बिलकिस बानो मामले में गुजरात सरकार का जवाब बहुत स्थूल : सुप्रीम कोर्ट
- बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुजरात सरकार का जवाब बहुत स्थूल है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुजरात सरकार का जवाब बहुत स्थूल है, जिसमें तथ्यात्मक बयानों के बजाय, फैसलों की एक श्रृंखला पेश की गई है।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अध्यक्षता वाली पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि उन्होंने कोई ऐसा जवाबी हलफनामा नहीं देखा था, जिसमें कई फैसलों का हवाला दिया गया हो।
पीठ ने पूछा, एक बहुत भारी जवाबी हलफनामा। तथ्यात्मक बयान कहां है, दिमाग का उपयोग कहां है?
गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत की टिप्पणी से सहमति जताई और कहा कि फैसलों का हवाला देने को टाला जा सकता था। उन्होंने कहा, आसान संदर्भ के लिए निर्णयों का उल्लेख किया गया था, इसे टाला जा सकता था।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए।
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि इससे पहले कि वह राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे को पढ़ पाते, यह उन्हें अखबारों में दिखाई दिया।
मेहता ने तर्क दिया कि अजनबी और तीसरा पक्ष दोषियों की रिहाई को चुनौती नहीं दे सकता।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार ने याचिकाकर्ताओं को राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया और मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर को होनी तय की।
गुजरात सरकार ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि उन्होंने जेल में 14 साल से अधिक बिताए थे और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था। केंद्र ने भी इसका अनुमोदन किया था।
राज्य सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई और विशेष दीवानी न्यायाधीश (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे ने पिछले साल मार्च में दोषियों की समय से पहले रिहाई का विरोध किया था।
गोधरा उप-जेल के अधीक्षक को लिखे पत्र में सीबीआई अधिकारी ने कहा था कि दोषियों द्वारा किया गया अपराध जघन्य और गंभीर है, इसलिए उन्हें समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता।
राज्य के गृह विभाग के अवर सचिव ने एक हलफनामे में कहा है, राज्य सरकार ने सभी की राय पर विचार किया और 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया, क्योंकि उन्होंने जेलों में 14 साल से अधिक की सजा पूरी कर ली है और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है।
हलफनामे में कहा गया है, भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से 11 कैदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए सीआरपीसी की धारा 435 के तहत केंद्र सरकार की सहमति/अनुमोदन से अवगत कराया था।
हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकार ने सात अधिकारियों - जेल महानिरीक्षक, गुजरात, जेल अधीक्षक, जेल सलाहकार समिति, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई, और सत्र न्यायालय, मुंबई की राय पर विचार किया।
हलफनामे के मुताबिक, राज्य सरकार के अनुमोदन के बाद 10 अगस्त, 2022 को कैदियों को रिहा करने के आदेश जारी किए गए। राज्य सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्तावों पर विचार किया, जैसा कि इस अदालत द्वारा निर्देशित किया गया था और आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में कैदियों को रिहा किया गया।
गुजरात सरकार का जवाब माकपा की पूर्व सांसद सुभासिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रो. रूप रेखा वर्मा द्वारा दायर एक याचिका पर आई है, जिसमें बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और कई हत्याओं के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की रिहाई को चुनौती दी गई है। साथ ही, 2002 के गुजरात दंगे के दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाएं तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और अन्य ने दायर की हैं।
(आईएएनएस)।
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Created On :   18 Oct 2022 9:00 PM IST