बोस ने रंगून रेडियो से गांधी जी को दी थी 'राष्ट्रपिता' की उपाधि 

Gandhi jayanti: Bose gave Gandhiji the title of Father of the Nation on radio
बोस ने रंगून रेडियो से गांधी जी को दी थी 'राष्ट्रपिता' की उपाधि 
बोस ने रंगून रेडियो से गांधी जी को दी थी 'राष्ट्रपिता' की उपाधि 

डिजिटस डेस्क,भोपाल। देश के लिए अहिंसा से आजादी की लड़ने वाले महात्मा गांधी की आज 148वीं जयंती मना रहे हैं। वो जहां भी रहे सत्य के लिए लड़ते रहे। गांधी ने अपने जीवन को देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया था। उनके सिद्धांत इतने मजबूत रहे, जिन्हें आज तक कोई हिला नहीं पाया। देश आज भी अपने नौनिहालों को उनके सिद्धांतों पर चलने के लिए प्रेरित करता है। उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें "राष्ट्रपिता" कहकर सम्बोधित किया था। वहीं लेखक रबीन्द्रनाथ टैगोर ने मोहनदास कर्मचंद गांधी को "महात्मा" की उपाधि दी थी। आज गांधी जयंती पर जानिए उनके जीवन की अहम बातें।

राष्ट्रपिता का जीवन 

-मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। 

-पिता करमचन्द गान्धी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतलीबाई परनामी थीं और अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, उनमें दया, करुणा और सेवा भाव बहुत अधिक था। मां के मूल्यों का प्रभाव युवा युवा मोहनदास पर भी पड़ा। 

-सन 1883 में साढे़ 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। 1885 में जब मोहनदास 15 साल के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। 

-उनके पिता करमचन्द गाँधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं – हरिलाल गांधी (1888), मणिलाल गांधी (1892), रामदास गांधी (1897) और देवदास गांधी (1900)।

-उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिया पर खराब स्वास्थ्य के कारण कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

-घर में सबसे ज्यादा पढ़े लिख होने के कारण उन पर आगे पढ़ाई कर पिता की गद्दी संभालने का दबाव था। उनके एक परिवारक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी कि एक बार मोहनदास लन्दन से बैरिस्टर की पढ़ाई करनी चाहिए। 

-साल 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गए। अपने माँ को दिए गए वचन के अनुसार उन्होंने लन्दन में भी शकाहारी रहे।

-शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई और शुरूआती दिनो में कई बार भूखे ही रहना पड़ता था। इसके बाद उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढ़ने का सुझाव दिया।

-जून 1891 में गांधी भारत लौट गए और यहां आकर उन्हें अपनी मां की मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। 
-साल1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य  स्वीकार कर लिया। 

- गांधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वो प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। 

-उन्होंने अपने जीवन के 21 साल (1893-1914) दक्षिण अफ्रीका में बिताए जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। 

-एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। ये सारी घटनाएँ उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गईं और मौजूदा 

-दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतियों की नागरिकता संबंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन 1906 के जुलु युद्ध में भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। 

- उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर साल 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। 

आंदोलन

-बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी। गांधीजी ने जमींदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

-जिसके बाद गांधीजी ने खिलाफत आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, स्वराज और नमक सत्याग्रह, हरिजन आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ करते हुए आजादी की लड़ाई लड़ी।

गांधी जी की हत्या

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दिल्ली के बिड़ला हाउस में हत्या कर दी गयी। गांधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे, तभी नाथूराम गोडसे ने उनके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।

 

Created On :   2 Oct 2017 6:39 AM GMT

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