रेप केस में महिलाओं को भी हो सजा : पिटीशन, SC ने ठुकराई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा की उस पिटीशन को खारिज कर दिया, जिसमें महिलाओं को भी पुरुषों की तरह रेप और यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में सजा देने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ये संसद का काम है। CJI ने कहा कि ये काम संसद का है और वही इस पर फैसला ले सकती है। क्योंकि ऐसे कानून महिलाओं के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा ने 12 जनवरी को ये पिटीशन फाइल की थी।
कानून में बदलाव करना संसद का काम : SC
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऋषि मल्होत्रा की पिटीशन पर सुनवाई कर रही बेंच को हेड कर रहे CJI दीपक मिश्रा ने इस पिटीशन को "काल्पनिक याचिका" बताया है। CJI ने कहा कि "ये कानून महिलाओं की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। हम आपकी बात से सहमत नहीं है। ये हमें एक "काल्पनिक याचिका" की तरह लग रही है।" इसके साथ ही चीफ जस्टिस ने ये भी कहा कि "अगर पुरुषों के लिए कानून में बदलाव जरूरी है, तो इसे देखना संसद का काम है। कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगी।"
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पिटीशन में क्या की गई थी मांग?
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा की तरफ से फाइल की गई पिटीशन में मांग की गई थी, कि महिलाओं को भी पुरुषों की तरह रेप और यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में सजा दी जाए, क्योंकि पुरुष भी रेप के पीड़ित हो सकते हैं। इस पिटीशन में कहा गया था कि "अगर किसी पुरुष के साथ कोई पुरुष यौन उत्पीड़न करता है, तो आरोपी को सेक्शन-377 के तहत सजा दी जाती है। पुरुषों से जुड़े ऐसे मामलों को "रेप" नहीं बल्कि "अप्राकृतिक सेक्स" की कैटेगरी में रखा जाता है।" इस पिटीशन में ये भी मांग की गई थी कि "अगर कोई पुरुष किसी महिला के खिलाफ रेप या यौन उत्पीड़न का केस दर्ज कराता है, तो महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। क्योंकि 158 साल पुराने इंडियन पेनल कोड (IPC) के मुताबिक, केवल पुरुष ही ऐसे अपराध करते हैं।"
"पुरुष" शब्द को संविधान से बाहर किया जाए
अपनी पिटीशन में ऋषि मल्होत्रा ने ऐसे अपराधों से जुड़े कानूनों में इस्तेमाल किए गए "किसी पुरुष" शब्द को संविधान के दायरे से बाहर करने की भी मांग की। पिटीशन में मांग की गई थी कि "IPC के सेक्शन-354, 354-A, 354-B, 354-C, 354-D और 375 में "किसी पुरुष" शब्द को संविधान के दायरे से बाहर किया जाए और इन्हें संविधान के आर्टिकल-14 और 15 का उल्लंघन करार दिया जाए। क्योंकि ये सेक्स (लिंग) के आधार पर जेंडर एबसल्यूटनेस (लिंग-निरपेक्षता) का उल्लंघन करते हैं।"
Created On :   2 Feb 2018 3:38 PM IST