रोहिंग्या : SC में सरकार ने कहा- देश की आंतरिक सुरक्षा का ध्यान रखना होगा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में सुनवाई के दौरान सख्त रवैया अपनाया। सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने का आदेश दिया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए कुछ लोगों ने चुनौती दी है। इस याचिका पर हो रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा है कि हमें देश की आंतरिक सुरक्षा को भी ध्यान में रखना होगा।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दलील दी कि ये मामला राजनयिक स्तर पर सुलझाने दिया जाए। इसमें कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए। केंद्र ने कहा कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि कौन देश के डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) को बदलने की कोशिश कर रहा है और देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने की कोशिश कर रहा है, इसको देखने की जरूरत है। सरकार ने कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने की कोशिश करने वालों की पहचान होनी चाहिए।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि म्यांमार में अपनी जान का खतरा होने के कारण ही रोहिंग्या मुसलमान इस देश में शरणार्थी की तरह आए हैं। इन रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजा जाना चाहिए। शरणार्थियों के जीवन का सवाल है। उन्हें तमिल शरणार्थियों की तरह रहने देना चाहिए। हमारे लिए जरूरी है कि हमें उनके मानवाधिकार को सबसे पहले प्रोटेक्ट करना चाहिए।
प्रशांत भूषण ने कहा कि इनके हेल्थ और एजुकेशन के लिए सुविधाएं होनी चाहिए। गरीबों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही है। इस दौरान एक अन्य वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि रोहिंग्याओं को अस्पताल में इलाज नहीं मिल रहा और उनके बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिया जा रहा है।
इसके बाद भारत सरकार की ओर से अडिशनल सलिसिटर जनरल ने कहा कि रोहिंग्या घुसपैठियों का मामला राजनयिक स्तर पर सुलझाया जाएगा। इस मामले को राजनयिक स्तर पर सुलझाने के लिए छोड़ा जाना चाहिए। इस मामले में म्यांमार, बांग्लादेश और भारत के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत चल रही है।
जहां तक इलाज का सवाल है तो भारतीय और गैरभारतीय सबका इलाज होता है, इसमें कोई भेदभाव नहीं है। सवाल ये है कि इस तरह का पीआईएल कहां से आ रहा है और कौन इसके पीछे है, ये देखा जाना चाहिए। याचिकाकर्ता मीडिया के हेडलाइन बनाने के लिए इस तरह के मामले उठाते हैं। ऐसे मामले में आदेश पारित नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार ने जो हलफनामा दायर किया है और जो जवाब दाखिल किया है, उसके तहत हम कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में आखिरी सुनवाई 9 अप्रैल को होगी। बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और कई राज्यों से कहा है कि वह कैंपों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति के बारे में समग्र स्थिति रिपोर्ट पेश करें।
Created On :   19 March 2018 9:23 PM IST