भारत को चीन पर सैन्य बढ़त : अमेरिकी थिंक टैंक

India has a military edge over China: American think tank
भारत को चीन पर सैन्य बढ़त : अमेरिकी थिंक टैंक
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हाईलाइट
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नई दिल्ली, 17 जुलाई (आईएएनएस)। क्या चीन को भारत पर सैन्य बढ़त हासिल है? इसका जवाब कुछ रिपोर्ट नहीं में दे रहीं हैं। इनमें कहा गया है कि चीन की बढ़त एक गलत धारणा है। भारत ने 1962 से एक लंबा सफर तय किया है। अगर चीन कहता है कि इतिहास को मत भूलना, तो हम भी उनसे यही कहते हैं।

दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए वार्ताएं चल रही हैं और ऐसे में कुछ विशेषज्ञ यह साबित करने के लिए ओवरटाइम काम कर रहे हैं कि युद्ध की स्थिति में चीन की सैन्य शक्ति भारत की तुलना में कहीं बेहतर है। उनका दावा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को अपने संख्या बल, हथियारों और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में बुनियादी ढांचे की वजह से भारतीय सेना पर निर्णायक बढ़त है।

चीनी मीडिया में भी हथियारों और लॉजिस्टिक की कथित कमी पर भारत का मजाक उड़ाया जा रहा है।

लेकिन, क्या चीन की बेहतर सैन्य ताकत का पारंपरिक ज्ञान सही है? हार्वर्ड में बेलफर सेंटर और सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) द्वारा किए गए हाल के अध्ययनों से एक अलग ही तस्वीर सामने आई है। इन शोधों से पता चलता है कि ऊंचाई वाले पर्वतीय युद्ध की स्थिति में भारत को चीन पर बढ़त हासिल है।

1962 में भारत और चीन ने युद्ध लड़ा, जिसे भारत हार गया। लेकिन, यह 58 साल पहले की बात है। तब से बहुत कुछ बदल गया है।

रिपोर्ट कहती है, हमारा आकलन है कि भारत के पास चीन के खतरों और हमलों को कम कर देने वाली महत्वपूर्ण लेकिन कम प्रसिद्ध पारंपरिक बढ़त (कन्वेंशनल एडवांटेज) है। भारत आमतौर पर चीन के खिलाफ अपनी सैन्य स्थिति में अधिक आत्मविश्वास दिखा रहा है, जो बात भारतीय बहसों में नजर नहीं आती है। इससे देश को परमाणु पारदर्शिता और संयम की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के नेतृत्व का अवसर मिला है।

किसी को भी दोनों देशों के बीच पूर्ण पैमाने पर युद्ध की संभावना नहीं दिख रही है और परमाणु युद्ध का तो कोई सवाल नहीं है। फिर भी, विशेषज्ञ हमेशा दोनों की परमाणु शक्ति की तुलना करते हैं। बेलफर की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के परमाणु हथियारों में जमीन व समुद्र आधारित बैलिस्टिक मिसाइल और विमान का इस्तेमाल परमाणु बमवर्षकों के रूप में किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, चीन के पास 104 मिसाइलें हैं जो पूरे भारत में हमला कर सकती हैं। जहां तक भारत का संबंध है तो उसका अधिकांश मिसाइल बल चीन से अधिक पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित है।

रिपोर्ट के अनुसार, लगभग दस अग्नि-3 लांचर पूरे चीनी मुख्य भूमि तक पहुंच सकते हैं। आठ अग्नि-2 लांचर केंद्रीय चीनी लक्ष्यों तक पहुंच सकते हैं। जगुआर आईएस के दो स्क्वाड्रन और मिराज 2000एच लड़ाकू विमानों का एक स्क्वाड्रन, लगभग 51 विमान, को परमाणु मिशन सौंपा जा सकता है। ये विमान परमाणु ग्रैविटी बमों से लैस तिब्बती हवाई क्षेत्र तक पहुंच सकते हैं। हालांकि, यह निश्चित है कि वे तिब्बत से चीन में और अंदर तक बढ़ने से पहले हवाई बचाव प्रणाली द्वारा पहचाने और ट्रैक कर लिए जाएंगे। तिब्बत-केंद्रित मिशनों में जो कुछ हासिल किया जा सकेगा, वह चीन में कहीं और मिशनों में पाना संभव नहीं होगा, क्योंकि तिब्बत के पार जाने के लिए भारतीय वायुयानों को जो आवश्यक अतिरिक्त समय चाहिए होगा, उतने में चीनी हवाई सुरक्षा सतर्क हो जाएगी।

