सुप्रीम कोर्ट ने संसद पर छोड़ा फैसला, कहा- तय करें किसे ठहराया जाए अयोग्य
- केंद्र सरकार इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का विरोध कर रही थी
- वर्तमान में 2 साल से ज्यादा सजा होने पर 6 साल नहीं लड़ सकते चुनाव
- सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को सुरक्षित कर लिया था फैसला
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संसद को फैसला लेने को कहा है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद तय करे कि किसे अयोग्य ठहराया जाना चाहिए। वर्तमान में आरोप साबित होने के बाद ही कोई नेता चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है।
Parliament must ensure that criminals must not come to politics. No bar on criminal antecedents of political leaders, it"s Parliament to make laws: CJI while reading out verdict on PIL seeking to disqualify candidates contesting polls after court frames charges against them. pic.twitter.com/aOT4L0PdmR
— ANI (@ANI) September 25, 2018
इस मामले पर लगाई गई याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई कर रहा था। मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि अदालत संसद के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश कर कानून नहीं बना सकता। याचिका में मांग की गई है कि गंभीर अपराध में (जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो) किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालत में आरोप तय होते ही उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने 28 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था। इससे पहले पीठ ने चुनाव आयोग से राजनैतिक दलों को निर्देश देने के लिए कहा था कि आरोपों का सामना कर रहे लोग उनके चुनाव चिन्ह पर चुनाव न लड़ें। वर्तमान में प्रभावी कानून के अनुसार आपराधिक मामलों में 2 साल से ज्यादा की सजा होने पर चुनाव लड़ने पर रोक लगती है। जेल से छूटने के बाद अपराधि 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाता है। एनडीपीएस और भ्रष्टाचार जैसे मामलों में आरोप तय होने पर ही ये नियम लागू हो जाते हैं।
पांच जजों की पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे। हालांकि, केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने इस पर विरोध जताया था। उन्होंने कहा था कि ये काम कोर्ट का नहीं, बल्कि चुने हुए प्रतिनिधियों का है। AG ने कहा था कि ऐसा करने पर विरोधी एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक केस करने लगेंगे। चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के खिलाफ ज्याद मामले दर्ज किए जाएंगे। जजों की समिति ने इसे खारिज कर दिया था, बालांकि जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने चीफ जस्टिस के कथन पर सहमति नहीं दी थी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को मार्च 2016 में विचार के लिए 5 न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा था। इस मामले पर एक पब्लिक इंटरेस्ट फांउडेशन नामक एनजीओ, भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोहह ने याचिका लगाई हैं। मामले की सुनवाई सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस इंदू मल्होत्रा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ ने की थी।
Created On :   25 Sept 2018 10:50 AM IST