पराली जलना ही है दिल्ली के प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह, नासा ने किया खुलासा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मॉनसून के बाद और सर्दी के मौसम से पहले हर साल प्रदूषण बढ़ने की प्रमुख वजह का नेशनल एरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने पता लगा लिया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में पाया है कि पंजाब और हरियाणा में फसलों के अवशेष जलाए जाने का दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने से एकदम सीधा रिश्ता है। नासा के वैज्ञानिकों ने इस पर नियंत्रण पाने का भी उपाय बताया है। उन्होंने कहा कि अगर पराली जलाने के समय में थोड़ा बदलाव कर लिया जाए, तो इस समस्या का काफी कुछ समाधान हो सकता है।
फसलों के अवशेष जलाना ही असली वजह
नासा की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार फसलों के अवशेष जलाए जाने का सीधा असर दिल्ली पर पड़ता है, क्योंकि पंजाब और हरियाणा राष्ट्रीय राजधानी से बहुत निकट हैं और वहां की हवा यहां आसानी से आ जाती है। रबी और खरीफ की फसलें कटने के बाद जब पंजाब और हरियाणा में बड़ी मात्रा में फसलों के अवशेष जलाए जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार फसलों की अवधि में 32 मिलियन टन फसलों के अवशेष जलाए जाते हैं, जिसका मारक धुंआ पर्यावरण पर गंभीर असर डालता है। अध्ययन के अनुसार दोनों राज्यों में फसलों के अवशेष जलाए जाने से पीएम 2.5 के स्तर पर पहुंच जाता है।
पर्यावरण पर पड़ता है मारक असर
फसलों के अवशेष जलाए जाने से दिल्ली पर्यावरण पर कितना विपरीत असर पड़ता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम दिनों में दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है, जबकि नवंबर की शुरुआत में यह 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक जा पहुंचता है। इन्हीं दिनों में आमतौर पर किसान धान की पराली जलाते हैं। सन 2016 की सर्दियों में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिली थी, जबकि पराली जलाए जाने के चलते पीएम 2.5 का स्तर 550 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था।
प्रदूषण के लिए वाहन, उद्योग भी जिम्मेदार
आपको याद होगा कि दिल्ली में नवंबर के महीने में स्मॉग की समस्या बहुत बढ़ गई थी। तब इसकी राष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चा हुई थी। बीते साल 5 नवंबर को पीएम 2.5 का स्तर 700 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के चिंताजनक स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि नासा के अध्ययन में यह भी कहा गया है कि पराली के अलावा 95 लाख स्थानीय वाहनों, उद्योग और निर्माण से जुड़ी गतिविधियां भी वायु प्रदूषम की वड़ी वजह हैं। नासा ने अपने अध्ययन में सरकार को स्मॉग की समस्या से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं।
अक्टूबर में जले पराली तो खराब नहीं होगी हवा
नासा के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में खुलासा किया है कि अगर पराली जलाने का समय बदल दिया जाए तो इस स्थिति पर अंकुश लगाया जा सकता है। अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि पराली पहले भी जलाई जाती थी, लेकिन तब प्रदूषण की इतनी बड़ी समस्या नहीं बनती थी। नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि इसकी वजह यह थी कि पहले पराली अक्टूबर के समय में जलाई जाती थी। पिछले कुछ सालों की अवधि में इसका समय धीरे-धीरे नवंबर तक आ गया। नवंबर में जाड़ा आ जाता है और हवा का रुख धीमा हो जाता है। ऐसे में पराली जलने के कारण पैदा हुआ धुआं हवा में उड़ नहीं पाता है और स्थानीय स्तर पर ही संकट खड़ा कर देता है।
Created On :   13 May 2018 10:08 AM IST