झारखंड : पत्थलगड़ी आंदोलन के मामले वापस लेने का सरकार का फैसला

Jharkhand: Governments decision to withdraw cases of Pathalgadi movement
झारखंड : पत्थलगड़ी आंदोलन के मामले वापस लेने का सरकार का फैसला
झारखंड : पत्थलगड़ी आंदोलन के मामले वापस लेने का सरकार का फैसला

रांची, 30 दिसंबर (आईएएनएस)। झारखंड में शपथ ग्रहण करने के कुछ ही घंटे बाद हेमंत सोरेन सरकार ने दो साल पहले पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान दर्ज मामले वापस लेने का महत्वपूर्ण फैसला किया, जिससे रांची से सटे खूंटी सहित आदिवासी समाज के लोगों ने प्रसन्नता व्यक्त की है।

हेमंत सरकार द्वारा पत्थलगड़ी के दर्ज मामले वापस लिए जाने के फैसले का खूंटी के स्थानीय लोगों ने स्वागत किया है।

इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों को दिए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया था। यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ था। इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था।

झारखंड सरकार के मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा, पत्थलगड़ी आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति रही है। इसके साथ खिलवाड़ करना सही नहीं है। हालांकि पत्थलगड़ी के दौरान लोगों ने संविधान का कुछ गलत विवरण किया था, लेकिन वे देशद्रोही नहीं हो सकते। आदिवासी हमेशा से देशभक्त रहे हैं।

झारखंड के एक अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार के फैसले के मुताबिक, छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में संशोधन का विरोध करने और पत्थलगड़ी करने के आरोप में दर्ज किए गए मामले वापस लेने का काम शुरू किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि जमीन के हक की मांग को बुलंद करते हुए आदिवासियों ने बीते साल यह आंदोलन शुरू किया था, जिसका असर इस बार के चुनाव पर भी काफी देखा गया। माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।

यह आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ था, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए थे। यह एक आंदोलन के रूप में व्यापक होता चला गया। लिहाजा इसे पत्थलगड़ी आंदोलन का नाम दिया गया। कहा जाता है कि आदिवासी समुदायों में पत्थलगड़ी (बड़ा शिलालेख गाड़ने) की परंपरा पुरानी है। इसमें मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी लिखी जाती है। वंशावली, पुरखे तथा मरनी (मृत व्यक्ति) की याद में पत्थर पर पूरी जानकारी लिखी होती है।

इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की 5वीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिख-लिख कर जगह-जगह जमीन के ऊपर लगा दिया।

सरकार ने आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल लोगों पर आपराधिक मामले दर्ज किए और इन मामलों में भारतीय दंड विधान की राजद्रोह की धाराओं के तहत कई नामजद लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई।

पुलिस के मुताबिक, पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें सिर्फ 172 लोगों को नामजद आरोपी बनाया गया है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं के मंच झारखंड जनाधिकार महासभा का कहना है कि दर्ज मामलों में नामजद आरोपियों के साथ अन्य लिखा गया, जिससे कई गांव चपेट में आ गए। महासभा ने अब हेमंत सोरेन सरकार के इस फैसले को सही करार दिया है।

Created On :   30 Dec 2019 8:30 PM IST

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