किसान आत्महत्या के आंकड़े छुपा रही मोदी सरकार, 2 साल से पेश नहीं हुई रिपोर्ट
- NCRB एक सरकारी संस्था है
- जो पूरे देश में किसान आत्महत्या पर आंकड़ा इकठ्ठा करके उसे प्रकाशित करने का काम करता है।
- NCRB की वेबसाइट पर किसानों की आत्महत्या से सम्बंधित पिछले आंकड़े 2015 के हैं।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत एक कृषि प्रधान देश है। 60 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए हैं। मगर पिछले कुछ वर्षों में अन्नदाता किसान उनके उपज की वजह से नहीं बल्कि उनकी आत्महत्या की वजह से ज्यादा खबरों में हैं। भारत में किसान और कृषि मजदूर आत्महत्या कर रहे हैं और इस संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पहले देश में किसानों कि आत्महत्या की खबरें सिर्फ महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश तक ही सीमित थी, मगर अब इसमें मध्य प्रदेश और राजस्थान का नाम भी जुड़ गया है। इससे निपटने के लिए सरकार ने अभी तक कोई पहल नहीं की है। यह काफी रोचक है कि सारी राजनीतिक पार्टियां भारतीय किसानों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार का विरोध कर रही हैं।
कहां है पिछले दो साल के किसान आत्महत्याओं के आंकड़े?
आंकड़ों को आधार बनाकर बयानबाज़ी ज़रूर की जाती है, पर यह भी सरकार के लिए अब मुश्किल ही है, क्योंकि पिछले दो वर्षों से सरकार ने किसान की आत्महत्या के कोई आंकड़े पेश नहीं किए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB ) ने पिछले दो साल (2016 2017 ) के किसानों की आत्महत्या के आंकड़े जारी ही नहीं किए हैं। NCRB की वेबसाइट पर किसानों की आत्महत्या से सम्बंधित पिछले आंकड़े 2015 के हैं। आंकड़े न प्रकाशित होने पर सरकारी अधिकारियों ने बताया कि कुछ राज्यों के द्वारा भेजे गए डाटा में गड़बड़ी के वजह से देरी हुई है।
बता दें कि NCRB एक सरकारी संस्था है, जो पूरे देश में किसान आत्महत्या पर आंकड़ा इकठ्ठा करके उसे प्रकाशित करने का काम करता है। NCRB सालाना कई रिपोर्ट जारी करता है, जो अपराध संबंधी आंकड़े प्रदान करता है। प्रत्येक वर्ष का आंकड़ा अगले वर्ष की रिपोर्ट में प्रकाशित किया जाता है।
साल 2015 में 12,602 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की
ब्यूरो ने 2015 की रिपोर्ट में पहली बार एक अलग सेक्शन के रूप में किसान आत्महत्या का आंकड़ा प्रकाशित करना शुरू किया था। NCRB के रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 में 12 हजार 602 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है। जबकि 2014 में ये संख्या 12 हजार 360 थी। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 8007 और कृषि मजदूरों की 4595 थी। वहीँ 2014 में 5650 किसानों ने जबकि 6710 कृषि मजदूरों ने अपनी जान गंवाई। इस प्रकार देखें तो किसान-आत्महत्या के मामले में 2014 से 2015 के बीच कुल 42 फीसदी का इजाफा हुआ है जो कि बेहद चिंताजनक है।
संसद में पेश की गई 2016 की अस्थाई रिपोर्ट
इसके बाद ब्यूरो ने कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की। इस साल की शुरुआत में संसद में किसान आत्महत्या के आंकड़ों का हवाला दिया गया था। बजट सत्र में गृह मंत्रालय ने संसद में बताया था कि 2016 के किसान आत्महत्या के आंकड़ों को संकलित करना अभी बाकी है। कुछ दिनों के बाद गृह मंत्रालय द्वारा 2016 में किसान आत्महत्या पर एक अस्थायी रिपोर्ट पेश की गयी, जिसमें 6351 किसानों और 5019 कृषि मजदूरों के आत्महत्या करने की बात कही गयी है। NCRB के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पश्चिम बंगाल और बिहार में 2016 में किसानों की आत्महत्या की रिपोर्ट में एक भी मामला सामने नहीं आया है और कुछ राज्यों में आकड़े कम तो कुछ में ज्यादा दिखाया गया है | एक अधिकारी ने बताया कि ब्यूरो ने इन राज्यों को नोटिस भेजा है कि वे उनकी संख्या की त्वरित समीक्षा करें। NCRB के निदेशक ईश कुमार ने आंकड़े में देरी के कारणों पर स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि आंकड़े जांच के अधीन हैं और जून के आखिर में प्रकाशित होने की संभावना है।
ADSI की रिपोर्ट भी आना बाकी है
2016 के लिए, NCRB की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाईड्स इन इंडिया (ADSI) रिपोर्ट अभी भी प्रतीक्षा की जा रही है। इन रिपोर्टों के प्रकाशन में देरी उन्हें संकलित करने के उद्देश्य को हरा देती है। दरअसल ये रिपोर्ट सरकारों और अन्य हितधारकों को अपराध और अन्य विभिन्न आंकड़ों की समीक्षा करने का अवसर प्रदान करती हैं। रिपोर्ट प्रासंगिक सुधारात्मक कार्रवाई के लिए सरकारों को धक्का देकर वहां जागरुकता प्रदान करती है। इन रिपोर्टों के रिलीज में अनुचित देरी उन्हें संकलित करने के उद्देश्य को हरा देती है। लोगों की आशा होती है कि NCRB अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) के परिचय के साथ 6 महीने के भीतर इन रिपोर्टों को जारी करेगी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, 2016 के लिए ADSI और जेल सांख्यिकी रिपोर्ट दोनों अभी तक जारी नहीं किये गए हैं।
Created On :   9 Jun 2018 9:21 PM IST