कांचीपुरम पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को महासमाधि दी गई
- 1) उत्तर मठ
- ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है। 2) पूर्वी मठ
- गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है। 3) दक्षिणी मठ
- श्रंगेरी शारदा पीठ जो कि श्रंगेरी में स्थित है। 4) पश्चिमी मठ
- द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है।
- आदि शंकराचार्य को हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में गिना जाता है।
- इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। ये उपाधि सबसे पहले आदि शंकराचार्य को मिली थी जो कि एक हिन
डिजिटल डेस्क, कांची। कांचीपुरम मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का बुधवार को 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया था और गुरुवार को उनको महासमाधि दी गई। अंतिम दर्शन के लिए शंकराचार्य का पार्थिव शरीर कांचीपुरम के मठ में रखा गया था। कांचीपुरम पीठ के 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती कई दिनों से बीमार चल रहे थे और कांचीपुरम के एक हॉस्पिटल में एडमिट थे, जहां उन्होंने बुधवार को आखिरी सांस ली। बता दें कि जयेंद्र सरस्वती के निधन के बाद अब शंकर विजयेंद्र सरस्वती कांचीपुरम पीठ के 70वें शंकराचार्य होंगे।
कौन थे जयेंद्र सरस्वती?
जयेंद्र सरस्वती को शंकाराचार्य बनाए जाने से पहले सुब्रमण्यम अय्यर के नाम से जाना जाता था। उनका जन्म 18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु के कांचीपुरम में हुआ था। कांचीपुरम मठ के 68वें शंकराचार्य श्री चंद्रशेखर सरस्वती स्वामीगल ने 22 मार्च 1954 को उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। जयेंद्र सरस्वती ने 1983 में शंकर विजयेंद्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। बता दें कि कांचीपुरम मठ की स्थापना आदिगुरू शंकराचार्य ने 5वीं शताब्दि में की थी। ये मठ कई स्कूल, क्लीनिक और हॉस्पिटल भी चलाता है।
जयेंद्र सरस्वती पर लगा था हत्या का आरोप
कांचीपुरम मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पर 2004 में वर्धराज पेरूमल मंदिर के मैनेजर शंकररमन की हत्या का आरोप लगा था और इस मामले में उन्हें गिरफ्तार भी किया था। 9 साल तक इस केस का ट्रायल चला और 2013 में उन्हें बरी कर दिया गया था। जयेंद्र सरस्वती पर आरोप था कि उनके इशारे पर ही मंदिर कैंपस में शंकररमन की 3 सितंबर 2004 को हत्या की गई। इस में जयेंद्र सरस्वती के खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हो पाया था, जिसके बाद उन्हें शंकररमन की हत्या के मामले में बरी कर दिया गया था। बता दें कि इस केस की सुनवाई के दौरान 189 में से 80 गवाह अपने बयान से पलट गए थे।
किसे मिलता है शंकराचर्या का पद ?
शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो कि बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है।इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। ये उपाधि सबसे पहले आदि शंकराचार्य को मिली थी जो कि एक हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे। आदि शंकराचार्य को हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में गिना जाता है। उन्हें जगतगुरु के तौर पर सम्मान प्राप्त है जो सिर्फ भगवान कृष्ण को कहा जाता है। उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। तब से इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है।
चार मठ निम्नलिखित हैं:
1) उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है।
2) पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है।
3) दक्षिणी मठ, श्रंगेरी शारदा पीठ जो कि श्रंगेरी में स्थित है।
4) पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है।
इन चार मठों के अतिरिक्त भी भारत में कई अन्य जगह शंकराचार्य पद लगाने वाले मठ मिलते हैं। ये इस प्रकार हुआ कि कुछ शंकराचार्यों के शिष्यों ने अपने मठ स्थापित कर लिए और अपने नाम के आगे शंकराचार्य उपाधि लगाने लगे। लेकिन असली शंकराचार्य उपरोक्त चारों मठों पर आसीन को ही माना जाता है।
क्या है कांचीपुरम पीठ?
कांची कामकोठी पीठ तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित है और ये 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिंदु मान्यताओं के अनुसार जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना की गई। माना जाता है कि कांचीपुरम में सती का कंकाल गिरा था और इसी कारण यहां कांची कामकोठी पीठ की स्थापना आदिगुरू शंकाराचार्य ने की थी। यहां पर देवी कामाक्षी का भव्य मंदिर है, जहां कामाक्षी देवी की विशाल मूर्ति है।
Created On :   1 March 2018 8:42 AM IST