मध्य प्रदेश के चुनाव में 148 सीटों को प्रभावित करेगा एट्रोसिटी एक्ट
- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पलटने के विरोध में भाजपा के कई नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं
- एक्ट के तहत निचली जाति के लोगों को समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए
- सवर्ण और दलित के बीच खिंची इस खाई में कोई भी राष्ट्रीय पार्टी कूदने को तैयार नहीं है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। एट्रोसिटी एक्ट (SC/ST act) इस समय देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। सवर्ण और दलित के बीच खिंची इस खाई में कोई भी राष्ट्रीय पार्टी कूदने को तैयार नहीं है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व न तो इसका खुलकर समर्थन कर रहा है और न ही इसके विरोध में कुछ बोलने को तैयार है। हालांकि, अपने-अपने तरीके से पार्टियां दोनों समुदाय के वोटबैंक पर निशाना साधने की कोशिश कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पलटने के फैसले के विरोध में भारतीय जनता पार्टी के कई नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 148 सीटों को सवर्ण और पिछड़े सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। हालांकि, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट में बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी, लेकिन अभी ऐसा कोई भी अधिकारिक आदेश पारित नहीं हुआ है।
एमपी में नहीं होगा SC-ST ऐक्ट का दुरुपयोग, बिना जाँच के नहीं होगी गिरफ़्तारी।
— ShivrajSingh Chouhan (@ChouhanShivraj) September 20, 2018
अब तक इतने विरोध प्रदर्शन
- 3 सितंबर 2018 को मध्य प्रदेश और बिहार के कई शहरों में प्रदर्शन हुए।
- 5 सितंबर 2018 को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए।
- 6 सितंबर 2018 को सवर्ण संगठनों ने भारत बंद बुलाया।
- 20 सितंबर 2018 को मंत्री रामपाल सिंह के बंगले में घुसकर हंगामा।
- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में सवर्ण आंदोलन का प्रभाव ज्यादा है।
1989 में बनाया गया एट्रोसिटी एक्ट
अनूसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर होने वाले अत्याचार रोकने के लिए 1989 में एट्रोसिटी एक्ट (SC/ST act) बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इसे लागू किया गया था। एक्ट के तहत निचली जाति के लोगों को समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए। अपराधों की सुनवाई के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई।
1955 में भी बन चुका है एक एक्ट
एससी-एसटी वर्ग के लोगों को समाज में बराबरी का स्थान दिलाने के लिए 1955 में "प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट" बनाया गया था। इसके बाद भी सालों तक इस तबके के लोगों को छूआछूत का दंश झेलना पड़ा। दलितों पर अत्याचार भी इस दौरान होते रहे। यह स्वतंत्रता के समय एससी-एसटी से किए समानता के वादे का उल्लंघन था। देश आजाद होने के 3 दशक बाद भी इनकी स्थिति बेहद खराब थी। इन समुदायों को अत्याचारों से बचाने एट्रोसिटी एक्ट लाया गया।
एक्ट में क्या हैं प्रावधान
एट्रोसिटी एक्ट 1989 में अत्याचार से पीड़ित लोगों को पर्याप्त कानूनी मदद दिए जाने का प्रावधान है। इसमें पीड़ित के लिए सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास का भी प्रावधान है। ऐसे मामलों में पीड़ितों और गवाहों का जरूरी खर्च उठाना भी सरकार की जिम्मेदारी है। कार्रवाई शुरू करने अधिकारी की नियुक्ति से लेकर ऐसे इलाकों का पता लगाना भी सरकार की जिम्मेदारी है, जहां एससी औस एसटी के लोगों पर अत्याचार हो सकते हैं।
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Created On :   21 Sept 2018 2:40 PM IST