त्रिपुरा में इन कारणों के चलते ढहा लेफ्ट का किला
By - Bhaskar Hindi |3 March 2018 12:40 PM IST
त्रिपुरा में इन कारणों के चलते ढहा लेफ्ट का किला
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने त्रिपुरा में पिछले 25 सालों से सत्ता में काबिज लेफ्ट के किले को ढहाकर अपनी सरकार बना ली है। बीजेपी के लिए ये जीत किसी इतिहास रचने से कम नहीं है। चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल्स में भी बीजेपी की त्रिपुरा में जीत का दावा किया गया था, लेकिन जितनी सीटों से बीजेपी ने ये जीत हासिल की है वो राजनीतिक विश्लेषकों के अलावा बीजेपी के लिए भी चौंकाने वाले हैं। बांग्लाभाषी लोगों की बहुलता वाले इस राज्य में 1993 के बाद से ही सीपीएम की सत्ता थी, लेकिन पश्चिम बंगाल के बाद अब यह किला छिनना लेफ्ट के लिए चिंता की बात है। हमारी इस रिपोर्ट में पढ़िए वो कारण जिससे लेफ्ट का किला ढह गया।
- 1978 के बाद से 1988-93 के दौरान सिर्फ एक ही बार लेफ्ट सत्ता से दूर रही है और उसके बाद से पिछले 25 सालों तक यहां लेफ्ट का ही कब्जा रहा है। माणिक सरकार खुद 20 साल से मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे। त्रिपुरा की जनता बदलाव चाह रही थी और उसने विकल्प के तौर भाजपा को चुनना बेहतर समझा। लंबे समय से यहां पर वाम मोर्चे के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर काम कर रही थी।
- त्रिपुरा के सीएम माणिक सरकार को साफ सुथरी छवि वाला नेता माना जाता है। काफी हद तक वो भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाब भी रहे लेकिन, निचले स्तर पर तो भ्रष्टाचार को रोकने में मिली असफलता माणिक सरकार को किले को ढहाने का एक कारण रही।
- 2013 में बीजेपी को त्रिपुरा में कारारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। यहां तक की बीजेपी अपना खाता खोलने में भी सफल नहीं रह पाई थी। कारारी हार के बाद पिछले तीन सालों से बीजेपी यहां पर अपने संगठन को मजबूत बनाने में जुटी हुई थी। वहीं कांग्रेस ने इसे हल्के में लिया जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल गया।
- चुनाव से पहले कांग्रेस के विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ा। इसमें कई विधायक भाजपा में शामिल हुए और चुनाव में कांग्रेस के पास कोई प्रमुख चेहरा नहीं बचा और इसका फायदा कहीं न कहीं भाजपा को मिला। कांग्रेस को 2013 के असेंबली इलेक्शन में 36 फीसदी वोट मिले थे, जो इस बार घटकर सिर्फ 2 फीसदी रह गए।
- त्रिपुरा में बांग्ला भाषा बोलने वालों की एक बड़ी आबादी है। समझा जाता है कि इस आबादी ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। इसके अलावा आदिवासी समुदाय में भी इस बार भाजपा ने पकड़ बनाई। भाजपा राज्य की जनता को यह भरोसा दिलाने में सफल रही कि सत्ता में आने पर वह राज्य का विकास करेगी।
- इन चुनावों में बीजेपी के लिए योगी फैक्टर भी महत्वपूर्ण रहा। उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने त्रिपुरा में जिन 7 जगहों पर चुनाव प्रचार किया, उनमे से 5 स्थानों पर बीजेपी को जीत मिली। त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय की बड़ी आबादी को इसकी वजह माना जा रहा है।
- पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा से गठबंधन करना भी बीजेपी के लिए अहम साबित हुआ। बीजेपी की जीत में अहम रोल अदा करने वाले हेमंत बिस्व सरमा खुद इस बात का जिक्र कर चुके है।
अब देश के 29 में से 20 राज्य भगवा हो गए है। 2013 के चुनाव में बीजेपी को लेफ्ट का गढ़ कहे जाने वाले इस सूबे में महज 1.5 फीसदी वोट ही मिले थे, लेकिन इस बार बीजेपी गठबंधन ने वोट शेयर में बड़ी बढ़त हासिल करते हुए 49.6 पर्सेंट वोट हासिल किया है। बीजेपी को खुद 42 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि उसकी सहयोगी पार्टी पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा को 8.5 फीसदी वोट मिले हैं। इस तरह दोनों दलों के गठबंधन को सूबे के करीब आधे वोटरों ने समर्थन दिया है।
Created On :   3 March 2018 5:33 PM IST
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