बेलफर रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत की कुल स्ट्राइक फोर्स 2,25,000 के आसपास होगी, जिसे उत्तरी, मध्य और पूर्वी कमान में चीन के खिलाफ तैनात किया जाएगा। हालांकि चीन में संख्यात्मक श्रेष्ठता हो सकती है लेकिन रिपोर्ट में कई कारकों पर प्रकाश डाला गया है जो भारत को चीन पर बढ़त दिलाते हैं। इसमें कहा गया है कि 1965 से भारत, पाकिस्तान के साथ कई प्राक्सी लड़ाई लड़ चुका है। भारत ने 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल की निर्णायक लड़ाई लड़ी।

रिपोर्ट में कहा गया है, पश्चिमी जगत के सैनिकों ने युद्धाभ्यास में सदैव अपने भारतीय समकक्षों की सामरिक रचनात्मकता और अनुकूलनशीलता के उच्च स्तर की प्रशंसा की है।

उधर, पीएलए का अंतिम संघर्ष 1979 का वियतनाम युद्ध रहा है जहां उसे अमेरिकी युद्ध से और जुझारू हो उठे वियतनामी सैनिकों के हाथों काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था। सीएनएएस का अनुमान है कि कुल संख्या में भारतीय जमीनी बल एलएसी की निकटता को देखते हुए और साथ ही आगे की वायु संपत्तियों की तैनाती को देखते हुए चीनियों पर भारी पड़ेंगे। भारत विभिन्न पठारों, पर्वतीय दर्रो और घाटियों में बड़ी संख्या में सैन्य और अर्धसैनिक बल रखता है, जो ट्रांस-हिमालयन प्रवेश के सबसे स्पष्ट संभावित बिंदु प्रदान करते हैं जबकि चीन अपने सीमावर्ती रक्षा के सिद्धांत के अनुसार संघर्ष की स्थिति में आगे बढ़ने के लिए पारंपरिक बलों को आंतरिक स्तर पर रखता है।

सेंटर फॉर अ न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी की अक्टूबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने चीन के दृष्टिगत इस क्षेत्र में कई अड्डे विकसित किए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संभावित पीएलए हमले का सामना करने के लिए भारत ने बुनियादी सैन्य ढांचे को मजबूत करने पर अधिक जोर दिया है।

रिपोर्ट यह भी कहती है कि अपाचे और चिनूक रोटरी-विंग परिसंपत्तियों के भारतीय अधिग्रहण और सी-130 और सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे सैन्य परिवहन विमानों ने अलग-थलग भारतीय सैनिकों के लिए महत्वपूर्ण तेजी से दी जाने वाली मदद को संभव बनाया है। जबकि, चीन के पास थिएटर में चौथी पीढ़ी के लगभग 101 फाइटर्स हैं, जिनमें से कई को रूसी रक्षा के लिए उसे तैनात करना होता है। जबकि, भारत में इसके लगभग 122 मॉडल हैं, जिनका निशाना पूरी तरह से चीन की तरफ है।

संभावित भारत-चीन युद्ध में चीन काफी हद तक अकेला हो सकता है, जबकि भारत ऐसे देशों से रक्षा संबंध विकसित कर रहा है जो चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से सशंकित हैं। भारत हाल के वर्षों में अमेरिकी सेना के करीब हुआ है। अमेरिका ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय प्रशिक्षण को बढ़ाते हुए भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में वर्णित करना शुरू किया है।

चीन की मुख्य चिंता अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते संबंध हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया में चीन का असली जवाब भारत है। दक्षिण एशिया में, दक्षिण-पूर्व, पूर्व या मध्य एशिया के विपरीत एक महत्वपूर्ण ताकत है और वह है भारत। चीन इसे आसानी से नहीं भुला सकता।

भारत ने पारंपरिक रूप से चीन को श्रेष्ठ के बजाय बराबर के रूप में देखा है। वह चीन द्वारा भारतीय परिधि में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों को लेकर सावधान है। इन दोनों अध्ययनों में कहा गया है कि भारत के पास पारंपरिक सैन्य बढ़त (एडवांटेज) है जो चीनी खतरों और हमलों की संभावनाओं को कम करती है लेकिन जो कम प्रसिद्ध है और जिन्हें ठीक से मान्यता नहीं मिली है।

(यह सामग्री इंडियानैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत की गई है)

Created On :   17 July 2020 2:30 PM GMT

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