अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकारी भर्ती को लेकर युवाओं में नाराजगी (आईएएनएस विशेष)

Resentment among youth for government recruitment in Jammu and Kashmir after Article 370 was repealed (IANS Special)
अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकारी भर्ती को लेकर युवाओं में नाराजगी (आईएएनएस विशेष)
अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकारी भर्ती को लेकर युवाओं में नाराजगी (आईएएनएस विशेष)
हाईलाइट
  • अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकारी भर्ती को लेकर युवाओं में नाराजगी (आईएएनएस विशेष)

नई दिल्ली/श्रीनगर, 21 सितम्बर (आईएएनएस)। केंद्र सरकार के इस आश्वासन के बाद कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी, जम्मू-कश्मीर की सार्वजनिक क्षेत्र की भर्तियों में मोहभंग प्रमुख स्रोत बना हुआ है।

श्रीनगर के एक उद्यमी मुनीब ने कहा, हमें वादा किया गया था कि योग्यता प्राथमिक आधार पर होगी, क्षेत्रीय असमानता मिट जाएगी और पक्षपात, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को जम्मू-कश्मीर से खत्म कर दिया जाएगा। कोई इनमें प्रतिबद्धता नहीं रखी गई है।

जेकेपीएससी (पब्लिक सर्विस कमीशन) और जेकेएसएसबी (सर्विस सिलेक्शन बोर्ड) जम्मू-कश्मीर की दो बड़ी भर्ती एजेंसियां ??हैं। जम्मू एवं कश्मीर बैंक रोजगार का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है। पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू एवं कश्मीर के पुनर्गठन के तुरंत बाद जेकेपीएससी ने साक्षात्कार आयोजित किए थे। इस बीच विवाद पैदा हो गया और जेकेपीएससी ने राजभवन को जवाब देते हुए स्वीकार किया कि आयोजित किए गए साक्षात्कार वैध नहीं थे।

आईएएनएस द्वारा एक्सेस किए गए दस्तावेजों के अनुसार, जेकेपीएससी ने स्वीकार किया कि पिछले साल 21 नवंबर से 31 अक्टूबर की अवधि के बीच आयोग ने साक्षात्कार आयोजित किए। जेकेपीएससी के अध्यक्ष लतीफ उज-जमान देवा की अगुवाई वाली नियुक्तियों पर तत्कालीन राज्यपाल ने सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए थे।

सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि आयोग के कई सदस्यों ने आरोप लगाया है कि घोषित परिणामों पर हस्ताक्षर जाली हैं। इस संबंध में पुलिस जांच का आदेश दिया गया, लेकिन इसके फॉरेंसिक परिणाम आज तक लंबित हैं। सूत्रों ने कहा कि जांच पूरी करने की लगातार उठ रही मांग पर अब अमल किए जाने की शुरूआत हुई है।

एक अधिकारी ने कहा, क्या जम्मू-कश्मीर सरकार के पास भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया मांगने का कोई अधिकार है? संवैधानिक संशोधनों के बाद, जम्मू-कश्मीर पिछले साल केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) बन गया और पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, एक नया पीएससी गठित किया जाना था।

इस प्रक्रिया से निराश होकर कुपवाड़ा में एक सामाजिक कार्यकर्ता तुसैफ ने कहा, लगभग एक साल हो गया है, लेकिन युवाओं का भाग्य अधर में लटका हुआ है। आजादी के बाद से जम्मू-कश्मीर को एक बाद एक पैकेज तो दिए गए, लेकिन यहां नाराजगी कई गुना बढ़ गई है। क्योंकि कुछ ही लोगों को फायदा पहुंचाया जाता है। चुनिंदा परिवारों के बीच ही नौकरियां साझा की जाती हैं और पिछले कुछ वर्षों में रोजगार में भारी गिरावट आई है।

उदाहरण के लिए कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) 2008 के परिणाम जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट के दायरे में आए हैं। इस साल 18 जुलाई को हाईकोर्ट ने प्रशासन को 2008 की चयन प्रक्रिया का रिकॉर्ड पेश करने का आदेश दिया था। संयोग से इस साल 12 अगस्त को जेकेपीएससी कार्यालय में आग लग गई और इसमें सभी रिकॉर्ड नष्ट हो गए। इस घटनाक्रम काद अटकलों का बाजार गर्म रहा है।

इसी तरह, केएएस में वरिष्ठता का मुद्दा पिछले कई वर्षों से अनसुलझा है। पिछले एक दशक में हाईकोर्ट के कई आदेशों की अनदेखी की गई है। हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाने के बावजूद वर्गीज और व्यास कमेटी की रिपोर्ट पर भी अभी तक काम नहीं हो सका है।

एक आरटीआई जवाब में पता चला है कि हाईकोर्ट की जम्मू पीठ में 4,072 अवमानना ??याचिकाएं लंबित हैं और श्रीनगर पीठ में सरकारी कर्मचारियों के मुद्दों से संबंधित 2,282 अवमानना ??याचिकाएं लंबित पड़ी हुई हैं।

एकेके/जेएनएस

Created On :   21 Sept 2020 8:31 PM IST

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