बिहार में भी कृषि कानून के विरोध में सुगबुगाहट, लेकिन किसान नेता ने कहा-किसानों को मतलब नहीं

Even in Bihar, there is a murmur in opposition to the agricultural law, but the farmer leader said - farmers do not mean
बिहार में भी कृषि कानून के विरोध में सुगबुगाहट, लेकिन किसान नेता ने कहा-किसानों को मतलब नहीं
बिहार में भी कृषि कानून के विरोध में सुगबुगाहट, लेकिन किसान नेता ने कहा-किसानों को मतलब नहीं
हाईलाइट
  • बिहार में भी कृषि कानून के विरोध में सुगबुगाहट
  • लेकिन किसान नेता ने कहा-किसानों को मतलब नहीं

पटना, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार में भी कृषि कानून के विरोध में विपक्षी राजनीतिक दल एक जुट होकर सत्ता पक्ष पर दबाव बनाने की जुगत में हैं। वैसे, बिहार में इसका विरोध किसानों के बीच वैसा देखने को नहीं मिल रहा है, लेकिन वामपंथी दल इसे लेकर अब गांवों में जाने की योजना बना रहे हैं।

बिहार के किसान नेता भी मानते हैं कि यहां के किसानों को कृषि कानून से कोई मतलब नहीं। कृषि कानून किस चिड़िया का नाम है, उन्हें नहीं मालूम।

बिहार में दाल उत्पादन के लिए चर्चित टाल क्षेत्र के किसान और टाल विकास समिति के संयोजक आंनद मुरारी कहते है, बिहार के किसान कानून का विरोध करें या अपने परिवार की पेट भरने के लिए काम करें। यहां के किसानों को नहीं पता है कि एमएसपी किस चिड़िया का नाम है। यहां के किसान भगवान भरोसे चल रहे हैं और सरकारें उनका शोषण कर रही हैं। बिहार में साल 2006 में ही एपीएमसी एक्ट समाप्त हो गया था। अब किसान खुले बाजार में उपज बेचने के आदी हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि यहां के किसान का आंदोलन मक्के और धान की सही समय पर खरीददारी का होगा ना कि कृषि कानून का। उन्होंने हालांकि राजनीति के केंद्र बिंदु में कृषि आ रही है, इस पर संतोष जताते हुए कहा कि बिहार और पंजाब तथा हरियाणा के किसानों में तुलना करना बेकार की बात है।

इधर, कृषि बिल के विरोध में दिल्ली में हो रहे आंदेालन से बिहार के राजनीतिक दलों में सुगबुहाट होने लगी है। कृषि कानून के विरोध में सभी विपक्षी दल एकजुट होकर सत्ता पक्ष पर दबाव बना रहे हैं। बुधवार को पटना में भाकपा माले सहित अन्य वाम दलों के आह्वान पर प्रतिरोध सभा आयोजित की गई तथा प्रधानमंत्री का पुतला फूंका गया।

इस कार्यक्रम में भाकपा-माले, भाकपा और सीपीएम के अलावा राजद के नेताओं ने भी भाग लिया। भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि वार्ता के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को अपमानित किया है।

उन्होंने कहा, एक तरह का पैटर्न बन गया है कि सरकार पहले ऐसे आंदोलनों को दबाती है, गलत प्रचार करती है, दमन अभियान चलाती है, लेकिन फिर भी जब आंदोलन नहीं रूकता, तब कहती है कि यह सबकुछ विपक्ष के उकसावे पर हो रहा है।

इधर, भाकपा (माले) के कार्यालय सचिव कुमार परवेज कहते हैं, भाकपा (माले) गांव-गांव जाकर किसानों को कृषि कानून से होने वाली परेशानियांे से किसानों को अवगत कराएगा और विरोध को लेकर उन्हें एकजुट करेगा। इसके लिए एक योजना बनाई जा रही है।

उन्होंने यह भी बताया कि कृषि कानून के विरोध को समर्थन देने के लिए विधायक सुदामा प्रसाद और संदीप सौरभ दिल्ली गए हैं।

इधर, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी कृषि कानून के विरोध में उतर आए हैं।

उन्होंने राजग सरकार को पूंजीपरस्त की सरकार बताते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से गुरुवार को ट्वीट करते हुए लिखा, किसान आंदोलन के समर्थन में और किसान विरोधी काले कानून के विरुद्ध कल (बुधवार) बिहार के सभी जिला मुख्यालयों पर राजद और महागठबंधन द्वारा धरना प्रदर्शन किया गया। पूंजीपरस्त इस किसान विरोधी एनडीए सरकार को हटा कर ही दम लेंगे।

बहरहाल, बिहार में भी किसान आंदेालन की सुगबुहाट प्रारंभ हुई है, लेकिन देखने वाली बात होगी कि इसमें किसानों की भागीदारी कितनी होगी।

एमएनपी-एसकेपी

Created On :   3 Dec 2020 8:00 AM GMT

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