गूगल का डूडल, मजदूरों के लिए लड़ने वाली अनसुइया साराभाई को समर्पित
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्च इंजन गूगल ने भारतीय अनसुइया साराभाई को उनके 132वें जन्मदिन पर शानदार डूडल समर्पित किया है। अनसुइया एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। भारत समेत विश्वभर में मजूदरों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने बुनकरों और टेक्सटाइल उद्योग में मजदूरों की लड़ाई लड़ी थी। इससे पहले भी गूगल ने 8 नवंबर को कथक क्वीन सितारा देवी का जन्मदिन पर डूडल समर्पित किया था।
अनसुइया साराभाई का जन्म 11 नवंबर 1885 को अहमदाबाद में हुआ था। उन्हें मोटाबेन (बड़ी बहन) के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने जिंदगी भर दूसरों की मदद करते हुए समाज की सेवा ही की। साल 1972 में अनसुइया साराभाई दुनिया को अलविदा कह दिया था। उन्होंने महिलाओं को समानता और न्याय दिलाने के जीवन भर काम किया। आज गूगल ने उनके जन्मदिवस पर डूडल समर्पित किया है, जिससे कि पूरा भारत और विश्व इनके बारे में जान सके।
मजदूरों के लिए की भाई से लड़ाई
अनसुइया ने साल 1920 में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए "मजूर महाजन संघ" की स्थापना की थी, जो भारत के टेक्स्टाइल मजदूरों की सबसे पुरानी यूनियन है। उन्होंने कई मिल मालिकों का विरोध किया। बताया जाता है कि उन्होंने अपने भाई का भी विरोध किया था, जो एक मिल मालिक थे। साराभाई का मकसद था कि "मजदूरों को सही मजदूरी मिले, जिनके वह हकदार हैं।" साथ ही उन्होंने शिक्षा पर भी जोर दिया।
लंदन से की इकोनॉमिक्स की पढ़ाई
अनसुइया का जन्म 11 नवंबर, 1885 को अहमदाबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम साराभाई और माता का नाम गोदावरीबा था। जब वह 9 साल की थीं तो उनके माता-पिता का निधन हो गया। जिम्मेदारी के चलते 13 साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया, जो ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका। भाई की मदद से वह 1912 में मेडिकल की डिग्री लेने के लिए इंग्लैंड चली गईं, लेकिन बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में चली गईं।
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ और सिडनी वेब्ब से मुलाकात
इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, सिडनी वेब्ब जैसे लोगों से हुई, जिन्होंने मार्क्सवाद के क्रांतिकारी सिद्धांतों को सिरे से खारिज कर समाजवादी समाज की सिफारिश की थी। इन लोगों से मुलाकात के बाद अनसुइया ने समाजिक समानता जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अपनी सेवा दी। भारत आकर साल 1914 में उन्होंने अहमदाबाद में हड़ताल के दौरान टेक्स्टाइल मजदूरों को संगठित करने में मदद की। इसके बाद गांधी जी ने भी मजदूरों की ओर से हड़ताल करना शुरू कर दिया।
Created On :   11 Nov 2017 7:33 AM GMT