीं गया था। इसे रजिस्ट्रार जनरल को भेज दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने बताया कि सीजेआई दीपक मिश्रा का मानना ​​है कि न्यायपालिका की ओर से एमओपी को आखिरी रूप दिया जा चुका है। सूत्रों का कहना है, "सीजेआई के मुताबिक, सरकार के खत पर उन्हें या कॉलेजियम के बाकी जजों को कुछ करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रजिस्ट्रार ऑफिस के पास आने वाले हर खत का जवाब देने के लिए सीजेआई ऑफिस बाध्य नहीं है।

Created On :   29 May 2018 11:22 AM IST

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