मप्र: कोरोना काल में बाल कथाएं बच्चों के लिए बनी सहारा

MP: Childrens stories in the Corona era were made for children
मप्र: कोरोना काल में बाल कथाएं बच्चों के लिए बनी सहारा
मप्र: कोरोना काल में बाल कथाएं बच्चों के लिए बनी सहारा

भोपाल/दतिया, 28 अगस्त (आईएएनएस)। कोरोना संक्रमण के विस्तार को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को बड़ा हथियार माना गया है और इसी के चलते देश के अन्य हिस्सों की तरह मध्य प्रदेश में भी स्कूल बंद हैं और बच्चों का खेलना कूदना भी कम है। इन स्थितियों में बाल कथाएं बच्चों के लिए बड़ा सहारा बन गई है।

मध्यप्रदेश के दतिया जिले में बच्चों को मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियां उपलब्ध कराने के लिए जिला बाल अधिकार मंच के तहत गठित विद्यालय स्तरीय बाल अधिकार मंच ने पुस्तकालय शुरू किए हैं। यह पुस्तकालय जिले के दो गांव सेमई और दुर्गापुर में चलाए जा रहे हैं। इन पुस्तकालयों में उपलब्ध पुस्तकों की बाल कथाओं के जरिए बच्चे अपना मनोरंजन और ज्ञानार्जन करने में लगे हैं।

गैर सरकारी संगठन स्वदेश ग्रामोत्थान समिति के मुख्य कार्यकारी रामजी राय ने आईएएनएस को बताया है कि जिले में चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी द्वारा बच्चों में अपने अधिकारों के प्रति जागृति लाने के लिए राज्य के पच्चीस जिलों में जिला बाल अधिकार मंचों का गठन किया गया है। इसी के तहत दतिया में विद्यालय स्तर पर 11 बाल अधिकार मंच बनाए गए है। इन्हीं में से दो -- गांव सेमई और दुर्गापुर में विद्यालय स्तर पर बने बाल अधिकार मंच ने बच्चों के लिए कोरोना काल में बाल कथाओं की पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए पुस्तकालय शुरु किए हैं।

उन्होंने आगे बताया कि दोनों ही गांव में मंच के एक-एक सदस्य के घर 25-25 बाल कथाओं पर आधारित पुस्तकें पुस्तकालय के तौर पर रखी गई हैं, जिन्हें बच्चे अपनी रूचि के अनुसार संबंधित सदस्य के यहां से हर रोज बदल-बदल कर अपने घर पुस्तकें ले जाते हैं। जब वे उस किताब की कहानी पढ़ लेते है या दूसरी किताब की जरुरत महसूस करते है तो उसे बदल कर ले लेते है।

सेमई गांव की छात्रा बृज कुंवर पांचाल कोरोना के समय मिली बाल कथाओं की किताबों से बड़ी खुश है। उनका कहना है कि स्कूल बंद हैं और खेलना कूदना भी लगभग बंद ही है, इन स्थितियों में यह किताबें जहां मनोरंजन कर रही हैं वहीं कई ज्ञानवर्धक जानकारियां भी दे रही हैं।

इसी तरह दुर्गापुर में बच्चों को बाल कथाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मंच के बृजेंद्र पटवा पर है। वह बताते है कि गांव के हम सभी बच्चों के लिए यह बाल कथाओं की किताबें बड़ी उपयोगी हो गई हैं। कोरोना के कारण घर से निकलना बंद है ऐसे में स्कूल की पढ़ाई पूरे समय तो हो नहीं सकती और टीवी भी देखें तो कितनी देर, ऐसे में यह बाल कथाएं पढ़कर नई-नई जानकारियां हासिल कर रहे हैं।

एसएनपी-एसकेपी

Created On :   28 Aug 2020 2:00 PM IST

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