कश्मीर में काबुल की आतंकी चुनौती और वैश्विक प्रभाव !

Kabuls terror challenge in Kashmir and global impact
कश्मीर में काबुल की आतंकी चुनौती और वैश्विक प्रभाव !
Kabul's 'terror challenge' in Kashmir कश्मीर में काबुल की आतंकी चुनौती और वैश्विक प्रभाव !
हाईलाइट
  • कश्मीर में काबुल की आतंकी चुनौती और वैश्विक प्रभाव !

डिजिटल डेस्क, काबुल/नई दिल्ली। सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा समर्थित वैश्विक मीडिया रिपोटरें से संकेत मिला है कि अब अफगानिस्तान में स्थापित तालिबान 2.0 ने 600,000 छोटे हथियारों, 200 विमानों/हेलिकॉप्टरों, ब्लैक हॉक्स, नाइट विजन डिवाइस, बॉडी आर्मर और चिकित्सा आपूर्ति सहित 85 अरब डॉलर के सैन्य उपकरणों को नियंत्रित कर लिया है।

पिछले महीने तक अफगानिस्तान की रक्षा के लिए काम करने वालों ने इन बायोमेट्रिक विवरणों के बारे में बताया है।

मानव इतिहास में किसी भी प्रतिबंधित संगठन के पास इतनी बड़ी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार और डिवाइस कभी नहीं रहे हैं। यह एक और बात है कि प्रतिबंधित होने की स्थिति संभावित रूप से जा सकती है, क्योंकि दुनिया अफगानिस्तान में जमीनी हकीकत से जाग रही है। अब सवाल यह है कि पूरी दुनिया में कई गलतियों की कीमत कौन चुकाएगा, जो निश्चित रूप से असहाय अफगान लोगों तक सीमित नहीं होगी।

सवाल यह है कि विरोधियों के अलावा, उनमें से जातीय अल्पसंख्यक, जो इस नव-अधिग्रहीत सैन्य शक्ति के निशाने पर होंगे - नए शासकों के झूठे आश्वासनों के बावजूद भय में जीने को मजबूर हैं।

बेशक ऐसा कहा जा रहा है कि यह एक नया तालिबान है, जो कि कुछ हद तक नई सोच के साथ चलेगा, मगर उसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। हालांकि उसके शासन में अन्य देशों को व्यापारिक और राजनैतिक रिश्ते तो फिर भी रखने ही होंगे और खासकर पड़ोसी देशों के बीच एक रिश्ता बनना लाजिमी भी है।

नए शासन और उसकी नीतियों का असर निश्चित तौर पर उसके पड़ोसी पाकिस्तान के साथ ही भारत और खासकर जम्मू-कश्मीर पर होना तय है।

तालिबान के पास अत्याधुनिक हथियार होना चिंताजनक है। यहां ध्यान देने वाली मुख्य बात यह है कि भारत ने इसका अनुमान लगाया था - अगर पूरी तरह से नहीं तो काफी हद तक अनुमान जरूर लगाया गया था। इसने हाल के वर्षों में अमेरिका से जल्दबाजी में देश नहीं छोड़ने का आग्रह किया था। भारत ने ओबामा, ट्रंप और बाइडेन प्रशासनों को चेतावनी दी थी कि वे सभी अमेरिकी योजनाओं और कार्रवाई को एक प्रमुख बिंदु पर आधारित करें।

अब जब ऐसा हो गया है, तो शायद यह समझना आसान हो गया है कि भारत ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के लिए कार्रवाई क्यों की। इसने राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक स्वायत्तता को रद्द कर दिया और दो केंद्र शासित प्रदेश बनाकर राज्य (प्रांत) को ही भंग कर दिया, जिसके बाद क्षेत्र सीधे तौर पर नई दिल्ली से शासित होने लगा।

यह एक सही कदम था या नहीं, इसके बारे में सोचने के बजाय अब इसे अफगानिस्तान के घटनाक्रम के संदर्भ में देखा जाना चाहिए या फिर इसे अफगान-पाक क्षेत्र में बुद्धिमानी से रखते हुए देखा जाना चाहिए।

किसी भी मामले में, नई दिल्ली ने अपने घरेलू विकल्पों को बंद नहीं किया है, जिसमें आधिकारिक घोषणाओं के अनुसार, क्षेत्र की प्रांतीय स्थिति को पुनर्जीवित करना, संभवत: उचित समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा देना शामिल है।

लेकिन यह तालिबान के आगमन के साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों के लिए बाहरी सुरक्षा खतरे के बारे में है। जिस तरह से पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने खाड़ी देशों और मध्य एशियाई गणराज्यों का दौरा किया है, उसे नए काबुल शासन की शीघ्र मान्यता के लिए देखा जा रहा है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

कश्मीर घाटी के बफीर्ली होने से पहले ही सीमा पार से घुसपैठ के प्रयास के रूप में एक शुरूआत हो चुकी है।

सीमा पार से ताकत हासिल करने वाले तत्वों द्वारा हिंसा के साथ-साथ कश्मीर में सीमा पार से घुसपैठ में बड़ी वृद्धि हुई है। एक नतीजा यह हुआ कि अल्पसंख्यक हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा अपने घरों से भागने को मजबूर हो गया है।

नया घटनाक्रम खासकर भारत में इतिहास की पुनरावृत्ति की ओर इशारा करता है, जहां ऐसी आशंकाएं हैं कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा कश्मीर घाटी में सुरक्षा स्थिति को प्रभावित कर सकता है। वहीं ऐसी भी आशंकाएं हैं कि इससे अन्य दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी आतंकवाद से संबंधित हिंसा बढ़ सकती है। इस बात के संकेत पहले ही मिल चुके हैं कि पीर पंजाल के दक्षिण में और कश्मीर घाटी में घुसपैठ के प्रमुख रास्ते संवेदनशील हो सकते हैं और वहां और भी कड़ी चौकसी बरती जा रही है। नापाक इरादों के लिए मार्ग पुंछ-राजौरी या उत्तरी कश्मीर हो सकते हैं और दोनों ही इलाकों में मुठभेड़ होती भी देखी गई है।

हालांकि, पाकिस्तान स्थित संगठनों ने भी योजना बनाई है। भारतीय सुरक्षा बलों के आकलन के अनुसार, पाकिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के कई गुर्गों ने अफगानिस्तान की स्थिति से महीनों पहले घुसपैठ की थी।

निश्चित तौर पर अफगान-पाकिस्तान का एक संबंध है। भारत की एनआईए का कहना है कि अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में स्थित अल-कायदा और तालिबान शिविरों में करीब 1,000 पाकिस्तानी आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया गया है।

भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने अपने एक बयान में कहा है, हम इस बात से चिंतित हैं कि अफगानिस्तान से आतंकवादी गतिविधि भारत में कैसे बढ़ सकती है और इस मुद्दे को लेकर हमारी आकस्मिक योजना चल रही है और हम इसके लिए तैयार हैं।

 

आईएएनएस

Created On :   30 Aug 2021 9:30 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story