दीपांकर भट्टाचार्य बोले, ज्यादा सीटें दी जाती तो और अच्छा प्रदर्शन करते

Dipankar Bhattacharya said, if given more seats, he would have done well
दीपांकर भट्टाचार्य बोले, ज्यादा सीटें दी जाती तो और अच्छा प्रदर्शन करते
दीपांकर भट्टाचार्य बोले, ज्यादा सीटें दी जाती तो और अच्छा प्रदर्शन करते
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  • दीपांकर भट्टाचार्य बोले
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पटना, 10 नवंबर (आईएएनएस) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन का मानना है कि सीपीआई और सीपीआई-एम साथ मिलकर महागठबंधन में और बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे, यदि वाम दलों को अधिक सीटें आवंटित की गई होती।

सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने आईएएनएस को बताया, हालांकि मेरा मानना है कि वर्तमान संख्या बदल जाएगी और महागठबंधन अंतत: बिहार में सरकार बनाएगा, इसका प्रदर्शन कहीं बेहतर हो सकता था अगर वाम दलों को अधिक सीटें आवंटित की जातीं। हम बाद में नंबरों पर चर्चा और काम करेंगे।

बिहार विधानसभा चुनाव में वाम दलों ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा था। अब तक, वे 18 सीटों पर सामूहिक रूप से आगे हैं। यह 62 फीसदी से अधिक की स्ट्राइक रेट है।

उन्होंने कहा कि चुनावों में वाम दलों का फिर से उदय हुआ है, भले ही रुझान जो भी हों।

भट्टाचार्य के अनुसार, इसका असर सिर्फ अन्य राज्यों पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ेगा।

सीपीआई-एमएल 12 सीटों पर शानदार प्रदर्शन कर रही है, जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 3 सीटों पर आगे चल रही हैं। साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में सीपीआई-एमएल को सिर्फ 3 सीटें मिलीं थी, जबकि अन्य 2 वाम दलों के हाथ खाली रहे थे।

सीपीआई के महासचिव डी. राजा ने भी इसके प्रभाव के बारे में बात की। राजा ने आईएएनएस को बताया, इसका असर अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी होगा। किसानों या मजदूरों के मुद्दे पर, वे अधिक आवाज बुलंद करेंगे।

हाशिये पर जा चुके वामपंथियों की मदद से इस बार बिहार में अपनी जमीन वापस पाएंगे या नहीं? भट्टाचार्य ने वाम दलों के साथ मिलकर युवाओं को सक्रिय रूप से शामिल करने के लिए एक निर्णायक कारक के रूप में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान को इंगित किया।

उन्होंने कहा, आपको क्यों लगता है कि नौकरियां जैसे मुद्दे सबसे आगे हैं? ये ठेठ वामपंथी चुनावी मुद्दे हैं और हमने युवाओं के असंतोष को आवाज दी।

क्या राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन या भाजपा की नेतृत्व वाली राजग बिहार में सरकार बनाएगी, यह अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन वाम दल अपने पैरों पर वापस खड़े हो सकते हैं।

यूपीए-1 से बाहर निकलने के बाद इस चुनाव में वामपंथी अस्तित्व को संकट के बीच आशा की किरण नजर आई है।

एमएनएस/एएनएम

Created On :   10 Nov 2020 5:00 PM IST

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