दुर्लभ बीमारियों पर आएगा केंद्र सरकार का मास्टर प्लान, लागू होगी हेल्थ पॉलिसी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार देशवासियों को एक और सौगात देने की तैयारी में है। देश के 50 करोड़ लोगों को सरकार स्वास्थ्य बीमा देने की योजना लेकर आ रही है। केंद्र सरकार जल्द ही राज्य सरकारों के साथ मिलकर देश में दुर्लभ बीमारियों के खिलाफ एक अभियान शुरू करने वाली है। उम्मीद लगाई जा रही है कि इस साल के अंत तक इस पॉलिसी को लागू कर दिया जाएगा, जिसमें फिजिशियन डॉक्टरों को भी इन बीमारियों के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय करीब 300 तरह की दुर्लभ बीमारियों को लेकर एक राष्ट्रीय पॉलिसी निर्माण करने में जुटा है।
फिजिशियन डॉक्टरों को मिलेगी ट्रेनिंग
बता दें कि आयुष्मान भारत योजना के तहत डेढ़ लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर खुलेंगे। जिसमें लोगों को सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। मंत्रालय जल्द ही इस मसौदे को कैबिनेट तक पहुंचाने वाला है। बताया जाता है कि दुनियाभर में करीब 7 हजार दुर्लभ बीमारियां पाई जाती है। जिनमें से भारत में करीब 300 तरह की दुर्लभ बीमारियां हैं। इनका बीमारिों के उपचार में भी करीब 8 से 20 लाख रुपए का खर्च होता है। अभी सरकारी अस्पतालों में सुविधा न होने की वजह से मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है।
एलएसडी बीमारियों के मरीज सबसे ज्यादा
बता दें कि इन्हीं में से एक लायसोसोमल स्टोरेज डिस्ऑर्डर (एलएसडी) दुर्लभ बीमारी है, इसकी पहचान आसानी से नहीं हो पाती। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि आमतौर पर 300 तरह की दुर्लभ बीमारियां पाई जाती हैं। जिनके मरीजों की संख्या करीब दो से तीन लाख है, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा एलएसडी बीमारियों के मरीज हैं। इस कारण ऐसे मरीजों पर ज्यादा फोकस किया जाना है। इसमें लगभग 50 दुर्लभ विकार आते हैं जिसमें मुख्य रूप से चार तरह की बीमारियां गौचर, एमपीएस, फ्रैबी और पोम्पे के मरीज ज्यादा हैं।
200 करोड़ खर्च करेगी सरकार
जानकारी के अनुसार, इस बीमारी में एंजाइम की कमी के कारण कोशिकाएं फैट व कार्बोहाइड्रेट को नहीं तोड़ पाती हैं। जिससे शरीर में विषाक्त पदार्थ बनने लगता है। सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की इस पॉलिसी पर सरकार करीब 200 करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। बाकी करीब 125 करोड़ रुपए राज्य सरकारों को देना है। इसके अलावा पॉलिसी में दुर्लभ बीमारियों से जुड़े सभी प्रमुख पहलुओं को कवर किया है जिसमें बीमारी की पहचान करने वाले ज्यादा से ज्यादा केंद्रों को बनाना, इलाज के लिए केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा फंड प्रदान करना और वेब से जुड़ी ऐप्लिकेशन बनाना शामिल है।
एलएसडी के लक्षणों की पहचान में लगता है समय
दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की डॉ. सीमा कपूर के अनुसार, कई बार एलएसडी के लक्षणों की पहचान करने में 7 से 10 साल तक का समय लग जाता हैं। एलएसडी के बारे में मरीजों को जेनेटिक काउंसिलिंग न देना, जिनकी पारिवारिक हिस्ट्री में दुर्लभ बीमारियां हो, उस परिवार की गर्भवती महिलाओं की भ्रूण जांच, नवजात शिशु की स्क्रीनिंग की जानकारी न होने शामिल है।
Created On :   26 Feb 2018 11:07 AM IST