RP के तहत नियम बनाने का अधिकार हमें मिलना चाहिए : इलेक्शन कमीशन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को इलेक्शन कमीशन ने एक एफिडेविट फाइल कर कहा है कि नियम बनाने का अधिकार कमीशन को दिया जाए। कमीशन ने कहा कि "रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट-1950 और 1951 के तहत नियम बनाने का अधिकार केंद्र सरकार की बजाय इलेक्शन कमीशन को ही मिलना चाहिए। हम 2010 से ये बात कहते आ रहे हैं।" हालांकि कमीशन ने ये भी कहा कि "नया नियम बनाते वक्त केंद्र सरकार से सलाह ली जाएगी।" दरअसल, बीजेपी लीडर और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने इलेक्शन कमीशन की ऑटोनॉमी (स्वायत्ता) और इलेक्शन कमिश्नर को हटाने के नियमों में बदलाव करने की मांग करते हुए एक पिटीशन दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई के दौरान कमीशन ने ये एफिडेविट दिया है।
इलेक्शन कमीशन ने क्या कहा?
- इलेक्शन कमीशन ने कहा "हमने 1998 और 2004 में सरकार को भेजे गए प्रस्ताव में नियम बनाने का अधिकार देने की बात कही गई थी। इसके बाद दिसंबर 2016 में कमीशन ने चुनाव सुधारों में भी नियम बनाने का अधिकार देने की बात कही थी।"
- कमीशन ने कहा "संविधान के तहत मिली ऑटोनॉमी किसी व्यक्ति के लिए विशेष तौर पर नहीं, बल्कि पूरे संस्थान के लिए होती है। ऐसे में कमीशन को तभी मजबूत किया जा सकता है, जब इलेक्शन कमिश्नर्स को चीफ इलेक्शन कमिश्नर्स जैसे अधिकार और सुरक्षा मिले।"
- कमीशन ने कहा "इलेक्शन कमीशन की ऑटोनॉमी बनी रहे, इसके लिए आर्टिकल 324(5) में चीफ इलेक्शन कमिश्नर को महाभियोग के जरिए ही हटाने की बताने कही गई है। जबकि बाकी इलेक्शन कमिश्नर्स के लिए इस तरह की सुरक्षा नहीं है। इसमें इतना ही कहा गया है कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर की सिफारिश पर ही इलेक्शन कमिश्नर्स को हटाया जा सकता है। इस प्रावधान में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि इलेक्शन कमिश्नर्स को भी हटाए जाने के मामले में चीफ इलेक्शन कमिश्नर्स जैसी ही सुरक्षा मिले।"
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अश्विनी उपाध्याय ने पिटीशन में क्या की थी मांग?
अश्विनी उपाध्याय की तरफ से फाइल की गई इस पिटीशन में मांग की गई है कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नर की अपॉइंटमेंट प्रोसेस में भी ट्रांसपेरेंसी होनी चाहिए। इस पिटीशन में कहा गया है कि "हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के अपॉइंटमेंट में जिस प्रोसेस को फॉलो किया जाता है, वैसी ही प्रोसेस चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नर के अपॉइंटमेंट में भी फॉलो की जाए।" इसके साथ ही ये भी मांग की गई है कि इलेक्शन कमिश्नर को भी हटाने की प्रोसेस चीफ इलेक्शन कमिश्नर की तरह ही हो।
उन्होंने अपनी पिटीशन में कहा है कि "इलेक्शन कमीशन को भी ये अधिकार मिले कि वो सुप्रीम कोर्ट की तरह चुनाव संबंधी कानून और आचार संहिता खुद बना सके।" इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि "जिस तरह से लोकसभा और राज्यसभा का अलग सेक्रेटरिएट होता है, वैसे ही इलेक्शन कमीशन का भी अलग से सेक्रेटरिएट बने।" उपाध्याय ने अपनी पिटीशन में मांग की है कि "स्टेट इलेक्शन कमिश्नर को भी चीफ इलेक्शन कमिश्नर की तरह ही सुरक्षा मिलनी चाहिए, ताकि कमीशन की स्वतंत्रता बरकरार रहे।" उन्होंने अपनी पिटीशन में संविधान की धारा-324(5) को चुनौती दी है।
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इलेक्शन कमिश्नर कैसे होते हैं अपॉइंट?
चीफ इलेक्शन कमिश्नर और स्टेट इलेक्शन कमिश्नर को राष्ट्रपति अपॉइंट करते हैं। चीफ इलेक्शन का टेन्योर 6 साल या 65 साल की उम्र तक होता है, जबकि स्टेट इलेक्शन कमिश्नर का टेन्योर 6 साल या 62 साल की उम्र तक होता है। इलेक्शन कमिश्नर्स को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बराबर ही सैलरी मिलती है। चीफ इलेक्शन कमिश्नर को महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है। इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा, राष्ट्रपति जैसे चुनाव कराने की जिम्मेदारी होती है। वहीं स्टेट इलेक्शन कमीशन ग्राम पंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद, तहसील और जिला परिषद के चुनाव कराने का अधिकार होता है।
क्या होता है महाभियोग?
भारत के संविधान के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के जज और चीफ इलेक्शन कमिश्नर को सिर्फ "महाभियोग" के जरिए ही हटाया जा सकता है। महाभियोग को "इंपीचमेंट" कहा जाता है, जिसका लैटिन भाषा में मतलब होता है "पकड़े जाना"। भारतीय संविधान में महाभियोग का उल्लेख आर्टिकल 124(4) में मिलता है। इसके तहत अगर किसी भी कोर्ट के जज या चीफ इलेक्शन कमिश्नर पर कोई आरोप लगता है, तो उसे महाभियोग लाकर पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग के जरिए पद से हटाने के लिए लोकसभा के 100 सांसद और राज्यसभा के 50 सांसदों की सहमति जरूरी होती है। इसके साथ ही महाभियोग के जरिए चीफ इलेक्शन कमिश्नर को तभी पद से हटाया जा सकता है, जब ये प्रस्ताव संसद को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास होता है।
Created On :   13 April 2018 7:42 AM IST