केस को अपनी पसंदीदा बेंच को ट्रांसफर करने का CJI को अधिकार नहीं : PIL
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सीनियर एडवोकेट और पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने शुक्रवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा के प्रशासनिक अधिकारों के बारे में जानकारी मांगने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन फाइल की है। इस पिटीशन में उन्होंने केसों के आवंटन के लिए रोस्टर तैयार करते समय जो प्रोसेस अपनाई जाती है, उसके बारे में भी जानकारी मांगी है। साथ ही ये भी कहा है कि चीफ जस्टिस के "मास्टर ऑफ रोस्टर" पर सवाल उठाते हुए कहा है कि उनके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है, जिसके तहत वो केस को अपनी पसंदीदा बेंच या जज को ट्रांसफर कर सकें। बता दें कि जनवरी में 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मुद्दे को भी उठाया था।
इस पिटीशन में क्या की गई है मांग?
- शांति भूषण ने अपनी पिटीशन में कहा है कि "मास्टर ऑफ रोस्टर" या चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास ऐसे पॉवर नहीं हो सकते, जिन्हें वो जजों को केस आवंटित करने वक्त मनमाने तरीके से इस्तेमाल करें। इसके लिए CJI अकेले फैसला नहीं ले सकते, उन्हें सीनियर जजों से सलाह लेना चाहिए।
- इस पिटीशन पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट रूल-2013 और हैंडबुक ऑन प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर ऑफ ऑफिस प्रोसीजर के नियमों के तहत चीफ जस्टिस और रजिस्ट्राल केसों को आवंटित कर रहे हैं। क्या इस प्रोसेस में CJI को 5 जजों के कॉलेजियम से बदला जा सकता है।
- इस पिटीशन में शांति भूषण ने केसों के आवंटन के लिए सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार और CJI के तरफ से दिए जाने वाले निर्देशों की भी जानकारी मांगी है। उन्होंने पूछा है कि क्या केसों की गंभीरता को देखते हुए इसके लिए सीनियर जजों से कोई राय ली जाती है?
- शांति भूषण ने अपनी पिटीशन में कहा कि आजकर राजनीतिक तौर पर कुछ संवेदनशील केसों और इनमें शामिल सत्तारूढ़ नेताओं और विपक्षी नेताओं से जुड़े केस खास जजों की बेंचों के पास सुनवाई के लिए भेजे जा रहे हैं। इससे ज्यूडीशियल सिस्टम पर असर पड़ रहा है।
- उन्होंने कहा कि ऐसी परंपरा ज्यूडीशियल सिस्टम की स्वतंत्रता पर खतरा है। किसी केस को अपनी पसंदीदा बेंच को ट्रांसफर करने से कोर्ट प्रोसिडिंग पर सवाल उठेंगे।
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CJI के पास ने भेजें ये पिटीशन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शांति भूषण ने ये पिटीशन अपने बेटे और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण के जरिए दाखिल की है। इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को भी एक लेटर लिखा है। इस लेटर में उन्होंने कहा कि "इस पिटीशन की सुनवाई सीधे चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच में न की जाए। पहले इस पिटीशन को तीन सीनियर जजों के पास विचार करने के लिए भेजा जाए और उसके बाद ही किसी बेंच में इसकी सुनवाई शुरू की जाए।"
प्रेस कॉन्फ्रेंस में जजों ने उठाया था मुद्दा
देश के इतिहास में पहली बार 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉनफ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मीडिया से बात की। इस दौरान जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि "सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।" उन्होंने बताया कि इस बात की शिकायत उन्होंने चीफ जस्टिस के सामने भी की, लेकिन उन्होंने बात को नहीं माना। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि "किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए जजों की स्वतंत्रता भी जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो लोकतंत्र नहीं बच पाएगा। हमने चीफ जस्टिस को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो नहीं समझ पाए।" उन्होंने आगे कहा कि "हमारे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था, इसी कारण मजबूरी में हमें मीडिया के सामने आना पड़ा।" इसके अलावा इन चारों जजों ने चीफ जस्टिस पर ये भी आरोप लगाए कि "चीफ जस्टिस सीनियर जजों की बात नहीं सुनते हैं।"
Created On :   7 April 2018 7:32 AM IST