कांग्रेस मप्र, राजस्थान कलह के बाद राज्य प्रभारियों के काम की करेगी समीक्षा

Congress MP, Rajasthan will review the work of the state in-charge after the discord
कांग्रेस मप्र, राजस्थान कलह के बाद राज्य प्रभारियों के काम की करेगी समीक्षा
कांग्रेस मप्र, राजस्थान कलह के बाद राज्य प्रभारियों के काम की करेगी समीक्षा

नई दिल्ली, 13 अगस्त (आईएएनएस)। राजस्थान में राजनीतिक उथल-पुथल भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि पुरानी राजनीतिक पार्टी को बहुत बड़ा सबक मिला है। मध्य प्रदेश, गोवा और मणिपुर में हुए राजनीति घमासान की पुनरावृत्ति से बचने के लिए अब पार्टी हर राज्य में पार्टी संगठन का जायजा लेने की योजना बना रही है। पार्टी अब सभी स्थानीय मुद्दों का निपटारा राज्य स्तर पर ही करने की योजना बना रही है।

कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा : राज्य प्रभारी, केंद्रीय नेतृत्व में बैठे सुप्रीमो और राज्य संगठन के बीच का पुल होता है, जो राज्य से संबंधित मुद्दों को हल करने के साथ ही अगर कुछ भी गलत होता है, तो वह पार्टी अध्यक्ष को मामले की रिपोर्ट देता है।

हालांकि राजस्थान और उससे पहले मध्य प्रदेश में जो समस्या उत्पन्न हुई उसे देखते हुए यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि राज्य के प्रभारी इन समस्याओं की गंभीरता का अनुमान लगाने में विफल रहे।

मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया को हटाकर जहां मुकुल वासनिक को बिठाया गया, वहीं राजस्थान में भी सूत्रों का कहना है कि सचिन पायलट राज्य के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय के पक्षपातपूर्ण रवैये से नाखुश हैं।

कांग्रेस में कभी महासचिव के पद को बहुत ही शक्तिशाली पद माना जाता था, हालांकि इसकी चमक तब कम हो गई, जब संगठन में हल्के व्यक्तित्व वाले और अनुभवहीन लोगों को प्रभारी बनाया जाने लगा। ऐसे में पार्टी के कार्य समिति के सदस्य ने कहा कि शक्तिशाली मुख्यमंत्री या नेता उन्हें हल्के में लेने लगते हैं।

बी.के. हरिप्रसाद साल 2006 से 2018 तक कई राज्यों में महासचिव रह चुके हैं, इसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और गोवा सहित कई राज्य शामिल हैं। इन सभी राज्यों में कांग्रेस को हाल ही में समस्याओं का सामना करना पड़ा।

हालांकि हरिप्रसाद का कहना है, एक प्रभारी महासचिव की भूमिका एक अंपायर और संगठनात्मक सेटअप के सूत्रधार की तरह होती है, और पीसीसी (राज्य संगठन) और सीएलपी (विधानसभा में विधायक दल के नेता) के बीच समन्वय स्थापित करने का होता है, जो या तो मुख्यमंत्री होते हैं या विपक्ष का नेता।

उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य के प्रभारियों को तटस्थ भूमिका अपनानी चाहिए और राज्यों में पार्टी मामलों के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष को स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए।

इसी सप्ताह मणिपुर में कांग्रेस को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा है, जहां छह विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है।

गोवा में भी सदन में फ्लोर लीडर सहित 10 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है।

एक पूर्व महासचिव ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, इससे पहले हम हफ्ते में एक बार कांग्रेस अध्यक्ष (सोनिया गांधी) के साथ बैठक करते थे, ताकि राज्यों में सीएलपी (कांग्रेस विधायक दल) और पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) की स्थिति के बारे में उन्हें अवगत करा सकें, लेकिन मैं इन दिनों की प्रणाली के बारे में टिप्पणी नहीं करना चाहता।

पार्टी को गुजरात में भी निराशा देखनी पड़ी, जहां उसे राज्यसभा की इकलौती सीट से हाथ धोना पड़ा। वहीं कर्नाटक में कांग्रेस ने अपनी गठबंधन वाली सरकार खो दी, क्योंकि कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों के भाजपा में पलायन को रोक नहीं सकी।

कांग्रेस पार्टी पंजाब में भी आंतरिक कलह का सामना कर रही है। यहां मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा के बीच शब्दयुद्ध जारी है। हालांकि राज्य प्रभारी आशा कुमारी ने किसी भी तरह के कलह को खारिज कर दिया है। साथ ही उन्होंने असंतुष्ट सदस्यों को चेतावनी भी दी कि जिसे भी अगर किसी से कोई समस्या है या किसी के खिलाफ शिकायत करनी है तो वह पार्टी के नेताओं से बात करें और पार्टी फॉरम में अपने मुद्दे को उठाए। प्रेस के माध्यम से बात करना स्वीकार्य नहीं है।

वहीं पार्टी में कई लोगों को लगता है कि कांग्रेस के पुनर्गठन की जरूरत है।

एमएनएस/एसजीके

Created On :   13 Aug 2020 5:30 PM IST

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