पुलिस को आरोपियों के शारीरिक, जैविक नमूने लेने का हक देने वाले नियम अधिसूचित
- इस अधिनियम ने कैदियों की पहचान अधिनियम
- 1920 की जगह ली है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम 2022 के तहत उन नियमों को अधिसूचित कर दिया है, जो पुलिस को दोषियों और अपराधों के आरोपियों के शारीरिक और जैविक नमूने प्राप्त करने का अधिकार देता है।
इस कानून के तहत पुलिस वाले आपराधिक मामलों में जांच के लिए दोषियों और बंदियों के फिजिकल और बायोलॉजिकल नमूने ले सकेंगे। इसके साथ ही ये कानून मजिस्ट्रेट को किसी अपराध की जांच में सहायता के लिए किसी शख्स के माप या तस्वीरें लेने का आदेश देने का भी अधिकार देता है।
इस कानून के मुताबिक, एक अधिकृत व्यक्ति जो पुलिस अधिकारी, केंद्र या फिर राज्य सरकार का जेल अधिकारी भी हो सकता है, को आरोपियों के उंगलियों के निशान, हथेली के निशान, पैरों के निशान, फोटो, आइरिस, रेटिना स्कैन, फिजिकल, बायोलॉजिकल नमूने और उनका विश्लेषण, व्यवहार संबंधी विशेषताएं, दस्तखत, लिखावट या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53 या धारा 53 ए में संदर्भित किसी अन्य जांच से संबंधित माप ले सकता है।
इस कानून में बताया गया है कि ऑथराइज्ड यूजर या माप लेने में कुशल कोई भी शख्स, सर्टिफाइड डॉक्टर या इस तरह से ऑथराइज्ड कोई अन्य शख्स किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार शख्स का माप ले सकता है, लेकिन इसके लिए कम से कम एसपी रैंक के अफसर से लिखित में मंजूरी लेना जरूरी है।
दरअसल, इस अधिनियम ने कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह ली है। इसमें ये भी बताया गया है कि एनसीआरबी दोषियों का माप लेने के लिए एक एसओपी जारी करेगी। इसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरण, फॉर्मेट, माप डिजिटल होगा या फिजिकल, राज्य और केंद्र शासित प्रशासन माप को कैसे स्टोर और हैंडल करेगा, माप के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सिस्टम आदि की जानकारी होगी।
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि अगर कोई शख्स, जिसका माप कानून के तहत लिया जाना है, वह मना करता है, तो ऑथराइज्ड शख्स कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, 1973 (1972 का 2) के तहत माप ले सकता है। अधिनियम के तहत विरोध करना या डेटा देने से इनकार करना एक लोकसेवक को उसकी ड्यूटी करने से रोकने का अपराध माना जाएगा।
(आईएएनएस)
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Created On :   20 Sept 2022 11:00 AM IST