चुनाव उम्मीदवारों को मीडिया में देनी होगी क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी: SC

SC directed Election candidates must advertise their crime record in media
चुनाव उम्मीदवारों को मीडिया में देनी होगी क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी: SC
चुनाव उम्मीदवारों को मीडिया में देनी होगी क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी: SC
हाईलाइट
  • चुनाव प्रत्याशी अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी निर्वाचन आयोग के फॉर्म में बोल्ड लेटर्स में दे।
  • नामांकन के बाद क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी मीडिया में देनी होगी।
  • राजनीतिक दलों को अपने प्रत्याशियों के आपराधिक अतीत की जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी देनी होगी।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश से राजनीतिक दलों और चुनाव प्रत्याशियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। SC के नए आदेश के अनुसार चुनाव प्रत्याशियों को अब अपने आपराधिक रिकॉर्ड्स सार्वजनिक करने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से कहा है, हर प्रत्याशी अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी निर्वाचन आयोग की तरफ से दिए गए फॉर्म में बोल्ड लेटर्स में दे। इतना ही नहीं नामांकन दाखिल करने के बाद प्रत्याशी को अपने क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी अखबारों और टीवी पर देनी होगी। 


राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर भी दें जानकारी
राजनीतिक दलों को अपने प्रत्याशियों के क्रिमिनल रिकॉर्ड्स अपनी वेबसाइट पर भी दिखानी होगी। एससी के आदेश के अनुसार निर्वाचन आयोग क्रिमिनल रिकॉर्ड्स के डिक्लेयरेशन के लिए एक नया फॉर्मेट तैयार करेगा। प्रत्याशियों के आपराधिक अतीत की जानकारी वोटर्स के बीच प्रचारित किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में किया जाएगा। 


जानकारियों में छेड़छाड़ से बचने का प्रयास
हालांकि अभी तक एक फॉर्मैट में चुनाव प्रत्याशी अपने आपराधिक रिकॉर्ड, असेट्स और लायबिलिटीज की जानकारी चुनाव आयोग को देते हैं। जानकारी वेबसाइट पर अपलोड की जाती है, लेकिन अब मतदाताओं को जानकारी देने के लिए नया फॉर्मैट बनाया जाएगा। जिससे जानकारी में छेड़छाड़ न की जा सके। 


विज्ञापन के खर्च पर संशय 
हालांकि यह साफ नहीं किया गया है कि, अखबारों और टीवी में आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी वाले विज्ञापन की लागत प्रत्याशी के चुनाव खर्च में जोड़ी जाएगी या नहीं। अभी प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में अधिकतम 28 लाख रुपये और लोकसभा चुनाव में 70 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। अखबारों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित सभी विज्ञापनों और प्रचार का खर्च इसी सीमा में शामिल किया जाता है। 


यह जमीनी हकीकत से दूर- सिंघवी
कोर्ट के इस फैसले को लेकर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, कोर्ट का निर्देश जमीनी हकीकत से दूर है। उन्होंने कहा आपराधिक इतिहास की जानकारी देना पहले ही कानूनी रूप से जरूरी है, लेकिन विज्ञापन देने के पहलू से मैं सहमत नहीं हूं। यह अवास्तविक है। 
 

Created On :   26 Sept 2018 7:49 AM IST

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