गंवाई अंदाज, बेबाक बयानी से राजनीति में अलग पहचान रही रघुवंश की

Raghuvansh, who lost his style in politics, lost his mind
गंवाई अंदाज, बेबाक बयानी से राजनीति में अलग पहचान रही रघुवंश की
गंवाई अंदाज, बेबाक बयानी से राजनीति में अलग पहचान रही रघुवंश की
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पटना, 13 सितंबर (आईएएनएस)। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग-यूपीए) सरकार में केंद्रीय मंत्री का दायित्व निभाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह अपनी अंतिम यात्रा के अनंत सफ र पर निकल गए। अपनी गंवई अंदाज से राजनीति में पहचान बनाने वाले रघुवंश अपनी अंतिम सांस लेने के पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) छोड़ दिया था, लेकिन राजनीति में उनकी पहचान आजादशत्रु की थी। उनकी प्रशंसा सभी दलों के नेता करते हैं।

बिहार के वैशाली जिले के महनार प्रखंड के पानापुर शहपुर के रहने वाले रघुवंश 1977 में पहली बार बिहार परिषद का सदस्य बने और फि र वे राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ते चले गए। समाजवादी नेता रघुवंश स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते रहे। वे अपने पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद को भी समय-समय पर खरी-खरी बातें सुनाते रहे हैं।

बिहार की वैशाली लोकसभा सीट से सांसद रहे रघुवंश प्रसाद का जन्म छह जून 1946 को वैशाली के पानापुर शाहपुर में हुआ था। उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। अपनी युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लिया था।

1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया था। 1977 से लेकर 1990 तक वे बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। 1977 से 1979 तक उन्होंने बिहार के ऊ र्जा मंत्री का पदभार संभाला था। इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया।

1996 में पहली बार वे लोकसभा के सदस्य बने। 1998 में वे दूसरी बार और 1999 में तीसरी बार लोकसभा पहुंचे। 2004 में डॉक्टर सिंह चौथी बार लोकसभा पहुंचे। 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में लगातार पांचवी बार उन्होंने जीत दर्ज की।

10 सितंबर को उन्होंने राजद से इस्तीफो दे दिया था। हालांकि पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने उन्हें पत्र लिखकर कहा था, आप कहीं नहीं जा रहे।

सिंह के साथ काम करने वाले वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि ऐसे लोग अब राजनीति में दिखाई नहीं देते। उन्होंने कहा कि इनमें संघर्ष करने का अदम्य साहस था और पार्टी के प्रति समर्पण रहा।

सिंह को नजदीक से जानने वाले तिवारी कहते हैं, कर्पूरी ठाकुर के बाद वे लालू प्रसाद के साथ एकनिष्ठ खड़े रहे। वे कभी भी किसी काम का श्रेय लेने के लिए तत्तपर नहीं होते थे। मनरेगा के लिए उन्होंने काफी मेहनत की लेकिन कभी भी श्रेय लेने की कोशिश नहीं की।

सिंह अपने युवावस्था से ही समाजिक कायरें से जुड़े रहे, जो जीवन के अंतिम समय तक नहीं छोडा़। सिंह के भाषणों में लालू प्रसाद की छवि भी दिखाई देती थी, लेकिन वे स्पष्ट बोलते थे।

आईएएनएस ने रघुवंश प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व के विषय में जब बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी के संवाददाता रहे मणिकांत ठाकुर से पूछा तो उन्होंने कहा, ऊ पर से देहाती दिखने वाले सिंह अंदर से बहुत ही ज्ञानसमृद्घ और सामाजिक, ऐतिहासिक विषयों का गहन जानकार थे।

वे कहते हैं, वे किसी भी गलत कायरें का विरोध करते रहे हैं। लालू यादव की नाराजगी से बेपरवाह रघुवंश बाबू ने अपने ही दल के उन निर्णयों का खुल कर विरोध किया, जिन्हें वह अनैतिक या जनविरोधी मानते थे।

सिंह को नजदीक से जानने वाले भी कहते हैं कि उनका साधरण रहन सहन और गंवई अंदाज, लोगों से मिलने-जुलने या बतियाने के तरीके गांवों के लोगों में गहरी पैठ बनाने में मदददगार साबित होते थे।

पूर्व सांसद रामा सिंह के पार्टी में लाने की संभवना के कारण इन दिनों रघुवंश अपनी पार्टी से खासे नाराज थे। वे किसी भी हाल में रामा सिंह को पार्टी में नहीं आने देना चाह रहे थे। अपनी राजनीति शैली से उन्होंने इसका विरोध किया। स्वास्थ्य कारणों से जब वे दिल्ली एम्स में इलाजरत थे और उन्हें लगा कि वे अब इसका विरोध नहीं कर पाएंगे तब उन्होंने अपने राजनीति सहयोगी रहे और पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद को एक पत्र लिखकर कह दिया, अब नहीं ।

एमएनपी-एसकेपी

Created On :   13 Sep 2020 10:01 AM GMT

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