कांग्रेस की किचकिच तो सतह पर आ गई, पर बीजेपी में मचा घमासान कब नजर आएगा?
- सतह पर कांग्रेस की कलह
- पर बीजेपी में क्या शांति है?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राज्यों में कांग्रेस ही केवल अंदरूनी कलह से परेशान नहीं है, बीजेपी भी उसी लाइन में खड़ी है। भले ही भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बहुत मजबूत है और ये माना जाता है कि उसकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिलता लेकिन हकीकत यह भी है कि कई राज्यों में भाजपा आपसी घमासान से परेशान है। यह बात अलग है कि नेशनल मीडिया में सिर्फ कांग्रेस पार्टी की अंतर्कलह की खबरें चलती हैं। केरल से लेकर पंजाब तक कांग्रेस के झगड़े तो नेशनल मीडिया में दिख रहे हैं लेकिन छत्तीसगढ़ से लेकर पंजाब और कर्नाटक से लेकर राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्यों में चल रहे भाजपा के झगड़े पर किसी की नजर नहीं है।
छत्तीसगढ़ में छिड़ी जंग
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच कुर्सी को लेकर चल रही खींचतान की खबरें कई दिन तक देश भर में चली लेकिन उसी छत्तीसगढ़ में भाजपा खेमे में भी घमासान कम नहीं हुई। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बीच ऐसी तनातनी है कि जगदलपुर में हुए चिंतन शिविर में दोनों खेमों ने अपनी ताकत दिखाई। कुछ केंद्रीय नेताओं की मदद से अग्रवाल खेमे ने रमन सिंह खेमे को हाशिए में डाल दिया। विवाद इतना साफ दिखने लगा था कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्फुटे और प्रांत प्रचारक प्रेम शंकर सिदार चिंतन शिविर में गए ही नहीं। हालांकि छत्तीसगढ़ में जब बीजेपी सत्ता में थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सरकारी जमीन खरीद फरोख्त के मामले में कार्रवाई करते हुए बृजमोहन अग्रवाल के परिजनों के कब्जे वाली सरकारी जमीन की रजिस्ट्री को रद्द करने का आदेश भी दिया था। तब बृजमोहन अग्रवाल राज्य के कृषि मंत्री थे। रमन सिंह के बाद वह बीजेपी के दूसरे नंबर के नेता भी हैं। ऐसा माना जा रहा कि इन दोनों के बीच वर्चस्व को लेकर आपस में खींचतान चलती रहती है।
त्रिपुरा में "त्रिदेव" पर बगावत!
उधर त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने लंबी जद्दोजहद के बाद अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। तीन नए मंत्रियों को शपथ दिलाई गई लेकिन भाजपा के पांच बागी विधायक शपथ समारोह में शामिल नहीं हुए। सुरजीत दत्ता, रतन चक्रवर्ती, विश्वबंधु सेन, शंकर रॉय और अरुण चंद्र भौमिक जैसे अनुभवी विधायकों सहित कम से कम 15 अन्य विधायक जो कैबिनेट सीट की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें मुख्यमंत्री की चयन प्रक्रिया में दौड़ से बाहर कर दिया गया। भाजपा भले ही अब आल इज वेल की बात कह रही है। लेकिन पार्टी में अंदर घमासान कम नहीं हुए हैं।
बंगाल में अलग बैठक
पश्चिम बंगाल में पार्टी का एक खेमा अलग उत्तर बंगाल राज्य के गठन की मांग कर रहा है तो दूसरा खेमा इसका विरोध कर रहा है। एक खेमा तृणमूल नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का समर्थन कर रहा है तो दूसरा इसके विरोध में पार्टी छोड़ रहा है। दो विधायकों- तन्मय घोष और बिस्वजीत दास ने पाला बदल कर तृणमूल का दामन थाम लिया। पश्चिम बंगाल में बिष्णुपुर के विधायक तन्मय घोष ने टीएमसी में शामिल होने के बाद आरोप लगाया कि बीजेपी बदले की राजनीति में शामिल है। पत्रकारों से बात करते हुए घोष ने दावा किया कि बीजेपी पश्चिम बंगाल के लोगों के बीच अराजकता फैलाने का प्रयास कर रही है, जिसके कारण वह टीएमसी में शामिल हो गए। वहीं बीजेपी ने आरोप लगाया कि उसके विधायक को डरा-धमकाकर टीएमसी में शामिल कराया गया है। वहीं दास ने कहा, "मैं बीजेपी में कभी भी बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रहा था। मैं काफी समय से टीएमसी में वापस आना चाहता था। बीजेपी ने बंगाल के लिए कुछ नहीं किया है। इससे जाहिर हो रहा हैं कि बंगाल में बीजेपी खेमे में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हैं।
कर्नाटक में भी नाटक
कर्नाटक में मंत्री बनने से रह गए भाजपा विधायकों ने सीधा मोर्चा खोला है और मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई व पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा उन्हें समझाने में लगे हैं। हालांकि येदियुरप्पा के बेटे को मंत्री नहीं बनाने से उनके समर्थक खुद ही नाराज हैं।
राजस्थान में रार
राजस्थान भाजपा पिछले कुछ समय से पूरी तरह से दो खेमों में बंटी हुई है। एक खेमा वसुंधरा का तो दूसरा उनके विरोधी पूनिया का है।वसुंधरा विरोधी खेमे को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का भी समर्थन प्राप्त है। इन नेताओं का संगठन पर कब्जा है। ये पिछले एक साल से वसुंधरा विरोधियों को संगठन में महत्व देने में जुटे हैं। वहीं, अपनी उपेक्षा होते देख वसुंधरा खेमे ने समानांतर गतिविधियां शुरू कर दी हैं। कोरोना काल में वसुंधरा रसोई विधानसभा क्षेत्र स्तर पर चलाई गई, जबकि संगठन की तरफ से सेवा कार्य चलाए जा रहे थे।
मध्यप्रदेश में मतभेद!
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ का गाना ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…’ गाते हुए दिखाई दिए। सोशल मीडिया पर दोनों की इस सुरीली दोस्ती ने खूब सुर्खियां भी बटोरी लेकिन इससे अंदरूनी कलह थमी नहीं है। चौहान के दूसरे कार्यकाल के दौरान जैसे ही दोनों नेताओं के बीच दरार बढ़ी, विजयवर्गीय को केंद्र में बुलाया लिया गया और हरियाणा का प्रभारी बनाया दिया गया। बाद में उन्हें पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया था, लेकिन अब बंगाल में हार के बाद एमपी में उनकी वापसी ने राज्य की राजनीति में फेरबदल की बातचीत के लिए मंच तैयार कर दिया है।
Created On :   4 Sept 2021 2:06 PM IST