इसरो ने लॉन्च किया नैविगेशन सैटेलाइट IRNSS-1I, जानें क्या है इसकी खासियत
- इस सैटेलाइट की लॉन्चिंग PSLV-C41 रॉकेट के जरिए की गई।
- IRNSS-1 सैटेलाइट IRNSS-1H की जगह लेगा। जिसकी लॉन्चिंग पिछले साल 31 अगस्त को असफल हो गई थी।
- PSLV-C41/IRNSS-1I आई स्वदेश ई-तकनीक से निर्मित नौवहन सैटेलाइट है। सैटेलाइट पुंज इस तरह का आठवां सैटेलाइट है।
- इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS-1I) को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह चार बजे अंतरिक्ष में भेजा गया।
- भारतीय अंतरिक्ष अन
डिजिटल डेस्क, श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज (गुरुवार) नए नैविगेशन सैटेलाइट को लॉन्च किया है। इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS-1I) को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह चार बजे अंतरिक्ष में भेजा गया। इस सैटेलाइट की लॉन्चिंग PSLV-C41 रॉकेट के जरिए की गई। IRNSS-1 सैटेलाइट IRNSS-1H की जगह लेगा। जिसकी लॉन्चिंग पिछले साल 31 अगस्त को असफल हो गई थी।
PSLV-C41 Successfully Launches IRNSS-1I Navigation Satellitehttps://t.co/5bCIWYalON
— ISRO (@isro) April 12, 2018
समुद्री नेविगेशन में होगा मददगार
PSLV-C41/IRNSS-1I आई स्वदेश ई-तकनीक से निर्मित नौवहन सैटेलाइट है। सैटेलाइट पुंज इस तरह का आठवां सैटेलाइट है। यह सैटेलाइट भारतीय नैविगेशन मैप सिस्टम (नाविक) की शक्ति बढ़ाएगा। नाविक के तहत भारत ने आठ सैटेलाइट लांच किए हैं, जिसमें से IRNSS-1H को छोड़कर बाकी सभी सफल रहे। इस सैटेलाइट की मदद से नक्शा बनाने, समय के सटीक आकलन, नैविगेशन और समुद्री नेविगेशन में सहायता मिलेगी। यह सेना के लिए काफी कारगर होगा।
स्वदेशी तकनीक पर आधारित
बता दें कि 29 मार्च को संचार सैटलाइट GSAT-6A से संपर्क टूट गया था, जिसे वैज्ञानिकों के साथ-साथ सशस्त्र सेनाओं के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा था, लेकिन अब इसरो स्वदेशी तकनीक पर निर्मित आईआरएनएसएस-1I सैटलाइट का सफलतापूर्वक लॉन्च कर पिछली नाकामी को दरकिनार कर दिया है। इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटलाइट सिस्टम, इसरो द्वारा विकसित एक सिस्टम है, जो स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसका मुख्य उद्देश्य देश और उसकी सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी के हिस्से में इसकी उपयोगकर्ता को सही जानकारी देना है।
ये है सैटेलाइट की खासियत
ये सैटेलाइट अगले 10 साल तक काम करेगा।
सैटेलाइट में L5 और S-बैंड नैविगेशन पेलोड के साथ रुबीडियम एटॉमिक क्लॉक्स होंगी।
इस सैटेलाइट से मछुआरों को काफी मदद मिलेगी। मछुआरों को ज्यादा मछली वाले इलाके के बारे में पता चलेगा।
सैटेलाइट के जलिए हाई वेव्स और इंटरनेशनल मरीन बॉर्डर के करीब पहुंचने की जानकारी मिलेगी।
यह सैटेलाइट मर्चेंट शिप को नेविगेशन में मदद करेगा। सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने, ट्रेनों को ट्रैक करने का काम भी करेगा।
इस सैटेलाइट को बनाने की लागत 1420 करोड़ रुपए आई है।
IRNSS-1I करीब 507 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी कक्षा में स्थापित किया गया है।
PSLV-XL से लॉन्च किया जाने वाला यह 20वां मिशन था।
Created On : 12 April 2018 3:10 AM